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Diwali 2022: एक तब थी हमारी दीपावली

Diwali 2022: दीपावली के लगभग 15 दिन पहले से दीपावली पर्व की तैयारियां शुरू हो जाती थी। दीपावली का त्यौहार पांच दिवसीय होता था। दीपावली के 2 दिन पहले धनतेरस।

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Newstrack Network
Published on: 24 Oct 2022 9:47 AM GMT
Diwali 2022
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Diwali 2022। (Social Media)

Diwali 2022: दीपावली के लगभग 15 दिन पहले से दीपावली पर्व की तैयारियां शुरू हो जाती थी। सबसे पहले घर में साफ सफाई कर चूने में नील डाल कर और पीली मिट्टी जिसे रामराज कहते हैं उससे पूरे घर के मकड़ी के जाले साफ कर पुताई की जाती थी। पुताई में मजदूरों के साथ साथ घर के हम सभी बच्चे भी थोड़ा बहुत चूने की पुताई की कूची पर अपना हाथ साफ कर लेते थे।

पुराने समय से यह परंपरा

संभवतः पुराने समय से यह परंपरा इसलिए प्रारंभ की गई क्योंकि बरसात के दौरान और बाद में घरों में सीलन आ जाती थी। कीड़े मकोड़े आदि पैदा हो जाते थे । जिन्हें बरसात खत्म होते ही समाप्त करना आवश्यक हो जाता है। बरसात से खराब हुए घर की छत और दीवारों की मरम्मत हो जाती है । उनकी रंगाई पुताई हो जाती है । चूना सभी प्रकार के कीट पतंगों को नष्ट करने और घर के अंदर के वातावरण को स्वच्छ करने के लिए पर्याप्त होता था इसलिए चूने की पुताई की जाती थी। बाजार से लाइ ,खील ,चूड़ा , बताशे, चीनी के खिलौने ,गट्टे आदि खरीद कर लाते थे। उस समय त्यौहार पर कुछ मीठा हो जाए जैसे विज्ञापन और चॉकलेट की परंपरा नहीं थी।

बरसात में धान की फसल लगाई जाती थी और वह फसल तैयार होने के बाद धान से लाई जिसे परमल कहते हैं, खील और चूड़ा जिसे पोहा कहते हैं बनाए जाते थे धान की फसल से बनी हुई चीजों को बाजार में क्रय विक्रय इस त्योहार के समय ही किया जाता था। बाजार से मिट्टी के गणेश लक्ष्मी की मूर्ति और बाजार में कुम्हारों के द्वारा बेचे जाने वाले मिट्टी के विभिन्न प्रकार के सुंदर सुंदर खिलौने और दीपक ले आते थे। दियों को दीपावली के दिन पानी में भिगोकर साफ कर लिया जाता था और शुद्ध घी और सरसों के तेल के दीपक जलाए जाते थे ।

घी और तेल के दीपक अपनी ओर करते हैं आकर्षित

बरसात खत्म होने के बाद विभिन्न प्रकार के कीट पतंगे पैदा हो जाते हैं । उन्हें घी और तेल के दीपक अपनी ओर आकर्षित कर उन्हें नष्ट कर देते हैं। बाजार से पटाखे लाए जाते थे । उनको दिन की धूप में सुखाया जाता था। आज के समय में जिन पटाखे की लड़ियों को एक साथ जला दिया जाता है ,उसे हम लोग लड़ी से खोलकर अलग अलग कर पटाखे जलाकर खुश होते थे ।

घर में आंगन की एक दीवाल पर रंग और ब्रश से गणेश लक्ष्मी की पेंटिंग बनाई जाती थी जिसमें घर के सभी बच्चे कुछ ना कुछ योगदान देते थे।दीपावली के तीन-चार दिन पहले से घर में विभिन्न प्रकार की मिठाईयां व पकवान बनने लगते थे।नारियल की बर्फी, बालूशाही, रसगुल्ले, बेसन के लड्डू बर्फी और ना जाने क्या-क्या। दीपावली में सूरन की सब्जी भी जरूर बनाई जाती थी ।

5 दिवसीय होता था दीपावली का त्यौहार

दीपावली का त्यौहार पांच दिवसीय होता था। दीपावली के 2 दिन पहले धनतेरस ।इस दिन धनवंतरी वैद्य की पूजा की जाती थी अगला दिन होता था छोटी दिवाली या जिसे नरक चतुर्दशी का भी नाम दिया गया है । तीसरे दिन होती थी दीपावली। इस दिन शाम को गणेश लक्ष्मी जी की पूजा कर घर की छतों पर जाकर हर जगह जलते हुए दीपक लगाए जाते थे। पटाखे छुड़ाए जाते थे।

देर रात में सोने से पहले गणेश लक्ष्मी जी के पास जलाए गए दीपों के पास बैठकर अपनी कक्षा की किताबों को पढ़ना और कॉपियों में कुछ न कुछ लिखकर पूजा के स्थान पर रखा जाता था। शायद यह इसलिए होता था कि दीपावली के साथ अब पढ़ाई पर गम्भीरता से ध्यान देना आवश्यक है। अब पढ़ाई की जाए और आगामी परीक्षा की तैयारी की जाए।

दीपावली के दूसरे दिन को कहा जाता था परेवा

इसके बाद रात में सोकर जब सुबह उठते थे तो सबसे पहले जहां पटाखे छुड़ाए गए थे, वहां जाकर यह देखते थे कि जो पटाखे जलने से बच गए हैं उनको भी जलाया जाए। दीपावली के दूसरे दिन को परेवा कहा जाता था। उस दिन पढ़ाई लिखाई नहीं की जाती थी।गोवर्धन पूजा की जाती थी। फिर उसके अगले दिन भाई दूज होती थी। कलम दवात की पूजा की जाती थी। दीपावली के दिन पढ़ाई के बाद जिस कलम दवात और किताबों को पूजा स्थल पर रख दिया गया था उसे उठाकर फिर से लिखना और पढ़ना शुरू किया जाता था।

Deepak Kumar

Deepak Kumar

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