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Mizoram Assembly Elections 2023: मिजोरम चुनाव: यहां पर युवा और चर्च की बड़ी भूमिका

Mizoram Assembly Elections 2023: मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट यानी एमएनएफ बीते दस साल से सत्ता में है, लेकिन इस बार राज्य के राजनीतिक समीकरण बदले हुए नजर आ रहे हैं। इस बार जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) सत्तारूढ़ एमएनएफ को कड़ी टक्कर दे कर मुकाबले को तिकोना बनाती नजर आ रही है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 29 Oct 2023 11:03 AM GMT
Big role of youth and church in Mizoram assembly elections
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मिजोरम विधानसभा चुनाव में युवा और चर्च की बड़ी भूमिका: Photo- Social Media

Mizoram Assembly Elections 2023: म्यांमार और बांग्लादेश की सीमा से सटे मिजोरम में सात नवंबर को विधानसभा चुनाव होने हैं। मिजोरम का चुनाव बाकी देश में कहीं के चुनाव से अलग हैं क्योंकि यहाँ चुनावों पर सख्त निगरानी मिजोरम पीपुल्स फोरम नामक संगठन करता है जिसमें चर्च और यंग मिज़ो एसोसिएशन शामिल हैं। चुनावी आचार संहिता के जमीनी स्तर पर बेहद कड़ाई से लागू होने के कारण यहां चुनावी तस्वीर देश के दूसरे राज्यों को मुकाबले भिन्न नजर होती है।

मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट यानी एमएनएफ बीते दस साल से सत्ता में है, लेकिन इस बार राज्य के राजनीतिक समीकरण बदले हुए नजर आ रहे हैं। इस बार जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) सत्तारूढ़ एमएनएफ को कड़ी टक्कर दे कर मुकाबले को तिकोना बनाती नजर आ रही है। 1993 के बाद से मिजोरम में केवल दो मुख्यमंत्रियों - कांग्रेस के ललथनहवला और एमएनएफ के ज़ोरमथांगा ने राज्य का नेतृत्व किया है।

पीपुल्स फोरम की नज़र और निगरानी

मिजोरम की खासियत है कि यहाँ होने वाले हर चुनाव में ‘यंग मिजो एसोसिएशन’ और चर्च की भूमिका महत्वपूर्ण रहती है। साल 2006 में चर्च और यंग मिजो एसोसिएशन (वाईएमए) जैसे असरदार संगठनों के प्रतिनिधियों को लेकर बना मिजोरम पीपुल्स फोरम (एमपीएफ) ही अब चुनावी आचार संहिता को कड़ाई से लागू करने का काम करता है। यह न सिर्फ चुनावी रैली की जगह और समय सीमा तय करता है बल्कि झंडों और पोस्टरों की संख्या और साइज भी तय कर देता है। चुनावी आचार संहिता के मामले में फोरम के निर्देशों की अनदेखी किसी उम्मीदवार की हार की वजह बन सकती है। इस मामले में फोरम की भूमिका चुनाव आयोग से कहीं ज्यादा असरदार है। लगभग 15 साल तक केंद्र शासित प्रदेश रहने के बाद फरवरी 1987 में मिजोरम को भारत के पूर्ण राज्य का दर्जा मिला था। वर्ष 2018 में एमएनएफ ने 26, जेडपीएम ने आठ और यूपीए ने पांच सीटें जीती थी। तब भाजपा को महज एक सीट मिली थी।

जोरम पीपुल्स मूवमेंट और एमएनएफ

इस बार जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) सत्तारूढ़ एमएनएफ के लिए एक मजबूत चुनौती के तौर पर उभरा है। यह संगठन वर्ष 2017 में बना था और 2018 के चुनाव में पहली बार ही उसने आठ सीटें जीती थी। 2018 के चुनावों में, जेडपीएम, जो 2018 में एक अपंजीकृत पार्टी थी, ने आठ सीटें हासिल कीं और मिजोरम विधानसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, और कांग्रेस को केवल चार सीटों के साथ तीसरे स्थान पर धकेल दिया। जेडपीएम उम्मीदवार निर्दलीय के रूप में लड़े और उनमें से छह जीते, और लालदुहोमा 2017 में अपनी स्थापना के बाद पार्टी के प्रतीक पर जीतने वाले पहले जेडपीएम विधायक बने।

ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) ने सभी 40 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। इसने हमार पीपुल्स कन्वेंशन (एचपीसी) के साथ भी गठबंधन बनाया। दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित एक समझौते के अनुसार, एचपीसी ने अपने दम पर कोई उम्मीदवार खड़ा किए बिना, जेडपीएम को अपना पूर्ण समर्थन देने पर सहमति व्यक्त की थी।

हालांकि एमएनएफ प्रमुख और मुख्यमंत्री जोरमथांगा दावा करते हैं कि विकास की दिशा में किए गए कामकाज के कारण इस बार उनकी पार्टी कम से कम 25 सीटें जीत कर सत्ता की हैट्रिक लगाएगी। मुख्यमंत्री जोरमथंगा के नेतृत्व वाला मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) एनडीए का सहयोगी है। हालांकि भाजपा और एमएनएफ दोनों ही चुनाव मैदान में हैं।

मणिपुर का असर

मिजोरम की 87 फीसदी आबादी ईसाई है। पड़ोसी राज्य मणिपुर में हुई हिंसा और वहां से कुकी समुदाय के लोगों के भारी तादाद में पलायन ने राज्य में भाजपा के प्रति नाराजगी बढ़ा दी है। ऐसे में जोरमथंगा के लिए दिक्कत हो सकती है क्योंकि वह ईसाई वोटरों के समर्थन पर ही निर्भर हैं। जोरमथंगा मणिपुर में हिंसा की शुरुआत से ही कुकी शरणार्थियों के समर्थन में खड़े रहे हैं। उनकी सरकार कुकी समुदाय के अलावा सीमा पार म्यांमार से आने वाले चिन समुदाय के शरणार्थियों के लिए रहने और खाने की व्यवस्था कर रही है। खुद को भाजपा से अलग दिखाने के लिए राज्य सरकार ने शरणार्थियों का बायोमेट्रिक आंकड़ा जुटाने के केंद्रीय गृह मंत्रालय का निर्देश भी मानने से इंकार कर दिया है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी का मिजोरम दौरा: Photo- Social Media

राहुल का दौरा

कांग्रेस नेता राहुल गांधी मिजोरम का दौरा कर चुके हैं, जिस दौरान उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी अबकी यहां सत्ता हासिल करने के प्रति बेहद गंभीर है। वैसे कांग्रेस ने भाजपा से मुकाबले के लिए इस बार दो क्षेत्रीय दलों के साथ मिल कर मिजोरम सेक्युलर एलायंस (एमएसए) का गठन किया है। दूसरी तरफ भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में राज्य के युवा उद्यमियों को पांच-पांच लाख रुपए की सहायता देने का ऐलान किया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वामलालमुआका कहते हैं कि पार्टी का मकसद राज्य में विकास की गति को तेज कर इसे राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल करना है।

चुनावी मुद्दे

मिजोरम में इस बार प्रमुख चुनावी मुद्दों में सीमा पार म्यांमार और बांग्लादेश के अलावा पड़ोसी मणिपुर से भारी तादाद में शरणार्थियों का आना, मणिपुर की हिंसा और असम के साथ सीमा विवाद शामिल हैं। इस बार यहां सत्ता के तीनों दावेदारों यानी एमएनएफ, जेडपीएम और कांग्रेस की साख दांव पर लगी है। उधर, भाजपा भी अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए जोर लगा रही है। जानकारों का अकहना है कि शरणार्थियों का मुद्दा चुनावी नतीजे में निर्णायक भूमिका निभाएगा।

लालडुहोमा

71 वर्षीय लालडुहोमा, जो कि सीएम चेहरा हैं, के नेतृत्व में जेडपीएम अपनी बढ़त को मजबूत करना चाह रही है। 2018 के मिजोरम विधानसभा चुनावों में, लालदुहोमा ने दो सीटों - आइजोल पश्चिम- १ और सेरछिप - से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और दोनों में जीत हासिल की। उन्होंने सेरछिप सीट से मौजूदा कांग्रेस विधायक और पांच बार के मुख्यमंत्री लाल थनहावला को बाहर कर दिया। बाद में, उन्होंने सेरचिप को बरकरार रखने के लिए आइजोल पश्चिम-१ सीट खाली कर दी।

भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हुए लालदुहोमा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सुरक्षा प्रभारी थे। 1984 में सेवा से इस्तीफा देने के बाद, उन्होंने कांग्रेस में शामिल होकर राजनीति में प्रवेश किया और उसी वर्ष बाद में लोकसभा सांसद के रूप में चुने गए। हालाँकि, कांग्रेस नेतृत्व से अनबन के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया और अपनी लोकसभा सदस्यता खो दी। 2020 में, मिजोरम विधानसभा अध्यक्ष लालरिनलियाना सेलो ने जेडपीएम में शामिल होने के लिए लालदुहोमा को अयोग्य घोषित कर दिया। इस प्रकार, लालदुहोमा भारत में दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित होने वाले पहले सांसद बन गए।

2021 में, सेरछिप सीट से लालदुहोमा की अयोग्यता के बाद, अप्रैल में उपचुनाव हुआ, जिसमें 83 प्रतिशत मतदान हुआ। सत्तारूढ़ एमएनएफ को सेरछिप विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा, क्योंकि लालदुहोमा ने 8,269 वोट हासिल कर भारी अंतर से सीट बरकरार रखी, जो कुल 16,595 वोटों का 51 प्रतिशत है और उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी एमएनएफ के वनलालजॉमा को हराया। 3,310 वोटों का अंतर।

इस साल 29 मार्च को, मिजोरम के दूसरे सबसे बड़े शहर लुंगलेई में नगरपालिका चुनाव में प्रभावशाली प्रदर्शन के साथ, जहां जेडपीएम ने सभी 11 सीटें जीतीं, पार्टी मिजोरम चुनाव 2023 में विजयी होने के लिए पूरी ताकत लगा रही है। चुनावों में पार्टी ने 49 फीसदी से अधिक वोट शेयर दर्ज किया, जबकि एमएनएफ और कांग्रेस, जिन्होंने सभी वार्डों में भी चुनाव लड़ा, ने क्रमशः 29 फीसदी से अधिक और 20 फीसदी वोट शेयर हासिल किए। इस जीत ने राज्य में सत्ता विरोधी लहर की अटकलों को हवा दे दी है। 2023 के चुनावों में, लालदुहोमा सेरछिप से चुनाव लड़ रहे हैं और उनका मुकाबला एमएनएफ के नवोदित और वरिष्ठ पत्रकार जे माल्सावमज़ुअल वानचावंग से है, जो उसी निर्वाचन क्षेत्र से हैं, जबकि कांग्रेस ने विधानसभा क्षेत्र से आर वानलालट्लुआंगा को मैदान में उतारा है।

Shashi kant gautam

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