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नई तरह की हरित क्रांति, शहरों में अपने मकान की छतों पर खेती का ट्रेंड तेजी से बढ़ा

seema
Published on: 30 Nov 2018 7:39 AM GMT
नई तरह की हरित क्रांति, शहरों में अपने मकान की छतों पर खेती का ट्रेंड तेजी से बढ़ा
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नई तरह की हरित क्रांति, शहरों में अपने मकान की छतों पर खेती का ट्रेंड तेजी से बढ़ा

नई दिल्ली। बड़े शहरों में किचन गार्डन और शहरों में खेती का ट्रेंड तेजी से बढ़ा है। बढिय़ा नौकरियां करने वाले, ऊंचे ओहदे वाले और बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम करने वाले लोग खेती को अपना रहे हैं। इनको आधुनिक दौर का किसान भी कहा जा सकता है। बहुत से लोग ऐसे हैं जिनके पास साग सब्जी उगाने के लिए जगह नहीं है लेकिन अपने मकान की छत पर या किराये के खेत लेकर ये लोग किसानी कर रहे हैं।

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अर्बन फार्मिंग की एक वजह है जागरूकता का बढऩा। जिस तरह बीमारियां बढ़ रही हैं, प्रदूषण बढ़ता जा रहा है और फलों सब्जियों में केमिकल विषाक्तता बढ़ती जा रही है उससे स्वयं के काम की सब्जियां या फल उगाने का चलन बढ़ा है। असल में जो सब्जी और फल बाजार में मिलते हैं, उनके बारे में ग्राहक को पक्की जानकारी नहीं होती है कि वे कहां और किस हालात में उगाए गए हैं। एक अर्बन फार्मर के मुताबिक, 'जब हम अपने खेत में सब्जी या फल उगाते हैं, तो हमें उसका पूरा विवरण पता होता है, जैसे बीज या पौधा कहां से आया, किस तरह की खाद का इस्तेमाल हुआ, कीटनाशक पेड़ पर डाला गया है या नहीं।' खुद से खेती करने का सबसे बड़ा फायदा ये है कि आप जैविक और स्वादिष्ट सब्जियों का लुफ्त उठा पाते हैं।

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44 साल की मीता सरीन ने तो अपने घर की छत पर ही किचन गार्डन बना डाला। मीता आउटर एरिया डिजाइनर हैं और उन्होंने कभी किसानी का काम नहीं किया था। मीता बताती हैं कि सर्दी के मौसम के लिए उन्होंने साग और सब्जियां लगाई हैं। घर पर उगने वाली सब्जियों का ही इस्तेमाल खाने के लिए हो रहा है। डॉयचे वेले से बातचीत में मीता उन सब्जियों के बारे में बताती हैं जिनको उन्होंने उगाया है, 'मैंने पालक, रॉकेट लीव्स, लेटस और अन्य सलाद के पत्ते उगाए हैं। इसके अलावा हमने सरसों, चेरी टमाटर, बथुआ, धनिया, हरी मिर्च लगाए हैं।Ó मीता ने पांच फीट लंबे और पंद्रह इंच चौड़े प्लांटर्स खरीदे हैं जिसपर वे आसानी से साग और सब्जी उगा पा रही हैं। वह कहती हैं, 'मुझे और मेरे पति को ग्रीन सैलेड खाने का बहुत शौक है। हम हमेशा से हरा सलाद खाना पसंद करते हैं। मैं चाहती थी कि क्यों ना घर पर हरी सब्जियां और साग उगाकर उसका इस्तेमाल किया जाए।Ó

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'किचन गार्डन में सब्जी उगाने का एक और लाभ यह है कि आप अपने मन मुताबिक सब्जी को तोड़ सकते हैं और खाने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।' ये बाजार से थोड़ी सस्ती के साथ-साथ स्वच्छ भी होती हैं।

भारत में इन दिनों जैविक खेती या कीटनाशक रहित सब्जी और फल उगाने पर जोर दिया जा रहा है। लोग स्वस्थ खाने के लिए थोड़े ज्यादा पैसे तक खर्च करने को तैयार हैं। जो लोग खुद से घर पर सब्जी नहीं उगा पा रहे हैं, वो ऐसे खेतों से सब्जी और फल ऑनलाइन ऑर्डर कर रहे हैं, जहां खेती के लिए कीटनाशक और अन्य रासायनों का इस्तमाल नहीं होता है। होम गार्डन कैसे बनाना है और वहां क्या क्या लगाया जा सकता है, एडिबल रूट्स नाम की एक संस्था यही सब सिखाती है। कंपनी लोगों के लिए वर्कशॉप भी आयोजित करती है। एडिबल रुट्स के संस्थापक कपिल मांडवेवाला के मुताबिक, 'शहरी लोगों और उनके खान-पान में सही तालमेल नहीं है। शहर में रहने वाले लोग खेती से जुड़े बुनियादी सवालों के जवाब नहीं जानते हैं। वे यह नहीं जानते कि उनका खाना कहां से आ रहा है, उसे कौन और किस तरह से उगा रहा है।'

कपिल बताते हैं कि शुरुआत में जब उन्होंने वर्कशॉप का आयोजन किया, तो लगा था कि कुछ ही लोग घर जाकर सब्जी उगा पाएंगे, इसलिए हमने उन्हें व्यावहारिक अनुभव के साथ आत्मविश्वास भी दिलाया कि वे घर पर आम किसान की तरह सब्जी-फल उगा सकते हैं। सब्जी उगाने के पूरे सफर में हम उनके साथ रहते हैं। हम उन्हें छोटी सी छोटी जानकारी देते हैं।'

मुदिता और मीता सरीन इस मौसम में सब्जी उगता देख काफी उत्साहित हैं। मुदिता बताती हैं कि हर हफ्ते जो भी सब्जी खेत से तोड़कर लाती हैं, उसको रिश्तेदारों और पड़ोसियों में भी बांटती हैं। ताजा, हरी-भरी और जैविक सब्जी देख उनके पड़ोसी और रिश्तेदार भी काफी प्रभावित होते हैं।

बिहार के पूर्णिया जिला मुख्यालय स्थित लाइन बाजार के निवासी गुलाम सरवर वैसे तो पेशे से बीमा एजेंट हैं लेकिन उनके भीतर एक किसान भी छुपा है। उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया कि 'मेरे दादा डॉ.अब्दुल जब्बार खान डॉक्टर थे, लेकिन उनकों पेड़-पौधों से बहुत ज्यादा लगाव था। 70 के दशक में यह पूरा इलाका आम का बागान था। धीरे-धीरे आम बागान खत्म हो गया। घर के पीछे जो जमीन थी, उसी पर पापा मोहम्मद वाली खान पौधा और कलम लगा कर रखते थे। बचपन में उनको देखते-देखते मुझे भी पेडों से प्यार होने लगा।

गुलाम सरवर ने अपने मकान की ५५०० वर्ग फुट छत पर जो खेत तैयार किया है, उसमें दुर्लभ प्रजाति के मेडिसिनल प्लांट के साथ-साथ सपाटू, शहतूत, 32 मसालों की खुशबू वाला ऑल स्पाइस, नींबू, शो प्लांट, गुलाब के साथ-साथ चायनीज अमरुद समेत हर मौसम की सब्जी उगती है।

गुलाम सरवर बताते हैं कि बाजार में जो सब्जी मिलती है, उसमें अधिकांश में रासायनिक खाद का इस्तेमाल होता है लेकिन उनकी बागवानी में सबकुछ जैविक तरीके से उपजाया जाता है। उन्होंने बोनसाई तकनीक के सहारे कई पुराने पौधों को छत पर संजोकर रखे हैं। उनकी छत पर आज भी 20 साल पुरानी तुलसी, पीपल, पाखर समेत अन्य पौधे हैं, जिन्हें उन्होंने संरक्षित कर अपने छत पर सजा कर रखा है। गुलाम भाई के 5500 स्क्वायर फ़ुट के छत पर गमलों की दुनिया है। कुल जमा 600 गमला, जिसमें फूल-पत्ती, फल-सब्ज़ी सब कुछ है। वे हर साल 200 नींबू के पौधे बाँटते हैं। छत पर अपनी बसाई बाग़वानी के फल-फूल-सब्ज़ी भी वे बाँटते

ही हैं।

यदि आप चाहें तो अपने परिवार के लिए गमले में ही सब्जी उगा सकते हैं। घर के पुराने डिब्बे में मिट्टी भरकर धनिया का पत्ता उतना तो उगा ही सकते हैं, जितना हमारे प्लेट के लिए चाहिए। इसके अलावा हरी मिर्च और नींबू तो आराम से गमले में उगाया जा सकता है। इसी तरह हरी मिर्च, मूली, हल्दी, अदरक आदि भी गमलों में बड़ी सुगमता से उगाई जा सकती है।

  • गमले, थर्मोकॉल के डिब्बों आदि में कोई भी सब्जी आराम से उगाई जा सकती है।
  • करेला, पपीता, भिंडी या गोभी, सब आइटम छत या बालकनी में उगा सकते हैं।
  • साल में एक बार उस गमले की मिट्टी बदल दी जानी चाहिए।
  • समय समय पर गुड़ाई भी करनी चाहिए।
  • पानी दें लेकिन सीमित मात्रा में नहीं तो पौधे खराब हो सकते हैं।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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