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12 फरवरी- विश्व मिर्गी दिवस : गर्भावस्था में फॉलिक एसिड लेने से घटते हैं दौरे

seema
Published on: 9 Feb 2018 6:38 AM GMT
12 फरवरी- विश्व मिर्गी दिवस : गर्भावस्था में फॉलिक एसिड लेने से घटते हैं दौरे
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नई दिल्ली। विश्व में मिर्गी एक बड़ी समस्या है। यह बीमारी पुरुष-महिला दोनों को होती है, लेकिन गर्भवती महिलाओं में इसका अधिक खतरा रहता है। इसमें गर्भवती महिला के साथ गर्भस्थ शिशु को नुकसान होने का खतरा रहता है। जनन योग्य महिलाएं में मिर्गी दो तरह से हो सकती है। एक तो वो महिलाएं जिनको गर्भधारण से पहले मिर्गी है और दूसरी वे जिनको गर्भधारण के बाद मिर्गी के दौरे आने शुरू होते हैं। दोनों ही स्थितियों में महिलाएं सावधानी बरतकर स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती हैं।

50 फीसदी महिलाएं शिकार

एनल्स ऑफ इंडियन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी और न्यूरोलॉजी इंडिया जर्नल के मुताबिक विश्व में करीब पांच करोड़ लोग मिर्गी से ग्रस्त हैं। इनमें 50 फीसदी महिलाएं हैं। भारत में करीब ३0 लाख महिलाएं मिर्गी से पीडि़त हैं। इनमें से आधी महिलाएं गर्भधारण करने योग्य उम्र की हैं। अनुमान है कि ऐसी महिलाओं की संख्या 50 लाख से अधिक होगी।

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गर्भावस्था में दौरे बढऩे के कारण

गर्भावस्था में दौरे बढऩे के कारण शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव, नींद में कमी, मानसिक तनाव, दवाओं के कारण मेटाबोलिज्म में बदलाव और रक्त में मिर्गी की दवाई की मात्रा कम होना आदि हैं।

गर्भवती महिला पर मिर्गी का दुष्प्रभाव

मिर्गी के कारण गर्भपात, रक्तस्राव, नाल का समय पूर्व विच्छेदन, प्रसव पूर्व दौरे, असमय प्रसव, प्रसव में जटिलता, हड़बड़ी के कारण अचानक प्रसव, मानसिक विकार, दौरे के कारण बेहोशी आदि गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।

गर्भस्थ शिशु को नुकसान

सामान्य महिलाओं की तुलना में मिर्गी से पीडि़त महिलाओं के शिशुओं को तीन गुना अधिक खतरा रहता है। इनमें मृत शिशु का पैदा होना, प्रीम्च्योर बर्थ, शारीरिक विकृतियां, कम वजन, धीमा विकास, गर्भ में चोट की आशंका और गर्भ में ऑक्सीजन की कमी से हार्ट रेट कम हो सकती है।

ऐसे दे सकती हैं स्वस्थ बच्चे को जन्म

अगर महिला को पहले से मिर्गी है तो गर्भधारण से पहले डॉक्टर से सलाह पर नियमित सही दवाएं लें। रोजाना फॉलिक एसिड की एक गोली लें जिससे हार्मोन का संतुलन बना रहेगा और दौरे नियंत्रित रहेंगे।

गर्भधारण के दौरान ये बातें ध्यान रखें

ब्लड में मिर्गी की दवाई की मात्रा की जांच करवाते रहें। अधिक मात्रा होने पर गर्भस्थ शिशु को नुकसान पहुंच सकता है जबकि कमी के कारण महिला में मिर्गी के दौरे शुरू हो सकते हैं।

डॉक्टर की सलाह पर गर्भस्थ शिशु की सोनोग्राफी कराते रहें। इससे भ्रूण की स्थिति का पता चलेगा।

एल्फा फीटोप्रोटिंस (एएफपी) टेस्ट करवाते रहें। इसका लेवल अधिक होने पर भ्रूण में विकृति का खतरा रहता है।

प्रसव के दौरान: ऐसी महिलाओं की डिलीवरी अच्छे और उपकरणों से सुसज्जित अस्पतालों में ही कराएं, क्योंकि कई बार ऐसा प्रसव जटिल हो जाता है।

प्रसव बाद: प्रसव बाद भी डॉक्टर की सलाह पर मिर्गी की दवाइयां नियमित लें। बच्चे को स्तनपान कराती रहें, क्योंकि मां के दूध में मिर्गी की दवाइयों की मात्रा कम ही जाती है। हालांकि कुछ दवाइयों से नवजात शिशु सुस्त या चिड़चिड़ा भी हो सकता है, लेकिन चिंता की बात नहीं है।

सावधानी जरूरी

मिर्गी की जांच के लिए कुछ ब्लड टेस्ट के अलावा एक्सरे, सीटी स्कैन और एमआरआई किया जाता है। लेकिन गर्भवती महिलाओं को एक्सरे और सीटी स्कैन से रेडिएशन का खतरा रहता है। बहुुत जरूरी हो तो ही पहले तीन माह में एमआरआई कराएं।

ये काम न करें

दौरे आने पर मरीज को जूता या प्याज न सुघांए। यह छुआछूत अथवा दैवीय प्रकोप की बीमारी नहीं है। इसलिए झाड़-फूंक की जगह इलाज कराएं।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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