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Supreme Court: 'धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी' शब्द को संविधान के प्रस्तावना से हटाने की मांग, बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका

Supreme Court: यह याचिका वकील बलराम सिंह और करूणेश शुक्ला ने वकील विष्णु शंकर जैन के माध्यम से दायर की थी।

Krishna Chaudhary
Published on: 2 Sep 2022 7:23 AM GMT (Updated on: 2 Sep 2022 10:31 AM GMT)
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Supreme Court (photo: social media )

Supreme Court. भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में संविधान के प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी' शब्द को हटाने की मांग को लेकर एक नई याचिका दायर की है। शीर्ष अदालत याचिका पर 23 सितंबर को सुनवाई करेगा। इससे पहले साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट में संविधान के प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी' शब्द हटाने की मांग को लेकर एक याचिका दायर की गई थी। इस पर बीते दो सालों से सुनवाई चल रही है। यह याचिका वकील बलराम सिंह और करूणेश शुक्ला ने वकील विष्णु शंकर जैन के माध्यम से दायर की थी, जिसमें जनप्रतिनिधि 1951 की धारा 29ए (5) में धर्मनिरपेक्ष समाजवादी शब्द शामिल करने को भी चुनौती दी गई है।

याचिका में कहा गया है कि ये दोनों शब्द 1976 में 42वें संविधान संसोधन के माध्यम से जोड़े गए थे। जो संवैधानिक सिद्धांतों के साथ – साथ भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विषय – वस्तु के विपरीत थी। इसमें कहा गया है, यह कदम संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(ए) में उल्लिखित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अवधारणा और अनुच्छेद 25 के तहत प्रदत धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार के उल्लंघन के नजरिए से अवैध था।

याचिका में 42वें संविधान संसोधन अधिनियम 1976 की धारा 2 (ए) के जरिए संविधान की प्रस्तावना में शामिल शब्दों 'धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद' को हटाए जाने के लिए उचित निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया गया है। याचिकाकर्ता ने सवाल किया है कि क्या धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद की अवधारणाएं राजनीतिक विचार हैं। बता दें कि इससे पहले साल 2016 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐसी ही याचिका की सुनवाई करते हुए भारतीय संविधान के प्रस्तावना में 'धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद' शब्दों को बरकरार रखा था।

आरएसएस इन दो शब्दों को हटाने की कर चुका है मांग

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 'धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद' को संविधान की प्रस्तावना से हटाने की मांग कर चुका है। संघ ने इन शब्दों को आपातकाल का जख्म बताते हुए कहा कि ये शब्द लोकतांत्रिक मांगों या समसामयिक जरूरतों की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि एक निरंकुश नेता के सियासी षड्यंत्र के तहत प्रस्तावना का हिस्सा बनाए गए हैं।

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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