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चुनाव से पहले और बाद में ईवीएम का सफर

seema
Published on: 25 May 2019 6:36 AM GMT
चुनाव से पहले और बाद में ईवीएम का सफर
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चुनाव बीत चुके हैं। नतीजा भी आ गया है। नई सरकार बन चुकी है, लेकिन ईवीएम का विवाद अब भी कायम है। इस चुनाव में खास कर एक्जिट पोल के प्रसारण के बाद से ईवीएम में गोलमाल को लेकर विपक्षी दलों ने खासा बखेड़ा खड़ा किया है। इस आलोक में जानते हैं कि ईवीएम स्ट्रांग रूम से पोलिंग स्टेशन तक जाने और लौटने के सफर के बारे में।

जब चुनाव नहीं हो रहे होते

किसी भी जिले में उपलब्ध सभी ईवीएम ट्रेजरी या जिला निर्वाचन अधिकारी के सीधे कंट्रोल वाले किसी गोदाम में रखी जाती हैं। यदि रखने की पर्याप्त जगह नहीं है तो कोई वैकल्पिक इंतजाम किया जा सकता है, लेकिन किसी भी हालत में निर्धारित ट्रेजरी या गोदाम तहसील लेवल से नीचे का नहीं होना चाहिए।

गोदाम को डबल लॉक किया जाता है और पुलिसवालों या सुरक्षा गार्डों की २४ घंटे निगरानी रहती है। इसके अलावा सीसीटीवी निगरानी भी बराबर रखी जाती है। जब चुनाव नहीं हो रहे होते तब चुनाव आयोग के स्पष्ट निर्देश के बगैर ईवीएम को गोदाम से हटाया नहीं जा सकता है। इंजीनियरों द्वारा ईवीएम की पहले लेवल की जांच यहीं पर राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में की जाती है।

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चुनावी मौसम के दौरान

चुनाव आने पर एक लोकसभा क्षेत्र में अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों के लिए ईवीएम का रैंडम अलाटमेंट किया जाता है। अगर ऐसे प्रतिनिधि मौजूद नहीं हैं तो हर एसेम्बली सेगमेंट में अलाटेड ईवीएम और वीवीपैट मशीनों की सूची पार्टी कार्यालय के संग शेयर की जाती है। इसके बाद से रिटर्निंग अधिकारी अलाटेड मशीनों का चार्ज ले लेता है और इन मशीनों को निर्धारित स्ट्रांग रूम में रखवाता है।

इसके बाद रैंडमाईजेशन या अक्रमीकरण (जो किसी क्रम में नहीं हो) का दूसरा चक्र होता है। पार्टी प्रतिनिधियों की मौजूदगी में पोलिंग स्टेशनों को ईवीएम आवंटित की जाती हैं। चुनाव आयोग सभी प्रत्याशियों को सुझाव देता है कि वह मशीनों के नंबर अपने अपने पोलिंग एजेंटों के संग शेयर करें ताकि वे मतदान शुरू होने से पूर्व इन मशीनों को वैरीफाई कर सकें।

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मशीनों के आवंटन, प्रत्याशियों की सेटिंग और बैलेट पेपर को लगाने का काम पूरा हो जाता है तब पार्टी प्रतिनिधियों की मौजूदगी में स्ट्रांग रूम फिर से सील कर दिया जाता है। पार्टी प्रतिनिधि चाहें तो तालों पर अपनी सील भी लगा सकते हैं। स्ट्रांग रूम की २४ घंटे निगरानी डीएसपी रैंक के पुलिस अधिकारी के अंतर्गत की जाती है। केंद्रीय पुलिस बलों द्वारा भी स्ट्रांग रूम की निगरानी की जा सकती है। एक बार सील होने के बाद स्ट्रांग रूम को नियत तारीख और नियत समय पर ही तब खोला जा सकता है जब मशीनों को पोलिंग पार्टियों को सौंपा जाना होता है। स्ट्रांग रूम को खोलने की तारीख व समय सभी प्रत्याशियों व उनके एजेंटो को पहले से बता दिया जाता है।

पोलिंग स्टेशनों को आवंटित मशीनों के अलावा कुछ रिजर्व ईवीएम भी स्ट्रांग रूम से निकालकर एसेम्बली सेगमेंट के किसी केंद्रीय स्थान पर रखी जाती हैं ताकि खराब मशीनों को कम से कम विलंब में बदला जा सके।

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान बिना इस्तेमाल हुई ईवीएम को लाने-ले जाने व स्टोरेज को लेकर बहुत विवाद हुआ था। इसके मद्देनजर इस बार इस्तेमाल की हुई ईवीएम और रिजर्व ईवीएम को सिर्फ जीपीएस लगे वाहनों से ट्रांसपोर्ट किया गया है ताकि इनके मूवमेंट को जिला निर्वाचन अधिकारी और मुख्य निर्वाचन अधिकारी ट्रैक कर सकें।

बूथ से स्ट्रांग रूम

मतदान समाप्त हो जाने के बाद ईवीएम सीधे स्ट्रांग रूम नहीं भेजी जाती है। पीठासीन अधिकारी पहले यह हिसाब तैयार करता है कि मशीनों में कितने वोट रिकार्ड हुए हैं। इस हिसाब की अटेस्टेड कॉपी हर प्रत्याशी के पोलिंग एजेंट को दी जाती है। इसके बाद ईवीएम को सील किया जाता है और सील पर प्रत्याशी और उनके एजेंट अपने हस्ताक्षर कर सकते हैं। यही नहीं, प्रत्याशी और उनके एजेंट सील की जांच भी कर सकते हैं। अब ईवीएम को पोलिंग स्टेशन से स्ट्रांग रूम ले जाया जाता है। जिस वाहन पर मशीनें रखी जाती हैं उसके पीछे-पीछे प्रत्याशी या उनके एजेंट भी आ सकते हैं। ये स्ट्रांग रूम मतगणना केंद्र के पास ही मौजूद होता है। जब इस्तेमाल की हुई ईवीएम लौटाई जाती हैं उसी समय रिजर्व ईवीएम भी लौटानी होती है। जब सभी ईवीएम वापस आ जाती हैं तो स्ट्रांग रूम लॉक किया जाता है। प्रत्याशी या उनके प्रतिनिधि को अपनी सील या लॉक लगाने की इजाजत होती है। इसके अलावा प्रत्याशी या उनके प्रतिनिधि को 24 घंटे स्ट्रांग रूम पर निगाह रखने की अनुमति होती है।

एक बार सील होने के बाद मतगणना वाले दिन की सुबह तक स्ट्रांग रूम खोला नहीं जा सकता है। अगर किसी वजह से स्ट्रांग रूम खोलना हो तो ये काम प्रत्याशी या उनके प्रतिनिधि की मौजूदगी में ही हो सकता है। स्ट्रांग रूम पर तीन स्तर की सुरक्षा रहती है जिसमें भीतरी सुरक्षा सीआरपीएफ के हवाले होती है।

मतगणना तभी शुरू होती है जब प्रत्याशी या उनके प्रतिनिधि मशीनों के नंबर और सील चेक कर लेते हैं।

मतदान के बाद

सेंट्रल यूनिट में लगे 'क्लोज' बटन दबा कर ईवीएम को शट डाउन किया जाता है।

ईवीएम व सेंट्रल यूनिट को उनके बक्से में बंद किया जाता है। बक्से पर सील लगाई जाती है जिस पर पोलिंग एजेंटों के हस्ताक्षर होते हैं।

प्रत्याशियों और पर्यवेक्षकों की मौजूदगी में मशीनें स्ट्रांग रूम में रखी जाती हैं। प्रत्याशी स्ट्रांग रूम के तालों पर अपनी सील लगा सकते हैं।

प्रत्याशियों, रिटर्निंग अधिकारी और पर्यवेक्षक की मौजूदगी में स्ट्रांग रूम खोला जाता है। इस प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की जाती है।

मतगणना वाले दिन सेंट्रल यूनिट मतगणना टेबल पर लाई जाती हैं। सेंट्रल यूनिट के यूनीक आईडी नंबर और सील का सत्यापन करने के बाद उसे पोलिंग एजेंटों को दिखाया जाता है।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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