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Jagadguru Rambhadracharya: देवभाषा तक पहुंचने में 58 वर्ष लग गए

Jagadguru Rambhadracharya: संस्कृत में साहित्य सृजन के लिए जगतगुरु रामभद्राचार्य को वर्ष 2023 के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार सम्मान देने की घोषणा हुई है।

Sanjay Tiwari
Written By Sanjay Tiwari
Published on: 18 Feb 2024 7:23 AM GMT
Jagadguru Rambhadracharya
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Jagadguru Rambhadracharya  (photo: social media )

Jagadguru Rambhadracharya: भारतीय साहित्य में सृजन के सर्वोच्च सम्मान प्रदान करने वालों की दृष्टि 1965 के बाद पहली बार संस्कृत भाषा पर पड़ी है। इस बार यह पुरस्कार संस्कृत और उर्दू को एक साथ दिए जाने की घोषणा की गई है। भारतीय ज्ञानपीठ न्यास द्वारा 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' भारतीय साहित्य के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है। भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार की स्थापना साल 1965 में की गयी थी। देश का कोई भी व्यक्ति जो भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में बताई गई 22 भाषाओं में से किसी भी भाषा में लिखता हो इस पुरस्कार के योग्य है। वर्ष 2023 के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कारों की घोषणा होते ही सभी का ध्यान देश के एक ऐसे संत की ओर मुड़ गया जिसकी प्रतिभा के कायल देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी हैं। संस्कृत में साहित्य सृजन के लिए जगतगुरु रामभद्राचार्य को वर्ष 2023 के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार सम्मान देने की घोषणा हुई है। इन्ही के साथ उर्दू भाषा के लिए गीतकार गुलजार के नाम की भी घोषणा की गई है।

यह अब तक का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इस सम्मान दाता संस्थान को 1965 से कोई संस्कृत विद्वान दिखा ही नहीं। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे संस्कृत में भारत में कुछ लिखा ही नहीं गया इतने दिनों तक। अब तक हिन्दी तथा कन्नड़ भाषा के लेखक सबसे अधिक 7 बार इस सम्मान को प्राप्त कर चुके हैं। साल 1965 में मलयालम लेखक जी शंकर कुरुप को प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसमें पुरस्कार स्वरूप 11 लाख रुपये, प्रशस्तिपत्र और वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा प्रदान की जाती है। जब वर्ष 1965 में ज्ञानपीठ पुरस्कार की स्थापना हुई थी, तो उस समय पुरस्कार राशि मात्र एक लाख रुपये थी। वर्ष 2005 में पुरस्कार राशि को एक लाख रुपये से बढाकर सात लाख रुपये कर दिया गया, जो वर्तमान में ग्यारह लाख रुपये हो चुकी है।

इससे पहले 57वां ज्ञानपीठ पुरस्कार 2021/2022 में दामोदर माऊज़ो गोवा के उपन्यासकार, कथाकार, आलोचक और निबन्धकार को दिया गया था। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास कार्मेलिन के लिये उन्हें सन् 1983 में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कोंकणी) से सम्मानित किया गया था। मलयालम के प्रमुख कवि अक्कीथम को 56वें ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चुना गया था। ज्ञानपीठ चयन बोर्ड ने एक बैठक में 56 वें ज्ञानपीठ पुरस्कार 2019 के लिए मलयालम के प्रसिद्ध भारतीय कवि अक्कीथम को चुना था। अक्कीथम का नाम मलयालम कविता जगत में आदर के साथ लिया जाता है। उनका जन्म 1926 में हुआ था और पूरा नाम अक्कीथम अच्युतन नम्बूदिरी है और वह अक्कीथम के नाम से लोकप्रिय हैं। उन्होंने 55 पुस्तकें लिखी हैं जिनमें से 45 कविता संग्रह है। पद्म पुरस्कार से सम्मानित अक्कीथम को सहित्य अकादमी पुरस्कार, केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार (दो बार) मातृभूमि पुरस्कार, वायलर पुरस्कार और कबीर सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। वर्ष 1965 से अब तक ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेताओं की सूची पर एक दृष्टि अवश्य डालनी चाहिए। इसी से स्पष्ट हो जाएगा कि भारतीय ज्ञान परंपरा को कितना सम्मान मिला है अब तक।

पद्मविभूषण स्वामी रामभद्राचार्य

स्वामी रामभद्राचार्य महाराज चित्रकूट के तुलसीपीठाधीश्वर के पद पर विराजमान हैं। एक उच्चकोटि के साधक और संत होने के साथ-साथ वह अर्वाचीन संस्कृत साहित्य के मूर्धन्य कवि एवं साहित्यकार भी हैं। उन्होंने भार्गवराघवीयम् और गीतरामायणम् सरीखे उत्कृष्ट महाकाव्यों की रचना की है। साथ ही स्वामी रामानन्द की परंपरा में उन्होंने श्रीराघवकृपाभाष्यम् का जगतगुरु रामभद्राचार्य प्रणयन भी गीता इत्यादि पर किया है। वे बचपन से ही मन की आखों से देख रहे हैं और ज्ञान की कलम से रच रहे हैं।


100 से ज्यादा ग्रंथ रच चुके अब तक

स्वामी रामभद्राचार्य जी को यह सम्मान यों ही नहीं मिला है। हाल ही में उनकी विद्वता का साक्षात्कार दुनिया के सामने एक विशाल संग्रह के रूप में आया है। उनकी रचनाओं में कविताएं, नाटक, शोध-निबंध, टीकाएं, प्रवचन और खुद के ग्रंथों पर स्वयं सृजित संगीतबद्ध प्रस्तुतियां शामिल हैं। वे 100 से ज्यादा साहित्यिक कृतियों की रचना कर चुके हैं, जिनमें प्रकाशित पुस्तकें और अप्रकाशित पांडुलिपियां, चार महाकाव्य, तुलसीदास रचित रामचरितमानस पर एक हिंदी भाष्य, अष्टाध्यायी पर पद्यरूप में संस्कृत भाष्य और प्रस्थानत्रयी शास्त्रों पर संस्कृत टीकाएं शामिल हैं। उनकी रचनाओं के अनेक ऑडियो और विडियो भी जारी हो चुके हैं। वह संस्कृत, हिंदीअवधि, मैथिली और कई दूसरी भाषाओं में लिखते हैं। सनातन वैदिक हिंदू धर्म में ब्रह्मसूत्र, भगवतगीता और उपनिषदों पर अधिकार रखने वाला ही जगतगुरु पद पर विराजित हो सकता है। स्वामी रामभद्राचार्य की पूंजी और आध्यात्मिक श्रम का विस्तार इतना है कि वह आज जीवित संस्था हैं और सनातन संस्कृति के किसी भी पक्ष पर स्पष्टता से पुराणों और वैदिक ग्रंथों से प्रमाण रखकर किसी भी उलझन में धर्म को मार्ग दिखाते रहे हैं।


साहित्य अकादमी से भी हो चुके हैं सम्मानित

स्वामी जी की रचनाओं की तिजोरी में एक से एक नगीने रखे हैं।श्रीभार्गवराघवीयम् उनकी बेहद लोकप्रिय रचना है जिसके लिए उन्हें संस्कृत साहित्य अकादमी पुरस्कार समेत अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें महाकवि तथा कविकुलरत्न आदि अनेक साहित्यिक उपाधियों से भी अलंकृत किया जा चुका है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने प्रस्थानत्रयी (ब्रह्मसूत्र, भगवतगीता और 11 उपनिषदों) पर श्रीराघवकृपाभाष्यम् नामक संस्कृत टीकाओं की रचना की हैइन टीकाओं का विमोचन 1998 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा किया गया था। रामानन्द संप्रदाय में प्रस्थानत्रयी पर संस्कृत टीका प्रस्तुत करने वाले रामभद्राचार्य द्वितीय आचार्य हैं। इनसे पूर्व स्वयं रामानंद ने आनन्दभाष्यम् नामक प्रथम टीका की रचना की थी। इस प्रकार लगभग 600 वर्षों की कालावधि में प्रस्थानत्रयी पर प्रथम बार संस्कृत टीकाओं को रामभद्राचार्य ने प्रस्तुत किया है।


जेआरएफ और पीएचडी भी

14 जनवरी 1950 को शाण्डीखुर्द, जौनपुर में जन्मे स्वामीजी के नेत्रों की ज्योति दो महीने में ही ईश्वर ने ले ली। लेकिन 5 वर्ष के इस बालक ने पूरी श्रीमद्भागवत कंठस्थ करके ईश्वर को अपनी राह बनाने के लिए विवश कर दिया। 7 वर्ष में गिरिधर नाम के इस बालक ने संपूर्ण रामचरितमानस याद करके उसे अपने जीवन का सार बना लिया। यह कम ही लोग जानते हैं कि स्वामीजी को एक बार सुनकर किसी भी विषय को कंठस्थ करने की असाधारण शक्ति है। हाल के इतिहास में स्वामी विवेकानंद के बाद उनका ही ऐसा सामर्थ्य है। 1973 में उन्होंने काशी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से नव्यव्याकरण में शास्त्री परीक्षा में सर्वाधिक अंक पाकर एक मानक बना दियाइसी के बाद 1975 में अखिल भारतीय संस्कृत वाद-विवाद प्रतियोगिता में वह प्रथम आए। 1978 में वे यूजीसी जेआरएफ पाने वाले युवा संन्यासी बने। 1981 में पीएचडी के लिए स्वामी रामभद्राचार्य ने 'आध्यात्मरामायणे अपाणिनीयप्रयोगाणां विमर्शः' को विषय चुना। 19 नवंबर 1982 को स्वामी रामभद्राचार्य ने चित्रकूट में तुलसीपीठ की स्थापना की। इसके 6 वर्ष बाद उन्हें 1988 में जगतगुरु रामानंदाचार्य पद पर सुशोभित किया गया।


अब तक ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार

2021/2022 दामोदर माऊज़ो (कोंकणी)

2020 नीलामणि फूकन (असामी)

2019 अक्कीतम अच्युतन नंबूदिरी (मलयालम)

2018 अमिताव घोष (अंग्रेजी)

2017 कृष्णा सोबती (हिन्दी)

2016 शंख घोष (बांग्ला)

2015 रघुवीर चौधरी (गुजराती)

2014 भालचन्द्र नेमाड़े (मराठी) एवं रघुवीर चौधरी (गुजराती)

2013 केदारनाथ सिंह (हिन्दी)

2012 रावुरी भारद्वाज (तेलुगू)

2011 प्रतिभा राय (ओड़िया)

2010 चन्द्रशेखर कम्बार (कन्नड)

2009 अमरकान्त व श्रीलाल शुक्ल (हिन्दी)

2008 अखलाक मुहम्मद खान शहरयार (उर्दू)

2007 ओ.एन.वी. कुरुप (मलयालम)

2006 रवीन्द्र केलकर (कोंकणी) एवं सत्यव्रत शास्त्री (संस्कृत)

2005 कुँवर नारायण (हिन्दी)

2004 रहमान राही (कश्मीरी)

2003 विंदा करंदीकर (मराठी)

2002 दण्डपाणी जयकान्तन (तमिल)

2001 राजेन्द्र केशवलाल शाह (गुजराती)

2000 इंदिरा गोस्वामी (असमिया)

1999 निर्मल वर्मा (हिन्दी) एवं गुरदयाल सिंह (पंजाबी)

1998 गिरीश कर्नाड (कन्नड़)

1997 अली सरदार जाफरी (उर्दू)

1996 महाश्वेता देवी (बांग्ला)

1995 एम.टी. वासुदेव नायर (मलयालम)

1994 यू.आर. अनंतमूर्ति (कन्नड़)

1993 सीताकांत महापात्र (ओड़िया)

1992 नरेश मेहता (हिन्दी)

1991 सुभाष मुखोपाध्याय (बांग्ला)

1990 वी.के.गोकक (कन्नड़)

1989 कुर्तुल एन. हैदर (उर्दू)

1988 डॉ. सी नारायण रेड्डी (तेलुगु)

1987 विष्णु वामन शिरवाडकर कुसुमाग्रज (मराठी)

1986 सच्चिदानंद राउतराय (ओड़िया)

1985 पन्नालाल पटेल (गुजराती)

1984 तक्षी शिवशंकरा पिल्लई (मलयालम)

1983 मस्ती वेंकटेश अयंगर (कन्नड़)

1982 महादेवी वर्मा (हिन्दी)

1981 अमृता प्रीतम (पंजाबी)

1980 एस.के. पोट्टेकट (मलयालम)

1979 बिरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य (असमिया)

1978 एच. एस. अज्ञेय (हिन्दी)

1977 के. शिवराम कारंत (कन्नड़)

1976 आशापूर्णा देवी (बांग्ला)

1975 पी.वी. अकिलानंदम (तमिल)

1974 विष्णु सखा खांडेकर (मराठी)

1973 दत्तात्रेय रामचंद्र बेन्द्रे (कन्नड़) एवं गोपीनाथ महान्ती (ओड़िया)

1972 रामधारी सिंह दिनकर (हिन्दी)

1971 विष्णु डे (बांग्ला)

1970 विश्वनाथ सत्यनारायण (तेलुगु)

1969 फ़िराक गोरखपुरी (उर्दू)

1968 सुमित्रानंदन पंत (हिन्दी)

1967 के.वी. पुत्तपा (कन्नड़) एवं उमाशंकर जोशी (गुजराती)

1966 ताराशंकर बंधोपाध्याय (बांग्ला)

1965 जी शंकर कुरुप (मलयालम)

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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