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पूरब के स्कॉटलैंड में फिर 'बाहरी' लोगों पर आफत

seema
Published on: 8 Jun 2018 6:42 AM GMT
पूरब के स्कॉटलैंड में फिर बाहरी लोगों पर आफत
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पूरब के स्कॉटलैंड में फिर 'बाहरी' लोगों पर आफत

शिलांग: पूरब का स्काटलैण्ड यानी शिलांग आजकल दहशत और हिंसा से घिरा हुआ है। मसला यहां के खासी जनजाति के लोगों और शिलांग में डेढ़ सौ साल से रह रहे सिखों के बीच तनातनी से उपजा हुआ है जो इतना तूल पकड़ चुका है कि पंजाब सरकार तक को यहां दखल देना पड़ा है।

एक और हैरान करने वाली बात है पत्थरबाजी की जो अभी तक कश्मीर के उपद्रवग्रस्त इलाकों के साथ जुड़ी हुयी रही है। वहां तो रोजाना ही सड़कों पर सुरक्षा बलों पर पथराव की वारदातें अब आम हो चली हैं। लेकिन अब मेघालय की राजधानी शिलांग में पत्थरबाजी की घटनाओं ने इस राज्य के बाशिंदों को हैरान कर डाला है। बड़े पैमाने पर सामूहिक पत्थरबाजी यहां पहले कभी नहीं देखी गयी है। ऐसा होना अपने आप में एक खतरनाक संकेत है।

जानते हैं शिलांग के बारे में

मेघालय राज्य की स्थापना बिना किसी हिंसा-बवाल के 1972 में हुयी थी। अलग राज्य बनने के बाद सब कुछ ठीक ठाक चलता रहा लेकिन 1979 में हालात बदल गये। दशकों से यहां रह रहे बंगालियों को राज्य से बाहर खदेड़ा जाने लगा। बंगाली समुदाय के लोग घर-जमीन बेच कर राज्य से पलायन कर गये। ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने क्लेरिकल काम करने के लिये बंगालियों को यहां बसाया था। लंबे समय तक यहां के समाज का हिस्सा बने के बावजूद बंगालियों को सब कुछ छोड़ कर भागना पड़ा। मामला कुछ साल शांत रहा लेकिन 1987 में फिर हालात बिगड़ गये। इस बार नेपालियों को निशाना बनाया गया जिसमें बिहारी भी पिस गये। दूध आदि का व्यापार करने वाले बिहारियों को मेघालय छोड़ कर भागना पड़ा। साल भर तक कफ्र्यू लगा रहा। इसके अलावा 1984 और 1992 में भी सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुयीं हैं। इन वारदातों से गैर-जनजातीय समुदाय ने ये सबक सीखा कि उन्हें अपने समुदाय के लोगों के साथ मिल कर एक ही जगह पर रहना है। ये होता भी रहा लेकिन जनसंख्या बढऩे के साथ इनको ज्यादा जगह की जरूरत पडऩे लगी। इसके बावजूद ये लोग अन्यत्र किसी बड़ी जगह जा कर बसने के पक्ष में नहीं रहे। भूमि अंतरण कानून के तहत गैर जनजातीय लोग मेघालय में जमीन नहीं खरीद सकते हैं। उनको सिर्फ शिलांग के बीचों बीच 'यूरोपियन वार्ड' नामक इलाके में ही जमीन या मकान खरीदने की अनुमति है। नतीजा ये हुआ कि शिलांग के इस इलाके की जो छोटी-छोटी रिहायशी बस्तियां थीं वो स्लम में तब्दील हो गयीं हैं। यहां मकनों के अलावा दफ्तरों, बैंक, दुकानों की ऐसी भरमार है जो किसी बड़े महानगर की बस्ती को मात देती हैं।

मेघालय में अधिकांश गैर जनजातीय समुदाय बहुत लंबे समय से बसा हुआ है। सिंधी, मारवाड़ी, सिख, बंगाल, नेपाली, बिहारी सब अलग-अलग व्यवसायों में लगे हये हैं। यहां अनरक्षित सीटों पर बंगाली और नेपाली एमएलए भी चुने जा चुके हैं। मेघालय बनने से पहले ये असम का हिस्सा हुआ करता था और तत्कालीन असम की राजधानी शिलांग ही थी। 1874 में बंगाल प्रेसीडेंसी से असम को अलग कर नया प्रांत बनाया गया था जिसके तहत खासी, गारो, जयंतिया, नगा और लुशाई हिल्स, सिल्हट, कछार और ग्वालपाड़ा इलाके आये थे। शिलांग असम क्षेत्र की राजधानी बनायी गयी थी। 1905 में अंग्रेजों ने बंगाल को हिन्दू और मुसलमानों के बीच बांट कर पश्चिम बंगाल और पूर्वी बंगाल बना दिया। अब पूर्वी बंगाल और असम नामक दो प्रांत अस्तित्व में आ गये। अब इस क्षेत्र की ग्रीष्मकालीन राजधानी बन गयी शिलांग और शीतकालीन राजधानी बनी ढाका। इस दौर में जगह-जगह से लोग शिलांग आ कर बसे। 1947 में बंटवारे के परिणामस्वरूप सिल्हट (शिलांग से 100 किमी दूर) चला गया ईस्ट पाकिस्तान में। अब शिलांग में बंगाली शरणार्थियों की बाढ़ आ गयी। यहीं से असम से बंगालियों को निकालने का अभियान शुरू हो गया लेकिन शिलांग इससे अछूता रहा। लेकिन 1979 में मेघालय में भी बंगालियों की शामत आ गयी।

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जनजाति समुदाय को हक की चिंता

भले ही मेघालय में गैर जनजातीय समुदाय कई दशकों से बसा हुआ है लेकिन जनजातीय लोग आज भी इन्हें सशंकित नजरों से देखते हैं। ऐसा तब है जब जनजातीय समुदाय को ढेरों छूट मिली हुयी है। रोजगार के क्षेत्र में मेघालय की खासी, जयंतिया, गारो, हाजोंग और कोच जनजातियों को 80 फीसदी आरक्षण मिला हुआ है। फिर भी जनजातीय समुदाय को लगता है कि 'बाहरी' लोग उनका हक मार रहे हैं, उनकी नौकरियों के अवसर छीने ले रहे हैं।

अब 31 मई से शुरु हुए ताजा घटनाक्रम में सिख निशाने पर हैं। दो समुदायों के बीच छिटपुट विवाद ने विकराल रूप धारण कर लिया है। मामला मजहबी सिख समुदाय की लड़कियों और खासी समुदाय के एक लड़के के बीच झगड़े से शुरू हुआ। खासी युवक शिलांग पब्लिक ट्रांसपोर्ट सर्विस की बस चला का ड्राइवर था। सिख लड़कियों की शिकायत थी कि बस ऐसे खड़ी की गयी थी कि उन्हें पानी भरने के लिये जाने में दिक्कत हो रही थी। ड्राइवर और लड़कियों में तनातनी यहां तक बढ़ गयी कि लड़कियों ने बस पर पथराव किया और अपने परिवारों के पुरुषों को खबर कर दी जिन्होंने मौके पर पहुंच कर बस ड्राइवर तथा दो अन्य लड़कों को पीट दिया। ये तीनों पुलिस थाने गये और एफआईआर दर्ज करा दी। सिखों ने भी अपनी तरफ से रिपोर्ट दर्ज करायी। थाने में ही दोनों पक्षों के बीच सुलह करा दी गयी और मामला खत्म समझ लिया गया। लेकिन ये खत्म नहीं हुआ था।

इसी दोपहर जनजाति समुदाय की कुछ महिलाएं सिख समुदाय के लोगों से भिड़ गयीं और देखते देखते मामले ने सांप्रदायिक रंग ले लिया। पुलिस मौके पर पहुंची और लोगों को खदेड़ दिया। इसके बाद व्हाट्सअप पर मैसेज चलने शुरू हो गये कि पुलिस की कार्रवाई में तीन लोग मारे गये हैं। फिर क्या था, सैकड़ों की भीड़ जमा हो गयी और उपद्रव करने लगी। पुलिस पूरी रात उपद्रवियों से निपटती रही, कई बार आंसू गैस के गोले छोड़े गये। 1 जून की सुबह कफ्र्यू लगा दिया गया। लेकिन कफ्र्यू में जब भी ढील गयी, भीड़ फिर पथराव करने लगी। स्थिति इस कदर बिड़ती गयी कि सेना को बुलाया गया। सिखों के परिवार घर बार छोड़ कर गुरुद्वारे या अन्य सुरक्षित स्थानों पर शरण लिये हुये हैं। वैसे, स्थानीय लोगों का ये भी मानना है कि राजनीतिक दल भी मौके का फायदा उठा रहे हैं। आरोप हैं कि राज्य की नेशनल पीपुल्स पार्टी सरकार को गिराने का भी कुचक्र रचा जा रहा है।

पंजाबी लेन

भारत में आमतौर पर लोग इस बात से अनजान हैं कि शिलांग में 'पंजाबी लेन' जैसी कोई जगह भी है जहां सिख लोग रहते हैं। इसे स्वीपर्स कालोनी भी कहा जाता है। शिलांग में सिख 1857 से भी पहले जाये गये थे। दलित समुदाय के इन लोगों को साफ-सफाी के कामों के लिये पंजाब से ला कर यहां बसाया गया। पंजाबी लेन के बाशिंदों का दावा है कि उनके पुरखों को 1853 में स्थानीय मेलियम (गांव) के साईम यानी प्रधान ने जमीन का ये टुकड़ा दिया था। इनका ये भी दावा है कि 2008 में गांव के प्रधान ने मेघालय राज्य बिजली निगम को दी एक चिट्ठी में ये पुष्टि की थी कि सिखों को स्थाई निवास के लिये जमीन दी गयी है। बहरहाल, स्थानीय जनजातीय लोग सिखों के दावों को खारिज करते हैं और इन लोगों को शहर से बाहर कहीं बसाने की मांग करते रहे हैं। लेकिन सिख समुदाय के लोग कहीं और जाने को तैयार नहीं हैं। लेकिन अब राज्य सरकार ने इन लोगों को कहीं और बसाने का मन बना लिया है। इसके लिये उप मुख्यमंत्री प्रेस्टोन टिनसांग की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कमेटी बना दी गयी है। शासन स्तर पर जनजातीय और दुकानदारों के संगठनों के प्रतिनिधियों से बात की है। इन संगठनों की एक ही मांग है कि सिखों को कहीं और बसाया जाये।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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