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Kshatriya and Rajput: क्षत्रिय और राजपूत में ये है अंतर !

kshatriya and Rajput Difference: वर्तमान में राजपूत इन्ही क्षत्रियों के वंशज कहे जाते हैं । किन्तु क्षत्रिय से राजपूत तक आते आते एक लम्बा समय लग गया। राजपूत शब्द रजपूत जिसका अर्थ धरतीपुत्र जिसका उपयोग मुग़ल काल में अधिक प्रयोग देखने को मिला है ।

Akshita Pidiha
Published on: 31 Aug 2023 12:39 PM GMT
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kshatriya and Rajput Difference: प्राचीन समय का भारत सामाजिक जातियों से मिलकर बना था। जिसमें सबके हितों की रक्षा हो, यह ध्यान रखा जाता था । साथ ही सभी लोग ज़िम्मेदारी पूर्वक अपने कर्तव्य का पालन करते थे । ये जातियां मुख्य रूप से चार वर्णो के अंतर्गत आती थीं। जिनमे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र थे । इन सबके लिए अलग अलग कार्य बनाए गये थे । ताकि समाज चल सके। जैसे ब्राह्मणों को यज्ञ, देवताओं की पूजा और समाज के पथ प्रदर्शन की जिम्मेदारी दी गयी, वहीं समाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी क्षत्रियों को दी गयी । फिर, व्यापार की जिम्मेदारी वैश्य और सेवा कार्य की जिम्मेदारी शूद्र वर्ग की थी।

पर समय निरंतर बदलता रहता है। जिसमें कुछ जाति प्रवेश करती है, तो कुछ अलग हो जाती है । इसलिए इन सभी में कुछ कुछ बदलाव होते गए । ऐसे ही जो क्षत्रिय वर्ण है वह क्षत्रिय जाति में बदल गया और बाद में इन्हे ही राजपूत कहा जाने लगा,लेकिन ऐसा नहीं है, क्षत्रिय कोई जाति नहीं है बल्कि एक वर्ण है जिसमे हर उस योद्धा का नाम शामिल है जिसने किसी भी तरह का युद्ध किया,

क्षत्रिय अपनी वीरता और साहस के लिए जाने जाते थे। अतः युद्ध और सुरक्षा की जिम्मेदारी का निर्वहन करने की वजह से इन्हे क्षत्रिय कहा जाता था। क्षत्रियों के वंशज वर्तमान में खुद को राजपूत कहते हैं, यह बदलाव कैसे हुआ यह जानते हैं ।

क्षत्रिय —- प्राचीन सिद्धांतों और मान्यताओं के अनुसार क्षत्रिय की उत्पत्ति ब्रह्मा की भुजाओं से हुई मानी जाती है। वहीं महाभारत के आदि पर्व के अंशअवतारन पर्व के अध्याय 64 के अनुसार क्षत्रिय वंश की उत्पत्ति ब्राह्मणों द्वारा हुई है।एक और कथा के अनुसार क्षत्रियों की उत्पत्ति अग्नि से हुई थी।कुछ के अनुसार वशिष्ठ मुनि ने आबू पर्वत पर चार क्षत्रिय जातियों को उत्पन्न किया था । जिसमे प्रतिहार, परमार, चौहान और चालुक्य या सोलंकी थे।वहीं वैदिक काल की बात की जाए तो अंतिम अवस्था में राजन्य या राजन की जगह क्षत्रिय शब्द ने ले ली । जिसका अर्थ किसी व्यक्ति का किसी स्थान पर नियंत्रण करना है ।वास्तव में क्षत्रिय समस्त राजवर्ग और सैन्य वर्ग का प्रतिनिधित्व करता था। क्षत्रिय वर्ग का मुख्य कर्तव्य युद्ध काल में समाज की रक्षा के लिए युद्ध करना तथा शांति काल में सुशासन प्रदान करना होता था। और इस दौरान कर्म के आधार पर वर्ण गिना जाता था,

राजपूत —- राजपूतों की उत्पत्ति के विषय में इतिहास विशेषज्ञों का मत कभी एक नहीं रहा है। कई इतिहासकारों का कहना है कि प्राचीन क्षत्रिय वर्ण के वंशज राजपूत जाति के रूप में बदल गए । वहीं औपनिवेशिक काल के कुछ विद्वान कहते हैं कि क्षत्रिय विदेशी आक्रमणकारियों के वंशज हैं । जो भारतीय समाज में आकर रच बस गए और फिर यहाँ से कभी नहीं गए । राजपुत्र शब्द को पहली बार 11 वीं शताब्दी के संस्कृत शिलालेखों में शाही पदनामी लोगों के लिए देखा गया। जो राजा के पुत्रों और उसके करीबी के लिए उपयोग हुआ ।धीरे धीरे राजपूत एक सामाजिक वर्ग बन गया और फिर ये वंशानुगत कब होते चला गया कोई भी अनुमान नहीं लगा सका । हालांकि कई किताबे बताती हैं की राजपूत सिर्फ वही कहा जाता था जिसका ताल्लुक राजा के परिवार से हो,

वर्तमान में राजपूत इन्ही क्षत्रियों के वंशज कहे जाते हैं । किन्तु क्षत्रिय से राजपूत तक आते आते एक लम्बा समय लग गया। राजपूत शब्द रजपूत जिसका अर्थ धरतीपुत्र जिसका उपयोग मुग़ल काल में अधिक प्रयोग देखने को मिला है । आज के समय में राजपूतों को अलग अलग नाम से जाना जाता है ।जैसे उत्तर प्रदेश में ठाकुर, बिहार में बाबूसाहेब या बबुआन, गुजरात में बापू, पर्वतीय क्षेत्रों में रावत या राणा आदि।

इन सब से समझ आ ही गया होगा कि क्षत्रिय भारतीय समाज की वर्ण व्यवस्था का एक हिस्सा थे। जिनका मुख्य कार्य काम रक्षा करना था ।ये समाज और पशुओं की सुरक्षा करते थे। इसे आप किसी जातिगत व्यवस्था के रूप में नहीं देख सकते हैं। वहीं राजपूतों का उदय इन्हीं क्षत्रिय वर्ण के राजाओं से हुआ माना जाता है, इसलिए राजपूत खुद को क्षत्रियों का वंशज मानते हैं,

Akshita Pidiha

Akshita Pidiha

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