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Lord Krishna Arjun Talk: भगवान् श्रीकृष्ण बोले, हे पार्थ... मैं तुझे इसी अज्ञान के अंधकार से निकालना चाहता हूं, देखो इस सृष्टि की ओर

Lord Krishna Arjun Talk: इस सृष्टि में जो जन्म लेता है, वह निश्चित रूप से मृत्यु के आधीन हो जाता है, इसका अर्थ यह है कि- इस मृत्युलोक का हर प्राणी- चाहे वह मनुष्य हो, चाहे पशु हो, पक्षी हो, या पेड़ पौधा हो, हर सांस लेने वाला प्राणी... अपने जन्म के साथ अपनी मृत्यु को भी साथ लेकर आता है।

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Published on: 12 Dec 2023 1:07 PM GMT
Lord Shri Krishna said - O Partha... I want to take you out of this darkness of ignorance, look at this creation
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भगवान् श्रीकृष्ण बोले-- हे पार्थ... मैं तुझे इसी अज्ञान के अंधकार से निकालना चाहता हूं, देखो इस सृष्टि की ओर: Photo- Social Media

Lord Krishna Arjun Talk: इस सृष्टि में जो जन्म लेता है, वह निश्चित रूप से मृत्यु के आधीन हो जाता है, इसका अर्थ यह है कि- इस मृत्युलोक का हर प्राणी- चाहे वह मनुष्य हो, चाहे पशु हो, पक्षी हो, या पेड़ पौधा हो, हर सांस लेने वाला प्राणी... अपने जन्म के साथ अपनी मृत्यु को भी साथ लेकर आता है।

हर प्राणी को एक न एक दिन निश्चित क्षण पर मरना-- अर्थात अपना शरीर त्यागना ही पड़ता हैं।

हे केशव! मैं आपकी शरण में आया हूं... मुझे रास्ता दिखाओ।

हे अर्जुन-- तुम्हारे विचलित होने से विधि का विधान नहीं बदलेगा। क्योंकि विधाता का निर्णय अटल और अचूक है। तुम क्या समझते हो। तुम्हारे नहीं मारने से यह सब नहीं मरेंगे। नहीं अर्जुन नहीं। तुम्हें इन्हें नहीं मारोगे तब भी यह मरेंगे। क्योंकि प्रारब्ध ने इनकी मृत्यु का समय निश्चित कर दिया है।

भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस कृति के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान भी दिया जाता है। कृष्ण वसुदेव और देवकी की 8वीं संतान थे।

मथुरा के कारावास में उनका जन्म हुआ था। गोकुल में उनका लालन पालन हुआ था। यशोदा और नन्द उनके पालक माता पिता थे। उनका बचपन गोकुल में व्यतीत हुआ। बाल्य अवस्था में ही उन्होंने बड़े बड़े कार्य किये जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे। मथुरा में मामा कंस का वध किया। सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसाया। पांडवों की मदद की और विभिन्न आपत्तियों में उनकी रक्षा की।

महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और भगवद्गीता का ज्ञान दिया जो उनके जीवन की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है।

श्री कृष्ण भगवान स्वयं अपने बारे में भगवद्गीता के चौथे अध्याय के आरंभ में कहते है कि "योग, अध्यात्म, जीव-माया-परमात्मा संबंधित जो ये परमज्ञान है । वह सर्वप्रथम मैंने ईश्वाकुवंश के प्रारंभिक सदस्य विवस्वान को दिया था जिसे विवस्वान ने मनु से कहा और मनु ने ईश्वाकु को, फिर यह गुरु शिष्य परंपरा से होता हुआ अब द्वापर युग के समापन तक आते आते छिन्न भिन्न हो चुका है।"

(कल्याण पत्रिका से साभार ।)

Shashi kant gautam

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