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Khele Masane Me Hori Digambar: खेलैं मसाने में होली दिगंबर

Khele Masane Me Hori Digambar: फागुन में काशी का कण कण फ़ाग गाता है-“खेले मशाने में होली दिगम्बर खेले मशाने में होली, सच यही है कि शिव के साथ साथ हर जीव संसार के इस महाश्मशान में होली ही खेल रहा है

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Published on: 23 March 2024 6:22 AM GMT
Khele Masane Me Hori Digambar
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Khele Masane Me Hori Digambar

खेलैं मसाने में होरी दिगंबर

खेलैं मसाने में होरी दिगंबर,

खेले मसाने में होरी,

भूत पिशाच बटोरी दिगंबर,


खेले मसाने में होरी।

चिता, भस्म भर झोरी दिगंबर,

खेले मसाने में होरी।

गोप न गोपी श्याम न राधा,

ना कोई रोक ना, कौनाऊ बाधा

ना साजन ना गोरी,

दिगंबर, खेले मसाने में होरी।

नाचत गावत डमरूधारी,

छोड़ै सर्प-गरल पिचकारी,

पीतैं प्रेत-धकोरी,

दिगंबर खेले मसाने में होरी।

भूतनाथ की मंगल-होरी,

देखि सिहाएं बिरिज की गोरी,

धन-धन नाथ अघोरी,

दिगंबर खेलैं मसाने में होरी।

खेलें मसाने में होरी,

दिगम्बर खेलें मसाने में होरी।

महाश्मशान में शिव होली खेलते हैं। इसका आध्यात्मिक विवेचना।


शमशान में होली खेलने का अर्थ समझते हैं?

मनुष्य सबसे अधिक मृत्यु से भयभीत होता है।

उसके हर भय का अंतिम कारण अपनी या अपनों की मृत्यु ही होती है।

शमशान में होली खेलने का अर्थ है,उस भय से मुक्ति पा लेना।

शिव किसी शरीर मात्र का नाम नहीं है,शिव वैराग्य की उस चरम अवस्था का नाम है,जब व्यक्ति मृत्यु की पीड़ा,भय या अवसाद से मुक्त हो जाता है।शिव होने का अर्थ है वैराग्य की उस ऊँचाई पर पहुँच जाना,जब किसी की मृत्यु कष्ट न दे। बल्कि उसे भी जीवन का एक आवश्यक हिस्सा मान कर,उसे पर्व की तरह खुशी खुशी मनाया जाय।शिव जब शरीर में भभूत लपेट कर नाच उठते हैं,तो समस्त भौतिक गुणों-अवगुणों से मुक्त दिखते हैं।यही शिवत्व है।मान्यता है कि काशी की मणिकर्णिका घाट पर भगवान शिव ने देवी सती के शव की दाहक्रिया की थी।तबसे वह महाशमशान है,जहाँ चिता की अग्नि कभी नहीं बुझती।एक चिता के बुझने से पूर्व ही दूसरी चिता में आग लगा दी जाती है।वह मृत्यु की लौ है जो कभी नहीं बुझती,जीवन की हर ज्योति अंततः उसी लौ में परम ज्योति में समाहित हो जाती है।

शिव जब अपने कंधे पर देवी सती का शव ले कर नाच रहे थे,तब वे मोह के चरम पर थे। वे शिव थे, फिर भी शव के मोह में बंध गए थे।मोह बड़ा प्रबल होता है, किसी को नहीं छोड़ता।सामान्य जन भी विपरीत परिस्थितियों में,या अपनों की मृत्यु के समय यूँ ही शव के मोह में तड़पते हैं।शिव शिव थे,वे रुके तो उसी प्रिय पत्नी की चिता भष्म से होली खेल कर युगों युगों के लिए वैरागी हो गए।मोह के चरम पर ही वैराग्य उभरता है न।पर मनुष्य इस मोह से नहीं निकल पाता,वह एक मोह से छूटता है तो दूसरे के फंदे में फंस जाता है।शायद यही मोह मनुष्य को शिवत्व प्राप्त नहीं होने देता।कहते हैं काशी शिव के त्रिशूल पर टिकी है।शिव की अपनी नगरी है काशी,कैलाश के बाद उन्हें सबसे अधिक काशी ही प्रिय है।शायद इसी कारण काशी एक अलग प्रकार की वैरागी ठसक के साथ जीती है।मणिकर्णिकाघाट, हरिश्चंदघाट, युगों युगों से गङ्गा के इस पावन तट पर,मुक्ति की आशा ले कर देश विदेश से आने वाले लोग वस्तुतः शिव की अखण्ड ज्योति में समाहित होने ही आते हैं।होली आ रही है।

फागुन में काशी का कण कण फ़ाग गाता है-“खेले मशाने में होली दिगम्बर खेले मशाने में होली।” सच यही है कि शिव के साथ साथ हर जीव संसार के इस महाश्मशान में होली ही खेल रहा है। तब तक , तबतक उस मणिकर्णिका की ज्योति में समाहित नहीं हो जाता संसार शमशान ही तो हैं।

Shalini singh

Shalini singh

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