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Karnataka Election Result: कर्नाटक में 38 वर्षों से कोई नहीं कर सका रिपीट,रामकृष्ण हेगड़े ने दिखाया था आखिरी बार कमाल

Karnataka Election Result 2023: राज्य में पिछले 38 साल से किसी भी पार्टी की सत्ता रिपीट नहीं हुई है। 1985 में रामकृष्ण हेगड़े की अगुवाई में जनता पार्टी सत्ता में रहते हुए चुनाव जीतने में कामयाब रही थी।

Anshuman Tiwari
Published on: 13 May 2023 1:05 PM GMT
Karnataka Election Result: कर्नाटक में 38 वर्षों से कोई नहीं कर सका रिपीट,रामकृष्ण हेगड़े ने दिखाया था आखिरी बार कमाल
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Image: Social Media

Karnataka Election Result 2023: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच जोरदार टक्कर मानी जा रही थी मगर चुनावी रुझानों से स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस बहुमत हासिल करने की ओर बढ़ रही है। कर्नाटक में पिछले 38 साल से जारी चुनावी ट्रेंड इस बार भी कायम दिख रहा है। राज्य में पिछले 38 साल से किसी भी पार्टी की सत्ता रिपीट नहीं हुई है। 1985 में रामकृष्ण हेगड़े की अगुवाई में जनता पार्टी सत्ता में रहते हुए चुनाव जीतने में कामयाब रही थी।
कर्नाटक में यदि उसके बाद के विधानसभा चुनावों को देखा जाए तो मतदाताओं ने हमेशा बदलाव के पक्ष में वोटिंग की है। कर्नाटक के चुनावी रुझानों को देखकर माना जा रहा है कि राज्य के मतदाताओं ने इस बार भी यही परंपरा निभाई है। कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में वापसी करते हुए दिख रही है।

इस बार हुआ था सबसे ज्यादा मतदान

राज्य विधानसभा की 224 सीटों के लिए इस बार 2615 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे थे और इन प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करने के लिए राज्य के 5.13 करोड़ मतदाताओं ने वोट डाले। इस बार राज्य के मतदाताओं ने मतदान के प्रति काफी उत्साह दिखाया और चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक इस बार 73.19 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस बार के चुनाव में हुए मतदान के आंकड़े को देखा जाए तो 1957 के बाद इस बार सबसे ज्यादा मतदान हुआ।
राज्य में 2018 के विधानसभा चुनाव में 72.10 फ़ीसदी मतदान हुआ था। इस तरह इस बार के मतदान में करीब एक फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। मतदान का आंकड़ा यह भी बताता है कि इस बार मतदाताओं के मन में अपने वोट के प्रति काफी उत्साह था। भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़े मुकाबले को भी इसका बड़ा कारण माना जा रहा है।

हेगड़े के बाद कोई नहीं दिखा सका कमाल

यदि कर्नाटक के चुनावी इतिहास को देखा जाए तो पिछले 38 वर्षों से राज्य में यह परंपरा रही है कि कोई भी सियासी दल सत्ता में रिपीट करने में कामयाब नहीं हो सका है। कर्नाटक के दिग्गज नेता माने जाने वाले रामकृष्ण हेगड़े की अगुवाई में जनता पार्टी 1985 में सत्ता में रहते हुए चुनाव जीतने में कामयाब रही थी। हेगड़े की कर्नाटक की सियासत पर मजबूत पकड़ मानी जाती थी और इसी के दम पर वे सत्ता में रहते हुए मतदाताओं का दोबारा समर्थन पाने में कामयाब रहे थे।

हालांकि 1985 के बाद कोई भी राजनीतिक दल सत्ता में रहते हुए चुनाव जीतने में कामयाब नहीं हो सका। पिछले 29 वर्षों से जारी यह परंपरा इस बार भी बरकरार रही है और कांग्रेस ने सत्ताधारी भाजपा को सत्ता से बेदखल करने में कामयाबी हासिल की है।

पिछले पांच चुनावों में सिर्फ दो बार मिला स्पष्ट बहुमत

वैसे राज्य के चुनावी इतिहास के संबंध में एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि यदि पिछले पांच विधानसभा चुनावों को देखा जाए तो सिर्फ दो बार 1999 और 2013 में किसी सिंगल पार्टी को बहुमत हासिल हुआ है। बाकी अन्य सभी मौकों पर बाहरी सपोर्ट से सरकार बनाई गई है। 2004, 2008 और 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनने में कामयाब रही और इसके बाद पार्टी ने बाहरी समर्थन से सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की।

2018 में भाजपा ने दिखाई थी ताकत

यदि कर्नाटक में 2018 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव को देखा जाए तो भाजपा 104 सीटों पर जीत हासिल करके सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। पार्टी को बहुमत हासिल करने के लिए 9 विधायकों के समर्थन की दरकार थी। दूसरी ओर कांग्रेस को 78 और जद एस को 37 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाबी मिली थी।

त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में कांग्रेस ने भाजपा को सरकार बनाने से रोकने के लिए कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाने का ऑफर दिया था। इस मौके को लपकते हुए कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए थे। हालांकि एक साल बाद ही दोनों दलों की खींचतान के कारण उनकी सरकार गिर गई थी।

बाद में जद एस और कांग्रेस के 17 विधायकों के टूटने के कारण भाजपा मौके का फायदा उठाते हुए राज्य की सत्ता पर काबिज हो गई थी। भाजपा के वरिष्ठ नेता बीएस येदियुरप्पा ने इस काम में बड़ी भूमिका निभाई थी और उन्हें राज्य में मुख्यमंत्री बनाया गया था। हालांकि बाद में येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई की ताजपोशी की गई थी। बोम्मई की अगुवाई में ही पार्टी चुनाव मैदान में उतरी थी मगर पार्टी को कांग्रेस के मुकाबले जीत नहीं हासिल हो सकी।

Anshuman Tiwari

Anshuman Tiwari

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