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लखनऊ: ब्लू व्हेल से पैरेंट्स में दहशत, एक्‍सपर्ट बोले- चाइल्‍ड लॉक है बेहतर ऑप्शन

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Published on: 19 Aug 2017 9:59 AM GMT
लखनऊ: ब्लू व्हेल से पैरेंट्स में दहशत, एक्‍सपर्ट बोले- चाइल्‍ड लॉक है बेहतर ऑप्शन
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ब्लू व्हेल चैलेंज इफेक्ट: लखनऊ के सभी स्कूलों में बच्चों के मोबाइल ले जाने पर रोक

लखनऊ: दुनिया भर में तेजी से प्रचलित हो रहे जानलेवा गेम ब्‍लू व्‍हेल ने सैकड़ों जान लेने के बाद राजधानी के पैरेंटस को भी दहशतजदा कर रखा है। ब्‍लू व्‍हेल गेम की दहशत इस कदर है कि पैरेंट्स अपने बच्‍चों के मुंह से ब्‍लू व्‍हेल का नाम सुन भर लेने से दहशत से कांप उठ रहे हैं।

हालांकि राजधानी में ऐसा मात्र एक केस ही सामने आया है और इसमें अभी तक किसी की जान नहीं गई है, लेकिन पैरेंटस के चेहरे पर इस गेम का डर साफ दिख रहा है।

ब्‍लू व्‍हेल सुनकर मां ने डांटा, बच्‍चा हुआ बेहोश

राजधानी के आर्मी पब्लिक स्‍कूल के एक 10 वर्षीय छात्र ने घर पर अपनी मां के मोबाइल पर यू टयूब खोला और ब्‍लू व्‍हेल मछली का वीडियो देखने लगा। इस दौरान उसकी मां ने उसके मुंह से ब्‍लू व्‍हेल शब्‍द सुनकर उसे इतना डांटा कि बच्‍चा घर में ही सदमे से बेहोश हो गया। इसके बाद उसे साइकलोजिस्‍ट स्मिता श्रीवास्‍तव के पास ले जाया गया। उन्‍होंने बच्‍चे की काउंसिलिंग की।

स्मिता श्रीवास्तव ने बताया कि बच्‍चे को क्‍लीनिक के अंदर लाने के लिए भी उसे फुसलाना पडा। बच्‍चा इतना ज्‍यादा डरा हुआ था कि सही बात बताने में चार से पांच घंटे मशक्‍कत करनी पड़ी। ऐसे में हमने उसके पैरेंटस को बच्‍चे से फ्रेंडली होने की सलाह दी है और हम लगातार उसकी काउंसिलिंग कर रहे हैं। बच्‍चा एक मिसअंडरस्‍टैंडिंग की वजह से ऐसे सदमे में चला गया।

आगे की स्लाइड में जानिए किस तरह फैला है पैरेंट्स में डर

पैरेंट्स एसोसिएशन ने बुलाई मीटिंग

लखनऊ पैरेंट्स एसोसिएशन के अध्‍यक्ष प्रदीप कुमार ने बताया कि इस गेम के बारे में सुनकर हमने एक मीटिंग बुलाई और पैरेंटस को जागरूक करने के लिए उन्‍हें टिप्‍स दिए। इस दौरान मौजूद डा प्रांजल अग्रवाल ने बताया कि ऐसे गेम को बच्‍चों की पहुंच से दूर रखने के लिए मोबाइल में किड लॉक का इस्‍तेमाल करना चाहिए और बच्चों से एकदम फ्रेंडली रहना चाहिए ताकि अगर वह इसकी गिरफ्त में हो तो आपको बता सके।

एक्‍सपर्ट बोले- प्रीकाशन ही है बचाव

साइबर एक्‍सपर्ट अनुज अग्रवाल ने बताया कि यह ब्‍लू व्‍हेल गेम एक जानलेवा गेम है। इसका टारगेट साफ्ट नेचर वाले लोग होते हैं। इसमें बच्‍चे और टीनएजर शामिल हैं। इसमें 50 दिनों में अलग अलग टॉस्‍क दिए जाते हैं और डराया जाता है कि अगर वह टास्‍क पूरा नहीं हुआ तो उसके किसी प्रिय या माता पिता को मार दिया जाएगा। इससे बच्‍चे दहशत में आ जाते हैं और गेम के सारे निर्देश फॉलो करने लगते हैं। इसमें हाथ की नसें काटने से लेकर जान देने तक के टॉस्‍क शामिल हैं। इसकी अंतिम स्‍टेज ‘सेल्‍फ हार्म चैलेंज’में जान देकर अपने परिवार की रक्षा करने का टास्‍क है।

इसकी चपेट में रूस, अमरीका सहित विश्‍व के अलग अलग देशों के करीब 200 बच्‍चे और टीनएजर अपनी जान गंवा चुके हैं। इसके चलते भारत में पहला केस मुंबई में रिपोर्ट हुआ थ जहां एक 14 वर्षीय बच्‍चे ने सातवें तल से छलांग लगाकर जान दे दी थी। इसके बाद भारत के पैरेंटस में भी इस गेम की दहशत भर गई। इससे बचाव के लिए सिर्फ एक ही चारा है कि पैरेंटस अपने बच्‍चे को मोबाइल देते समय उस पर नजर रखें और जहां तक संभव हो किड लॉक लगाकर ही मोबाइल या कंप्‍यूटर बच्‍चे को दें।

आगे की स्लाइड में जानिए किसने बनाया था ये गेम

रूस के बच्‍चे ने बनाया था गेम

एक्‍सपर्ट की मानें तो रूस की एक यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान के फिलिप नामक छात्र ने इस गेम को बनाया और इसे दूसरों तक पहुंचाया। उसका उद्देश्य समाज से ऐसे लोगों को खत्‍म करना था, जो किसी काम के नहीं हैं। बाद में इस छात्र को यूनिवर्सिटी से निकाल दिया गया और जेल भेज दिया गया। लेकिन यह गेम सोशल मीडिया के माध्‍यम से इंटरनेट के चैटिंग रूम्‍स के माध्‍यम से तेजी से दुनिया में फैल रहा है और बच्‍चों को अपना शिकार बना रहा है।

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