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Pakistan Parmanu Bomb: पाकिस्तान में परमाणु हथियारों की शुरुआत, आज क्या है स्थिति, आइए जानते हैं
Pakistan Parmanu Bomb History: साल 1956 में पाकिस्तान में 'पाकिस्तान एटॉमिक एनर्जी कमीशन' (PAEC) की स्थापना हुई थी जिसका उद्देश्य परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग करना था।
Nuclear Weapon in Pakistan (Image Credit-Social Media)
Nuclear Weapon in Pakistan: पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम शीत युद्ध की पृष्ठभूमि में प्रारंभ हुआ, जब यह देश ऊर्जा संसाधनों की खोज में था और साथ ही साथ भारत के बढ़ते परमाणु कार्यक्रम को संतुलित करने की भी आवश्यकता महसूस कर रहा था। 1956 में पाकिस्तान ने 'पाकिस्तान एटॉमिक एनर्जी कमीशन' (PAEC) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग करना था। उस समय यह कार्यक्रम नागरिक प्रयोगों तक ही सीमित था, लेकिन आने वाले दशकों में यह सैन्य दिशा में मुड़ गया।
भारत के परमाणु परीक्षण और पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
भारत ने जब 18 मई 1974 को अपना पहला परमाणु परीक्षण किया, जिसे "स्माइलिंग बुद्धा" के नाम से जाना गया, तब पाकिस्तान की सरकार और सैन्य प्रतिष्ठान में चिंता की लहर दौड़ गई। पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री ज़ुल्फिकार अली भुट्टो ने इसे एक चुनौती के रूप में देखा और सार्वजनिक रूप से यह घोषित किया कि यदि ज़रूरत पड़ी तो पाकिस्तान घास खाकर भी परमाणु बम बनाएगा। यहीं से पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रम को सैन्य दिशा में गति मिली।
अब्दुल क़दीर ख़ान और काहूटा प्रयोगशाला की स्थापना
डॉ. अब्दुल क़दीर ख़ान, जो उस समय यूरोप की यूरेनको कंपनी में काम कर रहे थे, ने पाकिस्तान को अत्यधिक संवेदनशील और गोपनीय यूरेनियम संवर्धन तकनीक प्रदान की। वे 1975 में पाकिस्तान लौटे और जल्द ही 'काहूटा रिसर्च लेबोरेटरीज़' (KRL) की स्थापना की, जहाँ पर गुप्त रूप से यूरेनियम को उच्च स्तर तक संवर्धित करने का काम शुरू हुआ। यह कार्य इतना गोपनीय था कि इसकी जानकारी केवल शीर्ष सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व को थी।
पाकिस्तान का परमाणु बम डिज़ाइन और परीक्षण से पहले की स्थिति
1980 के दशक के मध्य तक पाकिस्तान तकनीकी रूप से परमाणु बम तैयार करने में सक्षम हो चुका था। हालांकि इसने भारत की तरह खुले परीक्षण नहीं किए, लेकिन "कोल्ड टेस्ट" के रूप में बम के डिज़ाइन और कार्यप्रणाली का कई बार परीक्षण किया गया। यह कोल्ड टेस्ट विस्फोट के बिना किया गया परीक्षण था, जिससे अंतरराष्ट्रीय जांच से बचा जा सके और हथियार की क्षमता की पुष्टि भी हो सके।
आधिकारिक परमाणु परीक्षण: चगई, 1998
11 और 13 मई 1998 को भारत द्वारा दोबारा परमाणु परीक्षण किए जाने के बाद पाकिस्तान पर घरेलू और सैन्य दबाव तेजी से बढ़ा। पाकिस्तान ने 28 मई 1998 को बलूचिस्तान के चगई पर्वत में एक साथ पांच परमाणु परीक्षण कर दिए। यह परीक्षण "Youm-e-Takbeer" के नाम से जाने जाते हैं। इसके दो दिन बाद एक और परीक्षण किया गया। इन परीक्षणों के बाद पाकिस्तान आधिकारिक रूप से दुनिया की सातवीं परमाणु शक्ति बन गया।
पाकिस्तान की परमाणु नीति
पाकिस्तान की परमाणु नीति मुख्यतः भारत को संतुलित करने पर केंद्रित है। unlike भारत, जिसने 'No First Use' यानी पहले उपयोग न करने की नीति अपनाई है, पाकिस्तान ने ऐसी कोई नीति सार्वजनिक रूप से घोषित नहीं की है। उसका मानना है कि यदि पारंपरिक युद्ध में हार का खतरा बढ़े, तो परमाणु हथियारों का उपयोग एक आखिरी विकल्प हो सकता है। इसे 'फुल स्पेक्ट्रम डिटेरेंस' की रणनीति कहा जाता है, जिसमें सामरिक (tactical) और रणनीतिक (strategic) दोनों स्तरों पर परमाणु हथियारों का प्रयोग संभव है।
परमाणु मिसाइल प्रणाली और वितरण प्रणाली
पाकिस्तान ने परमाणु हथियारों को पहुंचाने के लिए अत्याधुनिक मिसाइल प्रणालियाँ विकसित की हैं। इनमें शाहीन, ग़ौरी, ग़ज़नवी जैसी बैलिस्टिक मिसाइलें शामिल हैं। इसके अतिरिक्त पाकिस्तान ने बाबर नामक क्रूज़ मिसाइलें भी विकसित की हैं जो ज़मीन और समुद्र से दागी जा सकती हैं। पाकिस्तान के पास एफ-16 और जेएफ-17 जैसे लड़ाकू विमान भी हैं, जिनके ज़रिए परमाणु बम छोड़े जा सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय दबाव और अब्दुल क़दीर ख़ान विवाद
2004 में एक बड़ा विवाद तब सामने आया जब यह प्रमाण मिले कि डॉ. अब्दुल क़दीर ख़ान ने ईरान, लीबिया और उत्तर कोरिया जैसे देशों को परमाणु तकनीक की तस्करी की थी। यह खुलासा अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय परमाणु एजेंसी की जांचों के बाद हुआ। पाकिस्तान सरकार ने इस मामले में डॉ. ख़ान को नजरबंद कर दिया और आधिकारिक रूप से यह दावा किया कि सरकार की इस तस्करी में कोई भूमिका नहीं थी। हालांकि यह मामला दशकों तक पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय छवि पर प्रश्नचिह्न बना रहा।
वर्तमान स्थिति और वैश्विक भूमिका
2024 तक के आंकड़ों के अनुसार, पाकिस्तान के पास लगभग 165 से 175 परमाणु हथियार मौजूद हैं। यह संख्या लगातार बढ़ रही है। पाकिस्तान का रक्षा बजट और वैज्ञानिक संसाधनों का बड़ा हिस्सा अब भी परमाणु तकनीक के रख-रखाव और आधुनिकीकरण में व्यय हो रहा है। चीन के साथ उसकी तकनीकी साझेदारी ने उसे और अधिक उन्नत मिसाइल प्रणाली विकसित करने में मदद की है। इसके अलावा पाकिस्तान अब छोटे परमाणु हथियारों (tactical nuclear weapons) पर भी काम कर रहा है ताकि सीमित युद्धों में भी परमाणु रणनीति को लागू किया जा सके।
पाकिस्तान का परमाणु जखीरा तेजी से बढ़ रहा है
बुलेटिन ऑफ एटमिक साइंटिस्ट्स की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान के पास वर्तमान में लगभग 170 परमाणु हथियार हैं। वर्ष 1999 में अमेरिकी रक्षा खुफिया एजेंसी ने अनुमान लगाया था कि पाकिस्तान के पास 2020 तक केवल 60 से 80 परमाणु हथियार होंगे। लेकिन समय के साथ पाकिस्तान ने कई नई परमाणु हथियार प्रणालियों को न केवल विकसित किया, बल्कि सेना में तैनात भी किया है। रिपोर्ट में यह भी आशंका जताई गई है कि पाकिस्तान अपने चार प्लूटोनियम उत्पादन रिएक्टरों, यूरेनियम संवर्धन केंद्रों और नए लॉन्च सिस्टम्स के माध्यम से भविष्य में अपने परमाणु भंडार में और भी अधिक वृद्धि कर सकता है।
परमाणु मिसाइलों से लैस पाकिस्तान की ताकत
पाकिस्तान की बढ़ती परमाणु ताकत केवल संख्या तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे मौजूद मिसाइल सिस्टम भी अत्यंत शक्तिशाली और विविध हैं। आइए जानते हैं कि पाकिस्तान किन-किन मिसाइल प्रणालियों के जरिए अपने परमाणु हथियार लॉन्च करने में सक्षम है।
अब्दाली मिसाइल
अब्दाली मिसाइल प्रणाली को 2015 में पाकिस्तानी सेना में शामिल किया गया। इसके पास कुल 10 लॉन्चर्स हैं। इसकी अधिकतम मारक क्षमता 200 किलोमीटर है। एक मिसाइल में 5 से 12 किलोटन क्षमता वाला परमाणु वॉरहेड लगा होता है।
गजनवी मिसाइल
गजनवी मिसाइल को 2004 में पाकिस्तान की सेना में शामिल किया गया था। इसके पास 16 लॉन्चर्स हैं। यह मिसाइल भी 5 से 12 किलोटन क्षमता के परमाणु वॉरहेड के साथ आती है।
शाहीन-1 मिसाइल
शाहीन-1 मिसाइल को 2003 में सेना में शामिल किया गया। पाकिस्तान के पास इस मिसाइल के 16 लॉन्चर्स मौजूद हैं। इसकी अधिकतम रेंज 750 किलोमीटर है और इसमें भी 5-12 किलोटन का परमाणु वॉरहेड लगाया जाता है।
शाहीन-2 मिसाइल
शाहीन-2 को 2014 में पाकिस्तान ने अपनी सेना में शामिल किया। इसके पास 24 लॉन्चर्स हैं। यह मिसाइल 1500 किलोमीटर की दूरी तक लक्ष्य भेद सकती है और इसमें 10 से 40 किलोटन क्षमता वाला परमाणु वॉरहेड लगाया जाता है।
गौरी मिसाइल
गौरी मिसाइल प्रणाली 2003 में सेना का हिस्सा बनी। पाकिस्तान के पास इसके कुल 24 लॉन्चर्स हैं। इसकी रेंज 1250 किलोमीटर है और यह 10 से 40 किलोटन क्षमता वाला परमाणु वॉरहेड ले जा सकती है।
नस्र मिसाइल
नस्र मिसाइल को 2013 में सेना में तैनात किया गया था। इसके पास भी 24 लॉन्चर्स हैं। इस मिसाइल की रेंज 60 से 170 किलोमीटर तक है और इसमें 12 किलोटन क्षमता वाला परमाणु वॉरहेड फिट किया गया है।
अबाबील मिसाइल
अबाबील मिसाइल की लॉन्च प्रणाली और तैनाती से संबंधित जानकारी गोपनीय रखी गई है। ऐसा अनुमान है कि इसकी मारक क्षमता लगभग 2200 किलोमीटर तक हो सकती है।
बाबर-1 मिसाइल
बाबर-1 मिसाइल को 2014 में पाकिस्तानी सेना में तैनात किया गया। इसके पास 12 लॉन्चर्स हैं और यह 350 किलोमीटर तक परमाणु हमला करने में सक्षम है। इसमें भी 5 से 12 किलोटन का वॉरहेड फिट किया जाता है।
बाबर-2 मिसाइल
बाबर-2 से जुड़ी जानकारी गोपनीय है। इसके लॉन्चर्स और तैनाती की सार्वजनिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन इसकी अनुमानित रेंज 700 किलोमीटर बताई जाती है। यह भी 5 से 12 किलोटन का परमाणु वॉरहेड ले जाती है।
बाबर-3 मिसाइल
बाबर-3 एक सबमरीन लॉन्च क्रूज मिसाइल है, जिसे पनडुब्बी से दागा जा सकता है। इसकी रेंज 450 किलोमीटर बताई जाती है और इसमें 5 से 12 किलोटन क्षमता वाला परमाणु वॉरहेड लगाया जाता है।
शाहीन-3: पाकिस्तान की सबसे शक्तिशाली परमाणु मिसाइल
शाहीन-3 को पाकिस्तान की सबसे आधुनिक और दूरगामी परमाणु मिसाइल माना जाता है। इसकी अधिकतम मारक क्षमता 2750 किलोमीटर है। इसे 2024 में सेना में शामिल किए जाने की योजना बनाई गई है। इसमें 10 से 40 किलोटन तक का परमाणु वॉरहेड लगाया जा सकता है।
पाकिस्तान की परमाणु ताकत लगातार बढ़ रही है और इसका मिसाइल कार्यक्रम अत्यंत विस्तृत होता जा रहा है। इस बढ़ती हुई शक्ति से दक्षिण एशिया में सामरिक संतुलन पर असर पड़ सकता है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस पर नजर बनाए रखने की आवश्यकता है, ताकि क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक शांति सुनिश्चित की जा सके।
पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम केवल एक सैन्य शक्ति प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक राजनीतिक और रणनीतिक उपकरण बन गया है, जिसका उद्देश्य भारत से संतुलन बनाए रखना और क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा में अपनी रक्षा सुनिश्चित करना है। हालांकि इसने पाकिस्तान को एक परमाणु शक्ति बना दिया, लेकिन इसके साथ ही यह कई अंतरराष्ट्रीय संधियों और प्रतिबंधों का भी विषय बन गया। परमाणु हथियारों की होड़ से दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता को दीर्घकालिक रूप से चुनौती भी मिली है, और यह चुनौती आज भी जारी है।
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