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संकट में बांग्लादेश! रबींद्रनाथ टैगोर के पैतृक घर पर हमला, भारत में तीखी प्रतिक्रिया
Rabindranath Tagore's Ancestral Home Attacked: रबींद्रनाथ टैगोर के ऐतिहासिक पैतृक घर 'रबींद्र कचहरीबाड़ी' जो बांग्लादेश के सिराजगंज जिले में स्थित है उस पर पर संकट मंडरा रहा है। आइये जानते हैं इसका इतिहास और भारत की प्रतिक्रिया।
Rabindranath Tagore's Ancestral Home Attacked
Rabindranath Tagore's Ancestral Home Attacked: बांग्लादेश के सिराजगंज जिले में स्थित रबींद्रनाथ टैगोर के ऐतिहासिक पैतृक घर 'रबींद्र कचहरीबाड़ी' पर हाल ही में हुई हिंसक भीड़ की घटना ने न केवल बांग्लादेश की सांस्कृतिक चेतना को झकझोर दिया है, बल्कि भारत में भी गहरी चिंता और तीखी राजनीतिक प्रतिक्रिया को जन्म दिया है। यह घटना केवल एक ऐतिहासिक स्थल पर हमला नहीं थी, बल्कि साहित्य, समावेशी विचारधारा और दो देशों की साझा सांस्कृतिक धरोहर पर एक बड़ा धक्का मानी जा रही है। इस हमले में संग्रहालय की संपत्ति को भारी क्षति पहुंची और कई कर्मियों पर हमला हुआ, जिसके बाद बांग्लादेश सरकार ने जांच समिति का गठन किया है। वहीं, भारत में भाजपा ने इस हमले की कड़ी निंदा करते हुए बांग्लादेश सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाए हैं। जानिए क्या है पूरा घटनाक्रम -
क्या हुआ रबींद्र कचहरीबाड़ी में
8 जून 2025 को बांग्लादेश के सिराजगंज जिले के शिलाइदह गांव में स्थित ‘रबींद्र कचहरीबाड़ी’ उस वक्त हिंसा का शिकार बन गई, जब एक स्थानीय विवाद ने विकराल रूप ले लिया। रबींद्रनाथ टैगोर, जिन्होंने अपने जीवन का एक अहम हिस्सा इसी जगह पर बिताया था, की यह हवेली अब संग्रहालय के रूप में संरक्षित है। यह स्थान न केवल साहित्य प्रेमियों के लिए तीर्थ समान है, बल्कि यह दो देशों – भारत और बांग्लादेश – की साझा सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है।
ऐसे हुई विवाद की शुरुआत
घटना की शुरुआत एक मामूली से पार्किंग शुल्क विवाद से हुई। बांग्लादेशी मूल के प्रवासी शाह नवाज अपने परिवार के साथ संग्रहालय घूमने आए थे। आरोप है कि उन्होंने पार्किंग शुल्क तो अदा कर दिया, लेकिन उन्हें उसकी रसीद नहीं दी गई। बाद में जब संग्रहालय के प्रवेश द्वार पर उनसे रसीद मांगी गई तो वे नहीं दिखा सके।
इस पर कर्मचारियों और नवाज के बीच तीखी बहस हुई। मामला इतना बढ़ा कि नवाज को कथित तौर पर अंदर एक कमरे में ले जाकर पीटा गया। उनकी स्थिति देखकर स्थानीय नेता मौके पर पहुंचे और उन्हें छुड़ाया।
स्थानीय आक्रोश और हिंसा में तब्दील होती भीड़
नवाज की पिटाई की खबर तेजी से इलाके में फैल गई। स्थानीय लोगों ने इसे एक गैर-न्यायसंगत कृत्य मानते हुए विरोध प्रदर्शन शुरू किया। पहले मानव श्रृंखला बनाई गई, फिर प्रदर्शन हिंसक हो गया। दर्जनों लोगों की भीड़ ने संग्रहालय पर धावा बोल दिया।
तोड़फोड़ और हमले
भीड़ ने सभागार, खिड़कियों, दरवाजों, कांच और फर्नीचर को नुकसान पहुंचाया। कई हिस्सों में आगजनी की स्थिति बन गई। रिपोर्ट के अनुसार, संग्रहालय के निदेशक पर भी हमला हुआ। संग्रहालय के परिसर को भारी क्षति पहुंची है, जिसका विस्तृत आकलन अब तक नहीं हो पाया है।
प्रशासनिक कार्रवाई और जांच समिति का गठन
घटना के तुरंत बाद बांग्लादेश प्रशासन ने इस गंभीर मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की है। साथ ही 10 नामजद और 50-60 अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कई आरोपी स्थानीय छात्र संगठन और राजनीतिक दलों से जुड़े हुए हो सकते हैं।
अनिश्चित समय के कचहरीबाड़ी हुआ बंद
बांग्लादेश के पुरातत्व विभाग ने निर्णय लिया है कि जब तक स्थिति सामान्य नहीं होती, तब तक रबींद्र कचहरीबाड़ी को आम लोगों के लिए बंद रखा जाएगा। इससे पहले वहां सुरक्षा के लिए अतिरिक्त पुलिस बल भी तैनात कर दिया गया है।
भारत में तीखी प्रतिक्रिया
इस घटना पर भारत में विशेष रूप से तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली है। भाजपा ने इसे सिर्फ एक ऐतिहासिक इमारत पर हमला नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, साहित्यिक चेतना और समावेशी विचारधारा पर हमला बताया है।
संबित पात्रा का बयान
भाजपा प्रवक्ता और सांसद डॉ. संबित पात्रा ने कहा, 'यह हमला न सिर्फ टैगोर के विरासत स्थल पर हुआ है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक आत्मा पर हमला है। यह स्पष्ट रूप से सुनियोजित था और इसमें कट्टरपंथी संगठनों जैसे जमात-ए-इस्लामी और हिफाजत-ए-इस्लाम की भूमिका की जांच होनी चाहिए।'
उन्होंने इस पूरे मामले में बांग्लादेश की मुहम्मद यूनुस सरकार की निष्क्रियता पर भी सवाल उठाए।
रबींद्रनाथ टैगोर केवल एक नोबेल पुरस्कार विजेता साहित्यकार नहीं थे, वे एक विचारक, दार्शनिक और सामाजिक समावेशिता के प्रतीक थे। उनका पैतृक घर न केवल ऐतिहासिक महत्व का है। बल्कि यह बांग्लादेश के भीतर भारत से जुड़ी सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है।
भारत-बांग्लादेश संबंधों पर असर
यह घटना भारत-बांग्लादेश के बीच सांस्कृतिक और कूटनीतिक संबंधों पर भी असर डाल सकती है। पहले भी कई बार बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों और भारत से जुड़ी विरासत स्थलों पर हमले की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। ऐसे में यह घटना भी भारत की जनता और राजनीतिक नेतृत्व में असंतोष को जन्म दे रही है।
मीडिया की भूमिका और सामाजिक प्रतिक्रिया
बांग्लादेशी मीडिया ने इस घटना को काफी प्रमुखता से कवर किया है। वहीं सोशल मीडिया पर भी इस मामले को लेकर भारी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। कई नागरिकों ने सरकार से यह मांग की है कि संग्रहालयों और ऐतिहासिक स्थलों की सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाए।
इस घटना ने एक बार फिर इस बात को स्पष्ट कर दिया है कि सांस्कृतिक विरासतों की सुरक्षा केवल भवनों की मरम्मत और चौकीदारों की नियुक्ति से नहीं हो सकती। इसके लिए जनता में जागरूकता, राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक सक्रियता तीनों का समावेश जरूरी है। जिसके लिए सांस्कृतिक स्थलों पर डिजिटल निगरानी
CCTV कैमरे और स्मार्ट सिक्योरिटी सिस्टम की स्थापना की जानी चाहिए।
स्थानीय समुदायों की भागीदारी की भावना के तहत स्थानीय लोगों को इस तरह के स्थलों से जोड़कर जागरूकता बढ़ाई जाए। इस घटना के बाद बंगभाषी समाज से जुड़े लोगों का कहना है कि भारत-बांग्लादेश दोनों देशों को मिलकर साझा सांस्कृतिक स्थलों की रक्षा के लिए एक स्थायी आयोग बनाना चाहिए।
रबींद्रनाथ टैगोर के पैतृक घर पर हमला केवल एक घटना नहीं, एक चेतावनी है। उन समाजों के लिए जो अपनी सांस्कृतिक जड़ों को भूले जा रहे हैं। बांग्लादेश सरकार को इस घटना की निष्पक्ष और सख्त जांच कर दोषियों को कड़ी सजा देनी चाहिए। वहीं भारत को भी इस घटना को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सांस्कृतिक धरोहरें किसी राजनीति या कट्टरता की भेंट न चढ़ें।
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