×

Mahatma Gandhi Birthday Special: नाथू ने रामभक्त की हत्या से वैष्णव आस्था का कत्ल रचा था!

Mahatma Gandhi Birthday Special: मैं उन भाग्यशालियों में हूँ जिसने महात्मा गाँधी के चरण स्पर्श किये। बात 1946 के शुरुआत की है। कक्षा प्रथम में पढ़ता था।

RK Sinha
Written By RK Sinha
Published on: 2 Oct 2023 12:56 PM GMT (Updated on: 2 Oct 2023 12:58 PM GMT)
Mahatma Gandhi Birthday Special
X

Mahatma Gandhi Birthday Special (Photo-Social Media)

Mahatma Gandhi Birthday Special: अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस (आज : 2 अक्टूबर 2023) की भांति, हर 30 जनवरी (बापू का निर्वाण) को विश्व आतंक-विरोधी दिन मनाया जाए। संसार को यही गांधीवादी संदेश होगा। त्रस्त भूमाता को जब कश्यपपुत्र हिरण्याक्ष ने रसारतल में धकेल दिया था, तो विष्णु ने वराह बनकर उसका वध किया था। धरती को बचाया था। अतः ऐसा ही संदेश मानवता को भी अब भेजा जाए। इसी दैत्य की तरह, नाथूराम विनायक गोडसे भी केवल निकृष्टतम नरपिशाच था। एक निहत्थे, 80-वर्षीय, जर्जर कायावाले, लुकाटी लिए बापू पर गोली चला दी। भाजपाई लोकसभाई (भोपाल-सिरोही) प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने जब गोडसे का महिमा मंडन किया था, तो नरेंद्र मोदी सदन में बड़े शर्मसार हुए थे। व्यथित हुए। वेदना से ग्रसित। उस भ्रमित महिला की मूढ़ता के कारण। हर आस्थावान सनातनी भी अत्यंत शर्मसार होगा, क्योंकि इसी प्रज्ञा का प्रयागराज कुंभ के अवसर पर “भारत भक्ति अखाड़े” का आचार्य महामंडलेश्वर घोषित किया गया था। अब वे महामंडलेश्वर स्वामी पूर्णचेतनानंद गिरी के नाम से जानी जाती हैं। हालांकि प्रज्ञा ठाकुर ने लोकसभा में गोडसे वाले अपने बयान (27 नवंबर 2019) पर माफी मांग ली थी। उन्होंने कहा : “किसी को ठेस पहुंची हो तो माफी मांगती हूं।” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि इस बयान के लिए वो उन्हें कभी दिल से माफ नहीं कर पाएंगे। प्रज्ञा ठाकुर के हमविचारवालों को गोडसे द्वारा जज आत्मा चरण के समक्ष लाल किले में सुनवाई पर दिए गए बयान को पढ़ना चाहिए।

नाथूराम गोडसे ने जज आत्मचरण की अदालत में तीन बातें खारिज की थी। पहला, उसने नकारा था कि वह हिंदू महासभा की नजरिये का अनुयाई है। दूसरा और तीसरा तथ्य अस्वीकार किया था कि विनायक दामोदर सावरकर तथा डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को वह अपना नेता मानता है। अपने को उनका विरोधी बताता रहा। नाथूराम के इस विरोध का आधार यही था कि गांधीजी की हत्या के बाद से हिंदू महासभा ने अपनी संप्रदायिक नीति बदल दी थी। डॉ. मुखर्जी ने तो भारतीय जनसंघ की स्थापना कर ली थी। सावरकर रुग्णावस्था में थे। फिर उनका निधन हो गया। गोडसे का आरोप था कि सावरकर तथा मुखर्जी कांग्रेस के समर्थक हो गए थे। यह बयान जिला न्यायालय में दर्ज है।

इतिहास की एक पहेली अनबूझी रही। न जाने किन कारणों से उस संध्या (30 जनवरी 1948) अपने राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने नहीं बताया कि हत्यारे का नाम क्या था| प्रधानमंत्री के तुरंत बाद आकाशवाणी भवन जाकर सूचना मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने देशवासियों को बताया कि “महात्मा गांधी का हत्यारा एक हिन्दू था|” सरदार पटेल ने मुसलमानों को बचा लिया| वर्ना वही होता जो 30 अक्तूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिक्खों के साथ हुआ था| ऑल इंडिया रेडियो ने हत्यारे का नाम “बेअंत सिंह” बता दिया था।

कुछ माह बीते हत्यारे गोड्से की मूर्ति लगाने की मुहिम चली थी। विकृतमनवाले केवल पागलखाने में नही हैं। छुट्टा भी घूमते हैं। गोड्सेवाले उन्हीं में हैं। फिर सोचता हूँ कि बापू के पक्ष में इन सब तर्कों की जरूरत क्यों है ? वे भौतिकता से इतने परे, आध्यात्म के उस चरम पर पहुंच गये थे जहां शरीर का मोह मायने नहीं रखता है। इसका प्रमाण मेरे मित्रों ने दिया। उन लोगों ने प्लांशेट पर गांधीजी की आत्मा से संपर्क करने का प्रयास किया था। बापू नही आये। कोई दूसरी आत्मा आई। गोड्से था। उसने कहा कि गांधी जी मरणशील मानव की पहुंच से बहुत दूर हैं। वे दिव्य आत्मा हैं जो अब नहीं आयेंगे। बात सच थी। भले ही विश्वास कतिपय आधुनिक जन न करें। पूछने पर गोडसे ने प्लांचेट पर लिखा कि वह पुणे की एक मलिन बस्ती में आवारा कुत्ते के रूप में जन्मता रहा है। खुजली से पीड़ित रहा है। कारण उसने बताया की हत्या एक जघन्य और आमानुषिक अपराध है। फल भुगत रहा था।

अपनी मौत (26 नवंबर 2005) के पूर्व गोपाल गोडसे ने भी एक प्रयास किया था कि उसके हत्यारे भाई नाथूराम की छवि युगपुरुष जैसी बन जाए। चंद हिंदुओं ने उसकी मदद भी की, पर वे नाकाम रहे। गोपाल गोड्से की पत्नी को नाथूराम ने अपनी जीवन बीमा राशि का लाभार्थी नामित किया था। गांधी जी को मारने के दो सप्ताह पूर्व नाथूराम ने अपने जीवन को काफी बड़ी राशि के लिए बीमा कंपनी से सुरक्षित करा लिया था। जाहिर है उसकी मौत के बाद उसके परिवारजन इस बीमा राशि से लाभान्वित होते। पृष्ठ 18 व 19 : “गांधीवध और मैं” लेखक (गोपाल विषयक गोडसे प्रकाशक: वितस्ता प्रकाशन पुणे: 1982)। कथित ऐतिहासिक मिशन को लेकर चलने वाला व्यक्ति बीमा कंपनी से क्या ऐसा मुनाफा कमाना चाहेगा ?

मगर आज भी एक वेदना सालती रहती है। उस निहत्थे संत की हत्या करने वाला नाथूराम गोडसे जरूर कसाई रहा होगा| निर्मम, निर्दयी, जघन्य हत्यारा| उसके पाप से वज्र भी पिघला होगा| कवि प्रदीप के शब्दों में “महाकाल भी बापू की मृत्यु पर रोया होगा।” गोडसे के साथ फांसी पर चढ़ा नारायण आप्टे तो एक कदम आगे था| उसने 29 जनवरी 1948 की रात दिल्ली के वेश्यालय में बितायी थी| ऐसा आदर्श था ! गोडसे ने लन्दन-स्थित प्रिवी काउंसिल में सजा माफ़ी की अपील भी की थी, ख़ारिज हो गई थी| अलग-अलग तरीके से गोडसे की फांसी की सजा माफ कराने की कोशिशें हुईं। नाथूराम के पिता ने गवर्नर जनरल सी. गोपालाचारी के सामने दया याचिका लगाई, जो खारिज हो गई। कोएनार्ड अल्सर्ट ने अपनी किताब “व्हाई आई किल्ड द महात्मा” में लिखा है कि तत्कालीन कानून मंत्री डॉ. भीमराव आंबेडकर तो नाथूराम के वकील से भी मिले थे और कहा था कि वे फांसी की जगह आजीवन कारावास करा सकते हैं।

इस पर विनोबा भावे सहित कई वरिष्ठ नेताओं ने गृहमंत्री सरदार पटेल और तत्कालीन गवर्नर जनरल को पत्र लिखे। असम राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष देबेश्वर शर्मा ने 20 सितंबर 1949 को राजाजी को लिखे पत्र में कहा कि अगर गांधीजी उस हमले में बच गए होते तो वे हमलावरों को माफ कर देते। महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताजी जी. वी. मावलंकर ने लिखा की मृत्युदंड आंख के बदले आंख के बर्बर सिद्धांत का प्रतीक है, जिसका गांधीजी विरोध करते थे। लेकिन सरदार पटेल ने जवाब में बयान जारी किया : “कैदियों ने मुकदमे के दौरान या उसके बाद पश्चाताप के कोई संकेत नहीं दिए। जबकि उम्र और शिक्षा, दोनों से वे इतने परिपक्व हैं कि अपने अपराध की गंभीरता महसूस कर सकें। इसलिए इस मामले में सिवा इसके कोई बात नहीं हो सकती कि कानून को अपना काम करने दिया जाए।”

यूं तो इतिहास में नृशंसतम हत्यारे की भूमिका में नाथूराम गोडसे ने खुद को यादगार बना दिया है, किंतु गत अर्धशती में कुछ ऐसे अवसर भी आए, जब कुछ लोगों ने उसे अलग रोल में चित्रित करने की चेष्टा की। मानों नाथूराम गोडसे किसी विचारधारा का प्रतीक हो। कोई ध्येय साथ रहा हो। हालांकि इसको नकारते हुए, भारतीय जनता पार्टी की अपनी पत्रिका ‘बीजेपी टुडे’ (सितंबर 2005) के एक अंक में प्रकाशित लेख पर यकीन करें, तो मान लेना होगा कि ब्रिटिश गुप्तचरों ने किराए पर नाथूराम से महात्मा गांधी की हत्या कराई थी।

आखिर कैसा, कौन और क्या था नाथूराम विनायक गोडसे ? क्या वह चिंतक था, कोई ख्यातिप्राप्त राजनेता था, हिन्दू महासभा का कभी निर्वाचित पदाधिकारी था, जेलयाफ्ता स्वतंत्रता सेनानी था ? इतनी ऊंचाईयों के दूर दूर तक भी नाथूराम गोडसे कभी पहुंच नहीं पाया था। पुणे शहर के उसके निम्नवर्गीय पुराने मोहल्ले के बाहर भी उसे कोई नहीं जानता था, जबकि वह तब चालीस की आयु के समीप था। नाथूराम स्कूल से भागा हुआ छात्र था। नूतन मराठी विद्यालय में मिडिल की परीक्षा में फेल हो जाने पर उसने पढ़ाई छोड़ दी थी। उसका मराठी भाषा का ज्ञान भी अल्प था। अंग्रेजी और इतर भाषाओं का ज्ञान तेा शून्य ही था। जीविका हेतु उसने पढ़ाई छोड़ दी थी। सांगली शहर में दर्जी की दुकान खोल ली थी। उसके पिता विनायक गोडसे डाकखाने में बाबू थे, मासिक आय पांच रूपए थी। नाथूराम अपने पिता का लाड़ला था क्योंकि उससे पहले जन्मी सारी संताने मर गई थी। नाथूराम के बाद और पैदा हुए थे, जिनमें था गोपाल, जो नाथूराम के साथ सहअभियुक्त था।

कुछ लोग नाथूराम गोडसे को उच्च कोटि का चिंतक, ऐतिहासिक मिशनवाला पुरूष तथा अदम्य नैतिक ऊर्जा वाला व्यक्ति बनाकर पेश करते हैं। उनके तर्क का आधार नाथूराम का वह दस-पृष्ठीय वक्तव्य है जिसे उसने बड़े तर्कसंगत, भावनाभरे शब्दों में लिखकर अदालत में पढ़ा था कि उसने गांधी जी को क्यों मारा?उस समय दिल्ली में ऐसे कई हिंदूवादी थे, जिनका भाषा पर आधिपत्य, प्रवाहमयी शैली में नैपुण्य तथा वैचारिक तार्किकता का ज्ञान भरपूर था। उनमें से कोई भी नाथूराम का ओजस्वी वक्तव्य लिखकर जेल के भीतर भिजवा सकता था। जो व्यक्ति मराठी भी भलीभांति न जानता हो, अंग्रेजी से तो निरा अनभिज्ञ रहा हो, वह व्यक्ति ऐसा बयान क्या लिख सकता था?विश्वास करना कठिन है। यह वैसा ही है जैसा कि कमजोर छात्र परीक्षा में अचानक सौ बटा सौ नम्बर ले आये! हम भारतीय अपनी दोमुहीं, छलभरी सोच को तजकर, सीधी, सरल बात करना कब शुरू करेंगे, कि हत्या एक जघन्य अपराध और सिर्फ नृशंस हरकत है ?

मैं उन भाग्यशालियों में हूँ जिसने महात्मा गाँधी के चरण स्पर्श किये। बात 1946 के शुरुआत की है। कक्षा प्रथम में पढ़ता था। जेल से रिहा होकर पिताजी (स्व. श्री के. रामा राव, संस्थापक–संपादक नेशनल हेराल्ड) परिवार को वर्धा ले गये| जालिम गवर्नर मारिस हैलेट ने हेराल्ड पर जुर्माना ठोक कर उसे बंद ही करवा दिया था| चेयरमैन जवाहरलाल नेहरू भी पुनर्प्रकाशन में नाकाम रहे| सेवाग्राम में हमारा कुटुम्ब बजाज वाड़ी में रहा| गाँधीवादी जमनालाल बजाज का क्षेत्र था| एक दिन प्रातः टहलते हुए बापू के पास पिताजी हम सबको ले गये| हमने पैर छुए| बापू ने अपनी दन्तहीन मुस्कान से आशीर्वाद दिया| मौन का दिन था, अतः बोले नहीं| फिर युवा होने पर जेपी तथा लोहिया से बापू को मैंने और जाना|

जंगे आजादी के दौर में पत्रकारिता-विषयक बापू के आदर्श और मानदण्ड अत्यधिक कठोर थे| हिदायत थी कि झूठा मत छापो, वर्ना पत्रिका बंद कर दो| उसी दौर में हमारी बम्बई यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स ने बापू को अपना अध्यक्ष बनाने की पेशकश की थी| बापू की शर्त थी कि सत्य ही प्रकाशित करोगे| वे पत्रकार फिर लौटकर उनके पास नहीं आये| उस वक्त भारत में चार ही संगठन थे : दिल्ली यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स, मद्रास यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स, बम्बई यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स तथा कलकत्ता में इंडियन जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन| इन सब ने मिलकर जंतर-मंतर पर 28 अक्टूबर 1950 को इंडियन फेडरेशन ऑफ़ वोर्किंग जर्नलिस्ट्स (IFWJ) की स्थापना की थी|

अतः गौरतलब बात है डॉ. राममनोहर लोहिया की उक्ति। लोहिया का नवस्वतंत्र राष्ट्र के सत्ताधीशों पर आरोप था कि गांधी जी के सादगी के सिद्धांत की अत्येष्टि नेहरु और उनके लोगों ने राजघाट में बापू के अन्तिम संस्कार के समय ही कर दी थी।

Anant kumar shukla

Anant kumar shukla

Content Writer

अनंत कुमार शुक्ल - मूल रूप से जौनपुर से हूं। लेकिन विगत 20 सालों से लखनऊ में रह रहा हूं। BBAU से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन (MJMC) की पढ़ाई। UNI (यूनिवार्ता) से शुरू हुआ सफर शुरू हुआ। राजनीति, शिक्षा, हेल्थ व समसामयिक घटनाओं से संबंधित ख़बरों में बेहद रुचि। लखनऊ में न्यूज़ एजेंसी, टीवी और पोर्टल में रिपोर्टिंग और डेस्क अनुभव है। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म पर काम किया। रिपोर्टिंग और नई चीजों को जानना और उजागर करने का शौक।

Next Story