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Kharmas Kab Se Kab Tak Hai: शुरू हो रहा खरमास, बंद होंगे सारे मांगलिक काम, जानिए इससे जुड़ी कथाएं और इन खास बातों का रखें ख्याल

Kharmas Kab Se Kab Tak Hai: खरमास एक खराब मास है। इस माह में महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत सूर्य निस्तेज और क्षीण हो जाता है। सूर्य 16 दिसंबर को जब वृश्चिक राशि से धनु राशि में जाएंगे तो खरमास की शुरुआत होती है। इस मास में क्या होता है जानते हैं....

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 9 Dec 2021 5:06 AM GMT (Updated on: 9 Dec 2021 6:03 AM GMT)
Kharmas Kab Se Kab Tak Hai
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सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

Kharmas Kab Se Kab Tak Hai खरमास कब से कब तक है

जब सूर्य (Sun) की चाल धीमी होती है तो उस वक्त ऊर्जा का संचार कम होता है और कोई भी काम शुभ काम करने से अच्छे परिणाम नहीं आते हैं इस दौरान नींद और आलस्य छाया रहता है। इस समय को खरमास कहते हैं । यह समय 1 मास का होता है। इस दौरान शुभ काम की मनाही होती है। इस साल 16 दिसंबर से 14 जनवरी तक खरमास (Kharmas)रहेगा।

मतलब जब सूर्य एक के बाद एक राशि बदलते हुए गुरु के स्‍वामित्‍व वाली राशियों धनु और मीन में पहुंचता है तो यह गुरु के तेज को कम कर देता है। गुरु विवाह के कारक ग्रह हैं। ऐसे में गुरु के तेज का कम होना शादी के लिए अशुभ है।

दिसंबर को मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि और गुरुवार का दिन है। इस दिन धनु राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य16 दिसम्बर को 03:50 AM तक वृश्चिक राशि, में रहने के बाद धनु राशि में प्रवेश करेंगे। उस दिन सूर्यदेव की संक्रांति होगी। है। जिसे सूर्य की धनु संक्रांति कहते हैं। सूर्य की संक्रांति में पुण्यकाल का बहुत महत्व होता है। इस दौरान स्नान-दान का विधान है। सूर्य की धनु संक्रांति का पुण्यकाल इस दिन 03:34 तक रहेगा। इस पुण्यकाल का लाभ जरूर उठाना चाहिए।

सूर्यदेव की धनु राशि (Dhanu Rashi) में प्रवेश करने के साथ ही धनु खरमास भी आरंभ हो गया है। जब सूर्यदेव धनु या मीन राशि में प्रवेश करते हैं और जब तक वहां पर स्थित रहते हैं, उस समय अवधि को खरमास कहा गया है। साल में दो बार खरमास आता है। खरमास के दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन संस्कार आदि वर्जित होते हैं, इस दौरान सूर्य देव की उपासना करना बड़ा ही फलदायी माना गया है। 30 दिनों के दौरान आपको इन बातों का ख्याल रखना चाहिए।

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

खरमास( Kharmas )में आत्मा से परमात्मा का मिलन

शास्त्रों में बताया गया है कि सूर्य जब तक गुरू की राशि मीन अथवा धनु में होता हैं, तब तक का समय खरमास कहलाता है। खरमास को शून्य मास भी कहा जाता है यही कारण है कि इस अवधि में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार सूर्य आत्मा का कारक ग्रह है और गुरू परमात्मा का स्वरूप है। सूर्य के गुरू की राशि में आने पर आत्मा से परमात्मा का मिलन होता है। इसलिए कहा गया है कि खरमास के दौरान जितना संभव हो भगवान की भक्ति और उपासना करनी चाहिए। इस अवधि में भगवान में ध्यान केन्द्रित करना आसान होता है इसलिए भक्ति का फल जल्दी प्राप्त होता है।

खरमास समाप्ति

13 जनवरी 2022 की रात सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे। उसके बाद शुभ काम की शुरूआत होने लगती है। साथ ही बसंत पंचमी से शादी जैसे शुभ काम शुरू हो जाते हैं।

खरमास का अर्थ क्या है

खर का अर्थ है कर्कश, गधा, क्रूर या दुष्ट। सीधे-सीधे कहें, तो अप्रिय महीना। इस माह में महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत सूर्य निस्तेज और क्षीणप्राय हो जाता है। सूर्य 16 दिसंबर को जब वृश्चिक राशि से धनु राशि में जाते है तो खरमास का आगाज होगा। इस समय देवगुरु बृहस्पति की राशि धनु या मीन में जब सूर्य चरण रखते हैं, यह जीव और जीवन के लिए उत्तम नहीं माना जाता। शुभ कार्य इस काल में वर्जित हैं, क्योंकि धनु बृहस्पति की आग्नेय राशि है। इसमें सूर्य का प्रवेश विचित्र, अप्रिय, अप्रत्याशित परिणाम का सबब बनता है।

खरमास में मौत

कहते हैं कि इस माह में मृत्यु होने पर व्यक्ति नरकगामी होता है। खरमास के महीने में किसी भी तरह के शुभ काम नहीं किए जाते। मान्यता है कि खरमास में यदि कोई प्राण त्याग करता है तो उसे नर्क में निवास मिलता है। इसका उदाहरण महाभारत में भी मिलता है, जब भीष्म पितामह शरशैया पर लेटे होते हैं लेकिन खरमास के कारण वे अपने प्राण इस माह नहीं त्यागते। जैसे ही सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, भीष्म पितामह अपने प्राण त्याग देते हैं।

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

खरमास की धार्मिक कथाएं...

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस महीने में सूर्य के रथ के साथ महापद्म और कर्कोटक नाम के दो नाग, आप तथा वात नामक दो राक्षस, तार्क्ष्य एवं अरिष्टनेमि नामक दो यक्ष, अंशु व भग नाम के दो आदित्य, चित्रांगद और अरणायु नामक दो गन्धर्व, सहा तथा सहस्या नाम की दो अप्सराएं और क्रतु व कश्यप नामक दो ऋषि संग संग चलते हैं।मार्गशीर्ष और पौष का संधिकाल स्वयं में बेहद विशिष्ट है। यह माह आंतरिक कौशल और बौद्धिक चातुर्य से शीर्ष पर पहुंचने का मार्ग प्रकट करता है।

इस दौरान यदि बाह्य जगत के बाहरी कर्मों से निर्मुक्त होकर, स्वयं में प्रविष्ट होकर खुद को तराशा, निखारा एवं संवारा जाए, तो व्यक्ति उत्कर्ष का वरण करता है।धनु राशि की यात्रा और पौष मास के संयोग से देवगुरु के स्वभाव में अजीब सी उग्रता के कारण इस मास के मध्य शादी-विवाह, गृह आरंभ, गृहप्रवेश, मुंडन, नामकरण आदि मांगलिक कार्य अमांगलिक सिद्ध हो सकते हैं। इसीलिए शास्त्रों ने इस माह में इनका निषेध किया हैं।

खरमास की दूसरी कहानी...

खरमास के संबंध में एक और कथा भी है। संस्कृत में खर गधे को कहा जाता है। माना जाता है कि सूर्य देव ने एक बार खर को अपने रथ में जोत लिया था। तभी से खर मास शुरू हो गया। चूंकि सूर्य देव के रथ में सात घोड़े होते हैं, जिनसे वे अपने मार्ग पर भ्रमण करते हैं। सूर्य से ही संपूर्ण जगत में प्रकाश पहुंचता है। यदि वे कुछ क्षण भी रुक जाएं तो पूरा तंत्र बिगड़ सकता है। उनके रथ के घोड़े बिना विश्राम किए हमेशा दौड़ते रहते हैं। एक बार सभी घोड़ों को प्यास लगी, लेकिन सूर्य देव रथ को रोक नहीं सकते थे।

चलते-चलते एक जलस्रोत आया। वहां दो खर पानी पी रहे थे। सूर्य देव ने अपने घोड़ों को पानी पीने के लिए खोल दिया और दोनों खरों को रथ में जोत लिया। घोड़े पानी पीने लगे। उधर सूर्य देव का रथ चल पड़ा, लेकिन दोनों खर सात घोड़ों जितने शक्तिशाली नहीं थे। इससे सूर्य देव के रथ की गति धीमी हो गई। इसका प्रभाव पृथ्वी पर भी हुआ और सूर्य का तेज कम हो गया।

यह समय तब से खर मास कहलाने लगा। इस दौरान सूर्य का ताप बहुत कम हो जाता है और मकर संक्रांति के बाद ही सूर्य का तेज बढ़ने लगता है। माना जाता है कि मकर संक्रांति से सूर्य देव अपने रथ के सातों घोड़ों को रथ में पुन: लेकर आगे बढ़ते हैं। खरमास में गीता, रामायण, हनुमान चालीसा आदि ग्रंथों के दान का विशेष महत्व है।

खरमास में क्या करें, क्या नहीं

  • इस मास में सत्यनारायण भगवान की पूजा, होम, जप, योग, ध्यान, दान, तीर्थ में स्नान करना उत्तम होता है। पुरुषोत्तम मास में जमीन पर सोना, पत्तल पर भोजन करना, शाम को एक वक्त खाना चाहिए। सभी का सम्मान करना चाहिए।
  • देवी-देवता, ब्राह्मण, गाय, साधु-संयासी, बड़े-बुजुर्ग की सेवा और आदर करना चाहिए।खरमास में ताबें के बर्तन में रखा हुआ दूध और चमड़े में रखा हुआ पानी का सेवन नहीं करना चाहिए। साथ ही अपने हाथ से बना खाने का सेवन करना चाहिए। इन दिनों में साधारण जीवन जीना चाहिए।
  • लक्ष्मी जी की पूजा करें औप पीपल के वृक्ष के नीचे दीप दान और पूजा करेंगे तो अच्छा रहेगा।धन संबंधी परेशानी दूर होगी।

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

खरमास में न करें ये काम

  • कोई मांगलिक कार्य न करें, शास्त्रों के अनुसार खरमास में विवाह, जनेऊ, कन्या विदाई, मुण्डन, कर्ण छेदन, भूमि पूजन, गृह निर्माण आरंभ, गृह प्रवेश, नया कारोबार आरंभ नहीं किया जाता है। बृहस्पति जीवन के वैवाहिक सुख और संतान देने वाला होता है।
  • इस माह में मांसाहारी चीजों का भी सेवन नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही प्याज, लहसुन, गाजर, मूलू, दाल, तेल और दूषित अन्य को छोड़ देना चाहिए। इस माह में इन चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए, इसके अनुसार सफेद धान, चावल, गेहूं, तिल, जौ, बथुआ, कंकडी, मंचावल, मूंग, शहतूत, सामक, मटर, पीपल, सौंठ, आंवला, सेंधा नमक, सुपारी आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • इन दिनों में किसी पराई स्त्री को नहीं देखना चाहिए। रजस्वला स्त्री से दूर रहना और धर्मभ्रष्ट संस्कारहीन लोगों से संपर्क नहीं रखना चाहिए। किसी प्राणी से द्रोह नहीं करना चाहिए। परस्त्री का भूल करके भी सेवन नहीं करना चाहिए। देवता, वेद, ब्राह्मण, गुरु, गाय, साधु-सन्यांसी, स्त्री और बड़े लोगों की निंदा नहीं करनी चाहिए।

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Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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