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Weather Today: क्लाइमेट चेंज दिखा रहा भारतीय मॉनसून पर असर

Weather Today: मौसम के अजीब रुख से लोग हैरान हैं, लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि आने वाले वक्ता में इस अनिश्चितता के और बढ़ने के आसार हैं।

Neel Mani Lal
Report Neel Mani LalPublished By Deepak Kumar
Published on: 20 Oct 2021 8:00 AM GMT
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क्लाइमेट चेंज दिखा रहा भारतीय मॉनसून पर असर। ( Social Media)

Weather Today: इस साल गर्मियों का मॉनसून (indian monsoon) बहुत ही अनिश्चित रहा। अगस्त में सूखे जैसे हालात रहे तो सितम्बर में कई स्थानों पर बहुत ज्यादा बारिश हुई हुई। और उसके बाद अक्टूबर में तो कई राज्यों में भरी बारिश से व्यापक तबाही हो गई। मौसम के अजीब रुख से लोग हैरान हैं, लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि आने वाले वक्ता में इस अनिश्चितता के और बढ़ने के आसार हैं।

पिछले दो मॉनसून के दौरान भारत में बेहद भारी बारिश देखी गई है, लेकिन भारत सरकार और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन के आकलन के मुताबिक पिछले 60 सालों में यह बारिश 6 प्रतिशत कम हुई है। 2021 की गर्मियों का मॉनसून वैसे तो सामान्य था, लेकिन कई जगहों पर स्थानीय स्तर पर भारी बारिश की घटनाएं हुईं। बारिश के प्रसार के स्वरूप में काफी हद तक अंतर देखा गया। इन आकलनों ने चेतावनी दी है कि आने वाले समय में बारिश की घटनाएं और बारिश के स्वरूप का यह अंतर बढ़ता जाएगा।

विशेषज्ञों ने बताया है कि सितंबर महीने में असामान्य रूप से हुई यह बारिश मॉनसून सत्र की उन फसलों को बुरी तरह से प्रभावित कर सकती है, जो कम समय में तैयार हो जाती हैं। 1 अक्टूबर को केंद्र सरकार ने कहा कि सितंबर महीने के आखिर में हुई बेमौसम बारिश की वजह से, हरियाणा और पंजाब में धान की फसल कटने में देरी हुई। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे भी बुरा यह है कि अक्टूबर महीने में होने वाली यह बारिश पिछले कुछ सालों में इतनी अनिश्चित हो गई है कि किसानों को सलाह देना भी मुश्किल हो गया है। दूसरी तरफ़, साल 2021 के मॉनसून की बढ़ाई गई तारीखों के बाद तक भी मॉनसून का लौटना जारी रहा।

मॉनसून की इन अनिश्चितताओं की वजह से, जलवायु परिवर्तन के आकलन में अंतर आएगा। इसकी वजह से, इस सदी के अंत तक मॉनसून की कुल बारिश में जलवायु परिवर्तन के योगदान में भी बढ़ोतरी होगी। विशेषज्ञों ने हमें बताया कि हाल के मॉनसून से यह पता चला है कि बारिश के स्वरूप में अंतर और भारी बारिश की घटनाओं में बढ़ोतरी अभी से शुरू हो गई है।

एक्सपर्ट्स का कहना है कि अनियमित बारिश आगे समय में और भी हो सकती है, किसानों को इसके लिए तैयार रहना होगा। जून में बारिश के बाद कम या फिर भारी बारिश का होना, बुवाई के लिए किसी भी तरह से मुफ़ीद नहीं है। पिछले 10 साल के आंकड़े देखें, तो सितंबर अब नया अगस्त बन गया है। वहीं, अक्टूबर में भी बिना मौसम की बारिश हो रही हैं। लेकिन कोई साफ पैटर्न समझ नहीं आ रहा है। इसलिए, किसानों को खेती के बारे में सलाह देना भी बहुत मुश्किल हो रहा है।

मॉनसून के समय बारिश का पिछले 10 साल का डेटा देखने पर पता चलता है कि सितंबर में बारिश की मात्रा बढ़ती जा रही है। वहीं, अक्टूबर महीने की बारिश में काफी अंतर देखा गया है। जलवायु परिवर्तन के बारे में, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुए कई आकलनों में बारिश के इस लगातार बदलने और बड़े अंतर वाले पैटर्न पर चिंता जताई गई है। दूसरी तरफ, आईएमडी के पिछले 120 सालों के अलग-अलग मौसम की बारिश के डेटा से पता चलता है कि मॉनसून की बारिश में कमी आई है।

सरकार के आकलन के मुताबिक, ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की वजह से होने वाली ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभावों के चलते औसत बारिश बढ़ जानी चाहिए थी। हालांकि, मानव उत्सर्जित ऐरोसॉल के रेडियोऐक्टिव प्रभावों की मात्रा 20वीं सदी में काफी ज़्यादा थी। इसी वजह से, ग्लोबल वॉर्मिंग का असर काफी हद तक कम प्रभावी रहा और औसत बारिश में कमी हुई। आने वाले समय में इंसान की ओर से होने वाले ऐरोसॉल उत्सर्जन में कमी आने की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में ग्लोबल वॉर्मिंग जारी रहने से, 21वीं सदी के अंत तक मॉनसूनी बारिश की मात्रा बढ़ जाएगी। आकलन में यह भी चेतावनी दी गई है कि आने वाले समय में बारिश के प्रसार क्षेत्र और स्थानीय स्तर पर भारी या बहुत ज़्यादा बारिश की घटनाओं में भी बढ़ोतरी होगी।

Deepak Kumar

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