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Loksabha Election 2024: सीतापुर लोकसभा सीट पर भाजपा हैट्रिक लगाने की कर रही तैयारी, जानें समीकरण

Loksabha Election 2024 Sitapur Seats Details: सीतापुर लोकसभा सीट पर भाजपा का कब्जा है। जबकि सपा को इस सीट पर पिछले 27 साल से अपनी दूसरी जीत का इंतजार है। इसके अलावा बसपा को भी इस सीट को वापस पाने की लड़ाई है।

Sandip Kumar Mishra
Published on: 25 April 2024 12:00 PM GMT (Updated on: 25 April 2024 12:00 PM GMT)
Loksabha Election 2024: सीतापुर लोकसभा सीट पर भाजपा हैट्रिक लगाने की कर रही तैयारी, जानें समीकरण
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Loksabha Election 2024: यूपी का सीतापुर पौराणिक और ऐतिहासिक रूप से बेहद अहम शहर है। सीतापुर लोकसभा सीट पर भाजपा का कब्जा है। जबकि सपा को इस सीट पर पिछले 27 साल से अपनी दूसरी जीत का इंतजार है। इसके अलावा बसपा को भी इस सीट पर नजर है। भाजपा ने वर्तमान सांसद राजेश वर्मा पर तीसरी बार दांव लगाया है। जबकि इंडिया गठबंधन के तहत यह सीट कांग्रेस के खाते में है। कांग्रेस ने राकेश राठौर को चुनावी रण नें उतारा है। वहीं बसपा ने महेंद्र सिंह यादव को उम्मीदवार बनाया है। इस बार यहां की लड़ाई दिलचस्प हो गई है।

अगर लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो भाजपा के राजेश वर्मा ने सपा बसपा के संयुक्त उम्मीदवार रहे नकुल दुबे को 1,00,833 वोट से हराकर दूसरी बार जीत हासिल की थी। इस चुनाव में राजेश वर्मा को 5,14,528 और नकुल दुबे को 4,13,695 वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस के कैसर जहां को 96,018 वोट मिले थे। वहीं लोकसभा चुनाव 2014 में मोदी लहर के दौरान भाजपा के राजेश वर्मा ने बसपा के कैसर जहां को 51,027 वोट से हराकर जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में राजेश वर्मा को 4,17,546 और कैसर जहां को 3,66,519 वोट मिले थे। जबकि सपा के भरत त्रिपाठी को 1,56,170 और कांग्रेस के वैशाली अली को 29,104 वोट मिले थे।

यहां जानें भाजपा उम्मीदवार राजेश वर्मा के बारे में


भाजपा उम्मीदवार राजेश वर्मा ने वर्ष 1996 में बेहटा विधानसभा क्षेत्र से बसपा प्रत्याशी के रूप में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी, जिसमें उन्हें हार मिली थी। 1999 व 2004 में बसपा से सांसद चुने गए। वर्ष 2009 में धौरहरा में कांग्रेस उम्मीदवार से शिकस्त मिलने के बाद उन्होंने अलग राह चुनने का फैसला किया और 2013 में भाजपा में शामिल हो गए। इसके बाद 2014 व 2019 में भाजपा से सांसद चुने गए। पार्टी ने हैट्रिक लगाने के लिए उन्हें चुनाव मैदान में उतारा है।

यहां जानें कांग्रेस उम्मीदवार राकेश राठौर के बारे में


कांग्रेस उम्मीदवार राकेश राठौर ने भी अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत बसपा से की। 2007 में वह सीतापुर से पार्टी से चुनाव लड़े जिसमें सपा उम्मीदवार राधेश्याम जायसवाल से उन्हें हार मिली। इसके बाद 2013 में राजेश वर्मा के साथ वह भी भाजपाई हो गए। वर्ष 2017 में भाजपा ने उन्हें सीतापुर से चुनाव मैदान में उतारा, जिसमें उन्हें जीत मिली। 2022 में टिकट न मिलने पर वह सपा से जुड़ गए और नगर पालिका चुनाव में सिंबल न मिलने पर बगावत कर अपनी पत्नी नीलकमल को निर्दल उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़वाया और 12 हजार से अधिक वोट हासिल किए। इसके बाद कांग्रेस में शामिल हुए और प्रदेश महासचिव बनाए गए। उम्मीदवार बनाए गए पूर्व मंत्री नकुल दुबे का टिकट काटने के बाद कांग्रेस ने इन्हें चुनाव मैदान में उतारा है।

यहां जानें सीतापुर लोकसभा क्षेत्र के बारे में

  • सीतापुर लोकसभा क्षेत्र का निर्वाचन संख्या 30 है।
  • यह लोकसभा क्षेत्र 1952 में अस्तित्व में आया था।
  • इस लोकसभा क्षेत्र का गठन सीतापुर जिले के सीतापुर, लहरपुर, बिसवां, सेवता और महमूदाबाद विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर किया गया है।
  • सीतापुर लोकसभा के 5 विधानसभा सीटों में से 1 पर सपा और 5 पर भाजपा का कब्जा है।
  • यहां कुल 16,66,126 मतदाता हैं। जिनमें से 7,75,816 पुरुष और 8,90,241 महिला मतदाता हैं।
  • सीतापुर लोकसभा सीट पर 2019 में हुए चुनाव में कुल 10,65,222 यानी 63.93 प्रतिशत मतदान हुआ था।

सीतापुर लोकसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास

सीतापुर जिले में गोमती के तट पर पवित्र तीर्थ स्थल नैमिषारण्य है। कहा जाता है कि यहीं पर महर्षि वेद व्यास ने पुराणों की रचना की थी। वनवास के दौरान पांडव भी नैमिष आए थे। शहर का नाम सीतापुर रखे जाने की कहानी भगवान राम और सीता से जुड़ी है। माना जाता है कि भगवान राम के साथ तीर्थ यात्रा के दौरान सीताजी यहीं पर ठहरी हुई थीं। भगवान राम और सीता ने इसी पवित्र स्थल पर स्नान किया था। यह भी कहा जाता है कि सीता अपनी पवित्रता साबित करने के बाद इसी स्थान पर समाहित हो गई थीं। इसके अलावा ऐसा भी माना जाता है कि राम और सीता ने रावण की मृत्यु का कलंक धोने के लिए इसी पवित्र स्थान पर स्नान किया था। बाद में राजा विक्रमादित्य ने सीता के नाम पर शहर की स्थापना की और उसका नाम सीतापुर रखा।

उत्तर वैदिक दौर में एक विशाल विश्वविद्यालय के चिन्ह भी यहां पर मिलते हैं जहां 88,000 ऋषियों ने शास्त्रों का ज्ञान हासिल किया था। शौनकजी इस विशाल विश्वविद्यालय के कुलपति थे। अबुल फजल की आइने अकबरी के अनुसार अकबर के दौर में इस जगह को चटयापुर या चित्तियापुर कहा जाता था। बात यहां की सियासत की करें तो यह भी अजब संयोग है कि सीतापुर से अब तक जितने भी सांसद बने हैं, उनके नाम में ‘र’ अक्षर जरूर आता है। इसको भी लोग भगवान राम के नाम में आने वाले पहले अक्षर 'र' से जोड़ते हैं और यह टोटका मशहूर है कि जिस पर राम की कृपा होती है, वही यहां जीतता है। यहां के मतदाताओं ने आजादी के बाद से अब तक सभी प्रमुख दलों पर ही भरोसा जताया है। एक बार का चुनाव छोड़ दें, तो अब तक हुए 17 लोकसभा के चुनाव में मतदाताओं ने 16 बार जीत का ताज कांग्रेस, जनसंघ, बीएलडी, भाजपा, बसपा इत्यादि राष्ट्रीय पार्टियों के उम्मीदवारों को पहनाया है। हालांकि, 1996 में मतदाताओं ने सपा के उम्मीदवार पर भी दरियादिली दिखाकर संसद पहुंचाया है।

उमा नेहरू और परागी लाल बनें पहले सांसद

जब देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू हुई, तब सीतापुर और खीरी संयुक्त लोकसभा क्षेत्र था। इस क्षेत्र से दो सांसद चुने जाते थे। 1952 और 1957 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दो-दो उम्मीदवार चुने गए। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के चचेरे भाई की पत्नी उमा नेहरू और परागी लाल दोनों बार जीतकर सांसद बने। उमा नेहरू स्त्री विमर्श पर लिखने वाली लेखिका थीं। दाण्डी मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन में भी सक्रिय रहीं। उनका विवाह पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के चचेरे भाई श्यामलाल नेहरू से हुआ था। बाद में वह राज्यसभा के लिए भी चुनी गईं। परागी लाल सीतापुर के रहने वाले थे और संविधान सभा के सदस्य थे। दो लोकसभा चुनाव के बाद ही यहां से कांग्रेस का वर्चस्व टूट गया। तब तक अपनी जमीन मजबूत कर रहे जनसंघ ने 1962 में इस सीट को अपने कब्जे में ले लिया। सूरज लाल वर्मा यहां से सांसद बने। उसके बाद 1967 के चुनाव में जनसंघ ने उम्मीदवार बदलकर शारदानंद दीक्षित को चुनाव लड़ाया और फिर जीत हासिल की।

हालांकि, 1971 में कांग्रेस ने जीत हासिल की और जगदीश चंद्र दीक्षित सांसद बने। इमरजेंसी के बाद 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के हरगोविंद वर्मा का डंका बजा। कांग्रेस ने उसके बाद एक बार फिर जबरदस्त वापसी की। लगातार 1980, 1984 और 1989 में यहां से राजेंद्र कुमारी बाजपेयी सांसद बनीं। इस दौरान वह केंद्र में मंत्री भी रहीं। यहां 1991 में राम मंदिर लहर में भाजपा ने पहली जीत हासिल की ओर जनार्दन प्रसाद मिश्र सांसद बने। उसके बाद सपा के मुख्तार अनीस यहां से 1996 में जीते। सपा के बाद बसपा ने इस सीट पर कब्जा जमाया। सीतापुर से राजेश वर्मा बसपा के टिकट पर 1999 और 2004 में जीते। तीसरी बार भी 2009 में बसपा की ही कैसर जहां ने जीत हासिल की। 2014 में बसपाई रहे राजेश वर्मा ने भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा ने राजेश वर्मा को टिकट देकर बाजी पलट दी। वह तब से लगातार दो बार भाजपा से सांसद हैं।

सीतापुर लोकसभा क्षेत्र के मतदाता बाहरी उम्मीदवारों पर रहते हैं मेहरबान

सीतापुर बाहरी उम्मीदवारों पर खासा मेहरबान रहा है। अब तक होने वाले 17 लोकसभा के चुनाव में सात बार गैर जनपद के उम्मदवारों को जीत का ताज पहनाकर संसद भेजा है। 1951 के पहले चुनाव में ही आगरा की उमा नेहरू को अपना सांसद चुना। मतदाताओं ने 1957 में भी उमा नेहरू पर भरोसा कायम रखा। 1962 में जनसंघ के उम्मीदवार लखनऊ डालीगंज निवासी सूरज लाल वर्मा को संसद भेजा। 1971 में कांग्रेस के जगदीश चंद्र दीक्षित को नुमांइदा चुना। जगदीश चंद्र दीक्षित भी लखनऊ के रहने वाले थे। 1980-84 और 1989 में लगातार तीन बार कांग्रेस की राजेंद्र कुमारी वाजपेयी को प्रतिनिधित्व सौंपा। राजेंद्र कुमारी बिहार के भागलपुर की रहने वाली थीं।

सीतापुर लोकसभा क्षेत्र का यह है मुद्दा

सीतापुर में तीन प्रमुख नदियां- घाघरा, शारदा और चौका में बाढ़ आने से लाखों लोग प्रभावित होते हैं। इन नदियों से तीन तहसीलें बिसवां, महमूदाबाद और लहरपुर काफी प्रभावित होती हैं। कई गांव सड़कों से कट जाते हैं। कई गांव ऐसे हैं, जहां आज तक सड़क से नहीं जुड़ पाए हैं। शारदा के डेबर घाट का एक हिस्सा लखीमपुर में है तो दूसरा हिस्सा सीतापुर से लगता है। यहां लोगों को आज भी कामकाज के लिए नाव से आना-जाना पड़ता है। पुल बनाने की लंबे समय से मांग हो रही है। हाल में सरकार ने पुल स्वीकृत किया है और कुछ धनराशि जारी की है। इसके अलावा सीतापुर में आम की पैदावार भी खूब होती है। यहां के किसानों की मांग है कि आम के लिए अलग से एक मंडी बनाई जाए। स्थानीय बाजार के साथ ही आम के निर्यात को बढ़ावा देने की भी मांग है। दरी बनाने का परंपरागत कारोबार यहां होता है। कारोबारियों को इसके लिए कच्चा माल बाहर से लाना होता है। अब मशीन शेड दरियां भी आने लगी हैं। उसके प्रभाव से यहां का परंपरागत दरी कारोबार दम तोड़ने के कगार पर है। वे चाहते हैं कि सरकार उनको कुछ मदद करे। चुनाव के दौरान ये मुद्दे कुछ ही नेता उठाते हैं, लेकिन यहां के लोग हर बार उम्मीद करते हैं कि शायद अब कोई इन पर गंभीर होकर ध्यान दे।

सीतापुर लोकसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण

सीतापुर लोकसभा सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पर मिश्रित आबादी है। सभी जातियों और समुदायों की कमोबेश बराबर की भागीदारी है। यहां 27 प्रतिशत ओबीसी तो 28 प्रतिशत एससी/एसटी मतदाता हैं। कभी यहां 21 प्रतिशत मुसलमान निर्णायक साबित होता है तो कभी 23 प्रतिशत सवर्ण मतदाता अहम भूमिका निभाता है। ऐसे में यहां राजनीतिक दलों को अपने कैडर वोट के साथ उम्मीदवार के वोटों के समीकरण मजबूत करने होते हैं। ऐसे ही समीकरणों से यहां आठ बार ब्राह्मण उम्मीदवार की जीत हो चुकी है। भाजपा और बसपा के टिकट पर चार बार राजेश वर्मा सांसद बने तो दो बार मुस्लिम उम्मीदवार मुख्तार अनीस और कैसर जहां की जीत हुई।

सीतापुर लोकसभा क्षेत्र से अब तक चुने गए सांसद

  • कांग्रेस से उमा नेहरू व परागी लाल 1952 और 1957 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • जनसंघ से सूरज लाल 1962 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • जनसंघ से शारदा नन्द 1967 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से जगदीश चंद्र दीक्षित 1971 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • जनता पार्टी से हर गोविंद वर्मा 1977 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से राजेंद्र कुमारी बाजपेयी 1980, 1984 और 1989 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से जनार्दन प्रसाद मिश्र 1991 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • सपा से मुख्तार अनीस 1996 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से जनार्दन प्रसाद मिश्र 1998 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • बसपा से राजेश वर्मा 1999 और 2004 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • बसपा से कैसर जहां 2009 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनी गईं।
  • भाजपा से राजेश वर्मा 2014 और 2019 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
Sandip Kumar Mishra

Sandip Kumar Mishra

Content Writer

Sandip kumar writes research and data-oriented stories on UP Politics and Election. He previously worked at Prabhat Khabar And Dainik Bhaskar Organisation.

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