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कुछ बड़ा होने वाला है? दुनिया की ये महाशक्तियां दे रही पाकिस्तान का साथ! भारत के खिलाफ रची जा रही बड़ी साजिश?

Global Powers Support Pakistan: भारत ने स्पष्ट संकेतों में पाकिस्तान की भूमिका उजागर की, लेकिन दुनिया ने आंखें फेर ली। जो होना चाहिए था उसके एकदम उलट हुआ पाकिस्तान को अलग-थलग करने के बजाय वैश्विक ताकतों ने उसके इर्द-गिर्द सुरक्षा चक्र बना दिया। पहलगाम के खून से सने दामन को भी सफेद करने की कोशिशें की जा रही हैं।

Harsh Srivastava
Published on: 8 Jun 2025 10:16 PM IST
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Global Powers Support Pakistan: जब पहलगाम की वादियों में बारूद की गूंज सुनाई दी, तो पूरा भारत सन्न रह गया। 26 निर्दोष नागरिकों की मौत किसी भी संवेदनशील सरकार के लिए कलेजा चीर देने वाला हादसा हो सकता है। इस बर्बरता की आवाज़ संयुक्त राष्ट्र की दीवारों से भी टकराई, दुनिया भर के नेताओं के बयान आए, संवेदना जताई गई... लेकिन किसी ने भी उस देश का नाम नहीं लिया, जिसकी जमीन से साजिश के बीज पनपे, जिसकी शह पर ये खूनी खेल खेला गया। भारत ने स्पष्ट संकेतों में पाकिस्तान की भूमिका उजागर की, लेकिन दुनिया ने आंखें फेर ली। जो होना चाहिए था उसके एकदम उलट हुआ पाकिस्तान को अलग-थलग करने के बजाय वैश्विक ताकतों ने उसके इर्द-गिर्द सुरक्षा चक्र बना दिया। पहलगाम के खून से सने दामन को भी सफेद करने की कोशिशें की जा रही हैं।

कुवैत का ‘वफ़ादारी का वीसा’

सबसे चौंकाने वाली बात तो तब सामने आई जब भारत के साथ सैन्य टकराव के महज कुछ दिनों बाद कुवैत ने वो फैसला लिया, जो उसने 19 सालों तक नहीं लिया था। 28 मई 2025 को, कुवैत ने पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीजा आवेदन फिर से खोल दिया। कुवैत ने 2006 में सुरक्षा कारणों से पाकिस्तानियों के वीजा पर रोक लगा दी थी। लेकिन अब? अब जब पाकिस्तान पर भारत के खिलाफ हमले का आरोप है, तब कुवैत दरवाजे खोल रहा है? यह महज़ संयोग नहीं, एक सुनियोजित भू-राजनीतिक संदेश है—भारत को क्षेत्रीय समर्थन में अकेला करने का प्रयास।

चीन की बांहों में भरपूर भरोसा

जहां एक तरफ भारत पहलगाम के आँसू पोंछने में व्यस्त था, वहीं पाकिस्तान के विदेश मंत्री चीन की राजधानी बीजिंग में लाल कालीन पर स्वागत पा रहे थे। चीन ने जून के अंत तक पाकिस्तान को 3.7 अरब डॉलर देने का वादा किया है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इसमें से 2.4 अरब डॉलर का उपयोग पाकिस्तान चीन से लिए कर्ज को चुकाने में करेगा। दुनिया का कोई भी बैंक डिफॉल्टर देश को नया कर्ज नहीं देता, लेकिन चीन ने पाकिस्तान को कर्ज लौटाने के लिए ही नया कर्ज दिया—और फिर 1.3 अरब डॉलर अलग से भी, ताकि पाकिस्तान अपनी सैन्य ताकत बढ़ा सके। क्या ये पैसे भारत के खिलाफ फिर कोई साजिश के लिए इस्तेमाल नहीं होंगे?

अफगानिस्तान की चुप्पी और ‘चीन-प्रेम’

भारत को उम्मीद थी कि अफगानिस्तान, जो खुद आतंकवाद से पीड़ित रहा है, पाकिस्तान की करतूतों पर कुछ बोलेगा। लेकिन हुआ इसका उल्टा। भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर से बातचीत के कुछ ही दिन बाद अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी चीन जा पहुंचे। वहां उन्होंने चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) को अफगानिस्तान तक बढ़ाने का करार कर दिया। इसका मतलब साफ है भारत की सीमाओं से लगे पाकिस्तान और अफगानिस्तान अब चीन की आर्थिक पट्टी में बंधने को तैयार हो गए हैं। और यह गठबंधन सिर्फ व्यापार का नहीं, रणनीति का भी है।

रूस: दोहरी भूमिका या सच्चा साथी?

एक और हैरान करने वाली रिपोर्ट जापान के अखबार निक्केई एशिया से आई, जिसमें दावा किया गया कि रूस और पाकिस्तान के बीच एक 2.6 अरब डॉलर की स्टील फैक्टरी को पुनर्जीवित करने का करार हुआ है। भारत के सरकारी मीडिया ने इसकी खबर का खंडन ‘सूत्रों’ के हवाले से किया। दावा किया गया कि रूस भारत के सामरिक हितों को नुकसान नहीं पहुंचाएगा। लेकिन सवाल यह है कि जब तक रूस की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आता, भारत कैसे भरोसा करे? इस बीच, एक और चौंकाने वाली बात सामने आई—रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच डेढ़ घंटे की गुप्त बातचीत हुई, जिसमें ट्रंप ने निजी तौर पर भारत-पाक संघर्ष को रोकने की मध्यस्थता की थी। पुतिन प्रशासन ने इसकी पुष्टि की। इसका मतलब क्या निकाला जाए? क्या भारत को अमेरिका और रूस दोनों ‘स्थिरता’ के नाम पर दबाव में ला रहे हैं?

भारत अकेला क्यों दिख रहा है?

दुनिया भर में आतंकवाद पर नारे लगाने वाले देशों ने अब चुनिंदा चुप्पी ओढ़ ली है। भारत की पीड़ा पर कोई खुला समर्थन नहीं आया। अमेरिका ने पाकिस्तान को हथियार आपूर्ति बंद करने की बात नहीं की, न ही संयुक्त राष्ट्र ने कोई ठोस कार्रवाई की। उलटे, भारत को ‘संयम’ बरतने की सलाह मिलती रही। इस बीच पाकिस्तान, जिसकी अर्थव्यवस्था ICU में है, फिर भी हथियार खरीद रहा है, विदेश यात्राएं कर रहा है, और अंतरराष्ट्रीय गठबंधनों का हिस्सा बन रहा है। यह सब तब हो रहा है जब उसकी जमीन से भारत के खिलाफ आतंकी हमला हुआ है।

खून भारत का, पर दर्द दुनिया को नहीं

पहलगाम में जिन मासूमों ने जान गंवाई, उनके परिजन आज भी इंसाफ की उम्मीद में हैं। लेकिन क्या इस ‘इंसाफ’ का रास्ता अब कूटनीतिक गलियारों से होकर नहीं, बल्कि सामरिक नीति और सख्त कदमों से होकर निकलेगा? भारत को अब यह समझना होगा कि केवल नैतिक बल से काम नहीं चलेगा। जब दुनिया आतंक के खिलाफ नहीं, रणनीतिक हितों के पक्ष में खड़ी हो, तब उसे एक नया रास्ता खुद बनाना होगा। इस भयावह शांति में भारत की चुप्पी कहीं स्थायी नुकसान न बन जाए। पहलगाम की घाटी में बहता खून चीख-चीख कर पूछ रहा है—“आख़िर कब तक?”

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Harsh Srivastava

News Coordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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