×

Akshaya Tritiya 2024: कब मनाई जाती है अक्षय तृतीया

Akshaya Tritiya 2024: अक्षय तृतीया की तिथि साढेतीन मूहूर्तों में से एक पूर्ण मुहूर्त है, इस दिन सत्ययुग समाप्त होकर त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ, ऐसा माना जाता है

Kanchan Singh
Published on: 10 May 2024 9:30 AM GMT
Akshaya Tritiya 2024
X

Akshaya Tritiya 2024

Akshaya Tritiya 2024: अक्षय तृतीया का त्यौहार वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि पर मनाया जाता है । अक्षय तृतीया को उत्तर भारत में ‘आखा तीज’ भी कहते है । अक्षय तृतीया की तिथि साढेतीन मूहूर्तों में से एक पूर्ण मुहूर्त है । इस दिन सत्ययुग समाप्त होकर त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ, ऐसा माना जाता है । इस कारण से यह एक संधिकाल है । मुहूर्त कुछ ही क्षणों का होता है; परंतु अक्षय तृतीया संधिकाल होने से उसका परिणाम चौबीस घंटे तक रहता है । इसलिए यह पूरा दिन ही अच्छे कार्यों के लिए शुभ माना जाता है ।

अक्षय तृतीया के दिन दान देने का महत्त्व

पुराणकालीन ‘मदनरत्न’ नामक संस्कृत ग्रंथ में बताए अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को इस दिन का महत्त्व बताते हुए कहा-

अस्यां तिथौ क्षयमुपैति हुतं न दत्तं

तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया ।

उद्दिश्य दैवतपितॄन्क्रियते मनुष्यैः

तच्चाक्षयं भवति भारत सर्वमेव ।।

( मदनरत्न)

अर्थात, इस तिथि को दिए हुए दान तथा किए गए हवन का क्षय नहीं होता । इसलिए मुनियों ने इसे ‘अक्षय तृतीया’ कहा है । देवों तथा पितरों के लिए इस तिथि पर जो कर्म किया जाता है, वह अक्षय; अर्थात अविनाशी होता है ।’ अक्षय तृतीया के दिन दिए गए दान का कभी क्षय नहीं होता । अक्षय तृतीया के दिन पितरों के लिए आमान्न अर्थात दान दिए जाने योग्य कच्चा अन्न, उदककुंभ; अर्थात जल भरा कलश, ‘खस’ का पंखा, छाता, पादत्राण अर्थात जूते-चप्पल आदि वस्तुओं का दान करने के लिए पुराणों में बताया है ।


सत्पात्र व्यक्ति को ही क्यों दान देना चाहिए ?

अक्षय तृतीया के दिन किए दान से व्यक्ति के पुण्य का संचय बढता है । पुण्य के कारण व्यक्ति को स्वर्गप्राप्ति हो सकती है; परंतु स्वर्गसुख का उपभोग करने के उपरांत पुनः पृथ्वी पर जन्म लेना पडता है । मनुष्य का अंतिम ध्येय ‘पुण्यप्राप्ति कर स्वर्गप्राप्ति करना’ ही नहीं; अपितु ‘पाप-पुण्य के परे जाकर ईश्‍वरप्राप्ति करना’ होता है । इसलिए मनुष्य को सत्पात्रे दान करना चाहिए । सत्पात्र व्यक्ति को दान करने पर यह कर्म ‘अकर्म कर्म’ (अर्थात पाप-पुण्य का नियम लागू नहीं होता) हो जाता है तथा ऐसा करने से मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति होती है, अर्थात वह स्वर्गलोक में न जाकर उच्चलोक में जाता है ।


अक्षय तृतीया के दिन सत्पात्र दान दें

अक्षय तृतीया के दिन दिए गए दान का कभी क्षय नहीं होता ।संत, धार्मिक कार्य करने वाले व्यक्ति, समाज में धर्मप्रसार करनेवाली आध्यात्मिक संस्था तथा राष्ट्र एवं धर्म जागृति करने वाले धर्माभिमानी को दान करें, कालानुरूप यही सत्पात्रे दान है ।

अक्षय तृतीया का महत्त्व

1-अक्षय तृतीया के दिन ही हयग्रीव अवतार, परशुराम अवतार एवं नरनारायण अवतार का प्रकटीकरण हुआ है ।

2-अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्मा एवं श्रीविष्णु इन दो देवताओं का सम्मिलित तत्त्व पृथ्वी पर आता है । इससे पृथ्वी की सात्त्विकता 10 प्रतिशत बढ जाती है । इस कालमहिमा के कारण इस तिथि पर पवित्र नदियों में स्नान, दान आदि धार्मिक कृत्य करने से अधिक आध्यात्मिक लाभ होते हैं ।

3-इस तिथि पर देवता-पितर के निमित्त जो कर्म किए जाते हैं, वे संपूर्णतः अक्षय (अविनाशी) होते हैं । (संदर्भ : ‘मदनरत्न’)

4-अक्षय तृतीया की संपूर्ण अवधि, शुभ मुहूर्त ही होती है । इसलिए इस दिन बिना पंचांग देखे शुभ एवं मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषण की खरीदारी अथवा घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीदारी की जा सकती हैं । नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना अथवा उद्घाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है । इस दिन गंगा स्नान तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं ।

5-अक्षय तृतीया संधिकाल है । हिन्दू धर्म में संधिकाल का महत्त्व बताया गया है कि संधिकाल में की गई साधना का फल अनेक गुना मिलता है । प्रत्येक दिन के प्रातःकाल, संध्याकाल तथा पूर्णिमा एवं अमावास्या तिथि के सूर्यग्रहण तथा चंद्रग्रहण और कुंभ इत्यादि संधिकाल में साधना करने का महत्त्व बताया गया है । उसी प्रकार हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार एक युग का अंत एवं दूसरे युग का प्रारंभ दिन संधिकाल हुआ इस कारण वह अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जाता है ।

6-यह तिथि वसंत ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतु के प्रारंभ का दिन भी है ।


अक्षय तृतीया के दिन ये अवश्य करें

पवित्र जल में स्नान श्रीविष्णुपूजा, जप एवं तिलतर्पण, मृत्तिकापूजन, बीज बोना एवं वृक्षारोपण, हलदी-कुमकुम।

पवित्र जल में स्नान

अक्षय तृतीया के दिन पवित्र जल में स्नान करें । हो सके तो तीर्थक्षेत्र जाकर स्नान करें अन्यथा बहते पानी में स्नान करें । किसी कारणवश यह संभव नहीं है, तो घर में स्नान करते समय हम पवित्र नदियों के जल से ही स्नान कर रहे हैं, यह भाव रखकर जाप करें ।


तिलतर्पण

तिल-तर्पण का अर्थ है, देवताओं एवं पूर्वजों को तिल एवं जल अर्पण करना । तर्पण का अर्थ है, देवता एवं पूर्वजों को जलांजलि; अर्थात अंजुली से जल देकर उन्हें तृप्त करना । पितरों के लिए दिया हुआ जल ही पितृतर्पण कहलाता है । पूर्वजों को अपने वंशजों से पिंड एवं ब्राह्मणभोजन की अपेक्षा रहती है, उसी प्रकार उन्हें जल की भी अपेक्षा रहती है । तर्पण करने से पितर संतुष्ट होते हैं । तिल सात्त्विकता का, तो जल शुद्ध भाव का प्रतीक है । देवताओं को श्‍वेत एवं पूर्वजों को काले तिल अर्पण करते हैं । काले तिल द्वारा प्रक्षेपित रज-तमात्मक तरंगों की सहायता से पृथ्वी पर अतृप्त लिंगदेह उनके लिए की जा रही विधि के स्थान पर सहज ही आ सकते हैं एवं विधि में से सहजता से अपना अंश ग्रहण कर तृप्त होते हैं । देवता तथा पूर्वजों को तिलतर्पण करने की पद्धति आगे दे रहे है ।


श्रीविष्णुपूजा, जप एवं होम

अक्षय तृतीया के दिन सातत्य से सुख-समृद्धि देनेवाले देवताओं के प्रति कृतज्ञता भाव रखकर उनकी उपासना करने से हम पर उन देवताओं की होनेवाली कृपा का कभी भी क्षय नहीं होता । इस दिन कृतज्ञता भाव से श्रीविष्णु सहित वैभवलक्ष्मी की प्रतिमा का पूजन करें । इस दिन होमहवन एवं जप-जाप करने में समय व्यतीत करें । प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से पुनः खुलते हैं


मृत्तिका पूजन

चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा’ तिथि स्वयं में एक शुभ मुहूर्त है । इस दिन खेत जोतना और उसकी निराई का कार्य अक्षय तृतीया तक पूरा करना चाहिए । निराई के पश्चात, अक्षय तृतीया के दिन खेत की मिट्टी की कृतज्ञता भाव से पूजा करनी चाहिए । इसके पश्चात, पूजित मिट्टी को जैविक बनाकर उसमें बीज बोएं ।


वृक्षारोपण

अक्षय तृतीया के मुहूर्त पर बीज बोने को आरंभ करने से उस दिन वातावरण में सक्रिय दैवी शक्ति बीज में आ जाती है । इस से कृषि-उपज बहुत अच्छी होती है । इसी प्रकार से अक्षय तृतीया के दिन फल के वृक्ष लगाने पर वे अधिक फल देते हैं ।


हलदी-कुमकुम

महाराष्ट्र में अक्षय तृतीया का दिन महिलाओं के लिए विशेष महत्त्व रखता है । चैत्र मास में स्थापित चैत्रगौरी का इस दिन महिलाएं विसर्जन करती है । चैत्र शुक्ल तृतीया से वैशाख शुक्ल तृतीया तक किसी मंगलवार, शुक्रवार अथवा किसी शुभदिन पर वे हल्दी-कुमकुम (एक प्रथा) का स्नेहमिलन करती हैं ।


जैन बंधुओं की दृष्टि से अक्षय तृतीया एक महान धार्मिक पर्व !

इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान ने एक वर्ष की तपस्या पूर्ण करने के पश्‍चात इक्षु (गन्ने) रस से पारायण किया था । श्री आदिनाथ ने लगभग 400 दिवस की तपस्या के पश्‍चात पारायण किया था । यह लंबी तपस्या एक वर्ष से अधिक समय की थी, अत: जैन धर्म में इसे ‘वर्षीतप’ से संबोधित किया जाता है । आज भी जैन बंधु वर्षीतप की आराधना कर अपने को धन्य समझते हैं । यह तपस्या प्रति वर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी से आरंभ होती है। दूसरे वर्ष वैशाख शुक्लपक्ष की अक्षय तृतीया के दिन पारायण कर पूर्ण की जाती है । तपस्या आरंभ करने से पूर्व इस बात का पूर्ण ध्यान रखा जाता है कि प्रति मास की चतुर्दशी को उपवास करना आवश्यक होता है । इस प्रकार का वर्षीतप लगभग तेरह मास और दस दिन का हो जाता है । उपवास में केवल गर्म पानी का सेवन किया जाता है


आपदा में धर्म का आचरण कैसे करें

हिन्दू धर्म ने आपातकाल के लिए धर्माचरण में कुछ विकल्प बताए हैं । इसे ‘आपद्धर्म’ कहते हैं । आपद्धर्म अर्थात ‘आपदि कर्तव्यो धर्मः ।’ इसका अर्थ है, आपदा में आचरण किया जानेवाला धर्म । उदाहरण, जैसे कोरोना महामारी के समय कई देशों में लॉकडाउन था । ऐसे संपत्काल में हम कुछ धार्मिक कृत्य नहीं कर पाए । इस दृष्टि से प्रस्तुत लेख में आपातकाल में धर्माचरण के रूप में क्या कर सकते हैं, इसका विचार किया गया है । यहां महत्त्वपूर्ण सूत्र यह है कि हिन्दू धर्म ने किस स्तर तक जाकर मानव का विचार किया है, यह सीखने मिलता है । इससे हिन्दू धर्म की एकमेवाद्वितीयता ध्यान में आती है ।


आपद्धर्म के समय आगे दिए कृत्य कर सकते हैं-

1-पवित्र स्नान

हम घर में ही गंगा का स्मरण कर स्नान करें, तो गंगास्नान का हमें लाभ होगा । इसलिए आगे दिए श्‍लोक का उच्चारण कर स्नान करें :

गंगेच यमुने चैव गोदावरी सरस्वती ।

नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन सन्निधि कुरु।।

2-सत्पात्र को दान

वर्तमान में विविध ऑनलाइन सुविधाएं उपलब्ध हैं । अतः अध्यात्मप्रसार करनेवाले संतों अथवा ऐसी संस्थाओं को हम ऑनलाइन दान दे सकते हैं । घर से ही अर्पण दिया जा सकता है ।

3-उदकुंभ का दान

शास्त्र है कि अक्षय तृतीया के दिन उदकुंभ दान करें । इस दिन यह दान करने के लिए बाहर जाना संभव न होने के कारण अक्षय तृतीया के दिन दान का संकल्प करें एवं शासकीय नियमों के अनुसार जब बाहर जाना संभव होगा, तब दान करें ।

4-पितृतर्पण

पितरों से प्रार्थना कर घर में ही पितृतर्पण कर सकते हैं ।

5-कुलाचारानुसार अक्षय तृतीया पर किए जानेवाले धार्मिक कृत्य

यदि आप उपरोक्त कृत्यों के अतिरिक्त कुलाचारानुसार अक्षय तृतीया पर अन्य कुछ धार्मिक कृत्य करते हैं, तो वे शासकीय नियमों में बैठते हैं न इसकी निश्चित करें।

( लेखिका प्रख्यात ज्योतिषाचार्य एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं ।)

Shalini singh

Shalini singh

Next Story