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Himachal Political Crisis: विक्रमादित्य सिंह के इस्तीफे से सुक्खू सरकार का संकट गहराया, वीरभद्र की फैमिली ने खोल दिया मोर्चा

Himachal Political Crisis: सुक्खू सरकार का संकट उस समय और गहरा गया जब पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman Tiwari
Published on: 28 Feb 2024 6:20 AM GMT (Updated on: 28 Feb 2024 6:34 AM GMT)
Vikramaditya Singh resigned
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Vikramaditya Singh resigned   (photo: social media )

Himachal Political Crisis: हिमाचल प्रदेश में एक सीट पर हुए राज्यसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी हर्ष महाजन की जीत के बाद राज्य में सुखविंदर सिंह सुक्खू की अगुवाई वाली कांग्रेस गहरे संकट में फस गई है। कांग्रेस के 6 विधायकों की क्रॉस वोटिंग और तीन निर्दलीय विधायकों के समर्थन के दम पर भाजपा प्रत्याशी हर्ष महाजन ने कांग्रेस प्रत्याशी अभिषेक मनु सिंघवी को हराने में कामयाबी हासिल की है। कांग्रेस की इस हार के बाद भाजपा की ओर से राज्य की सुक्खू सरकार के अल्पमत में होने का दावा करते हुए फ्लोर टेस्ट कराने की मांग की गई है।

सुक्खू सरकार का संकट उस समय और गहरा गया जब पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। विक्रमादित्य सिंह ने आज प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा कि मैंने अपने इस्तीफे के संबंध में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और प्रियंका गांधी को जानकारी दे दी है। मौजूदा हालात में मैं इस सरकार में आगे काम नहीं कर सकता।

सुक्खू सरकार के इस संकट के पीछे राज्य में पावरफुल वीरभद्र सिंह समर्थकों की लॉबी का हाथ बताया जा रहा है। ऐसे में कांग्रेस हाईकमान ने कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को राज्य में कांग्रेस सरकार के संकट को सुलझाने की जिम्मेदारी सौंपी है।

चुनाव जीतने के बाद वीरभद्र को भुलाया

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह ने आज प्रेस कांफ्रेंस के दौरान अपने दिल का दर्द बयां किया। हिमाचल प्रदेश के विकास में अपने पिता के योगदान को याद करते हुए वे भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने पूरा चुनाव वीरभद्र सिंह के नाम पर लड़ा। चुनाव के समय उनके नाम पर विज्ञापन दिया गया मगर चुनाव जीतने के बाद उन्हें भुला दिया गया। उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति के नाम पर चुनाव लड़कर हिमाचल में कांग्रेस ने जीत हासिल की, उस व्यक्ति की प्रतिमा लगाने के लिए शिमला के माल रोड पर दो गज जमीन तक नहीं दी गई।

उन्होंने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि राज्य में कांग्रेस की जीत सुनिश्चित करने के लिए मेरी मां प्रतिभा सिंह और उस समय के नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने मिलकर काफी प्रयास किया। उन्होंने कहा कि मैं अपने राजनीतिक जीवन में पद की लालसा कभी नहीं की है और मौजूदा हालात में मेरा मंत्री बने रहना संभव नहीं है।

सीएम पर विधायकों की अनदेखी का आरोप

उन्होंने राज्य की सुक्खू सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि चुनाव के बाद विधायकों की लगातार अनदेखी की गई है। सरकार की गवर्नेंस हम सभी के सामने हैं। पार्टी हाईकमान के समक्ष इन मुद्दों को बार-बार उठाया गया मगर कोई समाधान नहीं निकला। सरकार का सबसे बड़ा दायित्व अपने हर वादे को पूरा करना है मगर इसकी भी अनदेखी की गई।

उन्होंने राज्यसभा चुनाव के दौरान क्रॉस वोटिंग की घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि हमसे जितना संभव हो सका, हमने पूरी मजबूती के साथ सरकार का समर्थन किया है मगर यह दुखद है कि मुझे नीचा दिखाने की कोशिश की गई। मेरे कामकाज मैं दखल देने का प्रयास किया गया जबकि मैं किसी भी दबाव में आने वाला व्यक्ति नहीं हूं। उन्होंने कहा कि मैं हमेशा की तरह इस बार भी सही बात का समर्थन और गलत बात का विरोध करना जारी रखूंगा।

मौजूदा संकट के पीछे वीरभद्र कैंप

हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार के मौजूदा संकट के पीछे पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के समर्थकों की पावरफुल लॉबी का हाथ माना जा रहा है। राज्य के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद वीरभद्र सिंह की पत्नी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह को मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था मगर हाईकमान ने सुखविंदर सिंह सुक्खू के नाम पर मुहर लगाई थी।

उसके बाद से ही कांग्रेस में भीतर ही भीतर नाराजगी पनपती रही है। मजे की बात यह कि कांग्रेस हाईकमान ने कभी इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया और अब यह गुस्सा बुरी तरह फूट पड़ा है। प्रतिभा सिंह ने चुनाव के बाद चेतावनी भरे लहजे में कहा भी था कि वीरभद्र सिंह की विरासत और उनके परिवार की अनदेखी नहीं की जा सकती।

वीरभद्र समर्थक विधायकों ने किया खेल

हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार के मौजूदा संकट में एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि राज्यसभा चुनाव के दौरान क्रॉस वोटिंग करने वाले सभी विधायकों को वीरभद्र सिंह का समर्थक माना जाता है। वीरभद्र कैंप से जुड़े हुए इन विधायकों ने ही राज्यसभा चुनाव में बड़ा खेल कर दिया जिससे कांग्रेस प्रत्याशी को हार का मुंह देखना पड़ा।

दूसरी ओर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू विधायकों के भीतर पनप रही इस नाराजगी को भांप नहीं सके। उन्होंने विधायकों के साथ किसी भी प्रकार का संवाद नहीं किया जिसकी कांग्रेस को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है।

प्राण प्रतिष्ठा के समय पार्टी से अलग लाइन

मुख्यमंत्री सुक्खू के खिलाफ बागी तेवर दिखाने वाले वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह कई मुद्दों पर पार्टी लाइन से अलग बयान देते रहे हैं। अयोध्या में भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान उनका बयान काफी चर्चाओं में रहा था। उस समय उन्होंने कहा था कि वे कट्टर हिंदू हैं और भगवान में आस्था रखने वाले एक हिंदू के रूप में उनकी यह जिम्मेदारी है कि वे प्राण प्रतिष्ठा में अपनी मौजूदगी दर्ज कराएं। उन्होंने अयोध्या में आयोजित प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में हिस्सा लिया था जबकि कांग्रेस ने इस मुद्दे पर अलग लाइन लेते हुए प्राण प्रतिष्ठा में शामिल न होने का ऐलान किया था।

वीरभद्र के रणनीतिकार रहे हैं हर्ष महाजन

एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि राज्यसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने हर्ष महाजन को चुनावी अखाड़े में उतारा था, जिन्हें लंबे समय तक पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का रणनीतिकार माना जाता रहा है। हर्ष महाजन ने 2022 के विधानसभा चुनाव से पूर्व भाजपा की सदस्यता ली थी। वीरभद्र के इस पूर्व रणनीतिकार ने राज्यसभा चुनाव में भाजपा की कम ताकत होने के बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी को चित कर दिया।

चुनावी जीत हासिल करने के बाद उन्होंने कहा कि राज्य की कांग्रेस सरकार चंद दिनों की मेहमान है क्योंकि मुख्यमंत्री अपना बहुमत खो चुके हैं। सियासी जानकारी का मानना है कि हर्ष महाजन को वीरभद्र सिंह कैंप से पूरी मदद मिली और इसी के दम पर उन्होंने बड़ी जीत हासिल की है।

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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