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Brahmacharini Devi Story:ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा कैसे करें, जानिए नियम और कथा

Brahmacharini Devi Ki Pooja Kaise kare :दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी का होता है, जिन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। कठिन तपस्या करने के कारण देवी को तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। कहा जाता हैं

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 10 April 2024 1:00 AM GMT (Updated on: 9 April 2024 11:29 PM GMT)
Brahmacharini Devi Story:ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा कैसे करें, जानिए नियम  और कथा
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Brahmacharini Devi Ki Pooja Kaise kare:ब्रह्मचारिणी देवी, नवरात्रि के दूसरे दिन की पूजा में मां की ब्रह्मचारिणी स्वरूप की आराधना की जाती है। इस दिन मां ब्रह्मचारिणी को पूजन करने से साधक ब्रह्मचर्य का पालन करने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं और अपने जीवन में सामर्थ्य और संयम को बढ़ावा देते हैं। यह दिन समर्पित होता है ज्ञान, ध्यान और साधना को प्राप्त करने के लिए। इस दिन के व्रत और पूजन से साधक मां ब्रह्मचारिणी की कृपा प्राप्त करते हैं और अपने मार्ग में सामर्थ्य प्राप्त करते हैं। इस दिन की पूजा में विशेष रूप से स्वर्ण या काँस्य के कुंडल, हार, या कोई भी ब्रह्मचारिणी देवी का प्रतिक उपयोग किया जाता है। इस दिन की पूजा में संगीत, मंत्र, और ध्यान के माध्यम से मां ब्रह्मचारिणी का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। इस दिन के विशेष प्रसाद में हलवा, पूरी, और चना साधुओं और भक्तों को बाँटा जाता है।

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का समय

चैत्र नवरात्रि में बहुत ही विधि-विधान से मां दुर्गा के 9 रूपों की उपासना की जाती है। नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होगी।

इस पूजन का शुभ मुहूर्त दिनभर है। लेकिन किसी कामना की पूर्ति के लिए मां की आराधना करना है तोअमृत काल-10:41 PM से 12:09 AM,ब्रह्म मुहूर्त--04:49 AM से 05:37 AMविजय मुहूर्त-02:06 AM से 02:56 AMगोधूलि मुहूर्त-06:12 PM से 06:35 PM,सर्वार्थ सिद्धी योग-03:05 AM, अप्रैल 11 से 05:39 AM, अप्रैल 11रवि पुष्य योग-03:05 AM, अप्रैल 11 से 05:39 AM, अप्रैल 11 पूजा का समयहै।

मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र

दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। ये देवी का रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य देने वाला है। देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में कमण्डल रहता है।

मां ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप- आज दूसरा दिन का होता है, जिन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी।

कठिन तपस्या करने के कारण देवी को तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। कहा जाता हैं कि मां दुर्गा ने घोर तपस्या की थी, इसलिए यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से होता है। मां दुर्गा का ये स्वरूप भक्तों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।


मां ब्रह्मचारिणी का स्वरुप

देवी सफेद वस्त्र धारण करती हैं और उनके एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में कमंडल होता है। देवी की पूजा करने से किसी भी कार्य के प्रति कर्तव्य, लगन और निष्ठा बढ़ती है। देवी अपने भक्तों के अंदर भक्तिभावना उत्पन्न करने वाली मानी गई हैं। देवी ने भगवान शंकर को पाने के लिए घनघोर तब तक किया जब तक वह उन्हें पा नहीं सकीं। उनकी भक्ति और लगन उनके भक्तों में भी आती है।

मां ब्रह्मचारिणी की उत्पत्ति की कथा

पूर्व जन्म में देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। एक हजार साल तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।

कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखें और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। 3 हजार सालों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया। कई हजार सालों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा पड़ गया।

कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता,ऋषि, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी किसी ने इस तरह की घोर तपस्या नहीं की। तुम्हारी मनोकामना जरूर पूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़ घर जाओ। जल्द ही तुम्होरे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस देवी की कथा का सार ये है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां के इस रूप की पूजा करने से सर्वसिद्धी की प्राप्ति होती है।

Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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