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Marriage Institution: विवाह संस्था को बचाने की जरूरत क्यों हो रही है

Marriage Institution Protecting: कुछ ऐसी ही होती हैं ये लड़कियां, ये स्त्रियां जिस घर में शादी होकर जाती हैं, वहीं की होकर रह जाती हैं।

Anshu Sarda Anvi
Written By Anshu Sarda Anvi
Published on: 18 March 2024 9:15 AM GMT
Protecting the Institution of Marriage:
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Protecting the Institution of Marriage: 

Marriage Institution Protecting: जब मैं पक्षियों को हवा में उड़ते हुए देखता हूँ तो सोचता हूँ कि क्या वे इसी शहर के निवासी हैं। या क्या पता किसी दूसरे शहर से आये हों या शायद किसी दूसरे देश से आये हों। क्योंकि पक्षी न तो शहर की सीमा जानते हैं और न ही देश की सीमा पहचानते हैं। जहां भी उन्हें उनके लिए उपयुक्त माहौल मिलता है,। वे वहीं रह जाते हैं ये लड़कियाँ ऐसी होती हैं, ये औरतें जिस घर में ब्याही जाती हैं वहीं रहती हैं, इसीलिए लड़कियों को चिड़कली कहा जाता है। इनकी तुलना पक्षियों से की जाती है। एक बुनकर की तरह वह अपने मायके के रीति-रिवाजों और परंपराओं को अपने नवनिर्मित घर यानी अपने ससुराल के रीति-रिवाजों और परंपराओं के साथ जोड़ती है।

रीति-रिवाजों और परंपराओं को संतुलित करता है। दादी-नानी के समय से चली आ रही परंपराओं से शुरू कर कुछ को छोड़कर और कुछ को जोड़कर परिवार की समृद्धि और सुख-शांति के लिए इसका एक सिरा आज भी कायम रखते हैं।जीवन में कई भूमिकाएँ निभाते हुए वह अपने घर को पहचानने और समझने की कोशिश करती है। वे अपने खान-पान और यहां तक कि अपनी पसंद-नापसंद भी भूल जाते हैं। और वे अपनी जड़ों से उखड़ने के बाद भी उस परिवार से ऐसे जुड़ जाते हैं। जैसे कोई पुराना रिश्ता हो. बेफिक्र जिंदगी से अनजान राहों तक का सफर एक अनजान साथी के साथ शुरू होता है और दोनों की धड़कनें ऐसे धड़कती हैं मानो ताल से ताल मिल रही हो। फिर बच्चे जीवन में आते हैं----1, 2, 3...जो भी हों। ज़िन्दगी अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ती है और ये धड़कनें, ये प्यार, कभी बड़े हो जाते हैं तो कभी दब कर रह जाते हैं। ये प्यार बदलते मौसम की तरह बदलता है। कभी थोड़ा एकतरफ़ा, कभी असभ्य और कभी नीरस।




किसी भी रिश्ते में प्यार, स्नेह और देखभाल ऐसे मापदंड हैं जो दो लोगों को एक रिश्ते में बांधते हैं। जब यह एकरसता उबाऊ हो जाती है तो इसे तोड़ने के लिए अपनी दिनचर्या से कुछ अलग करना जरूरी हो जाता है ।और इसके लिए हमारे देश में अवसरों, उत्सवों और दिनों की कोई कमी नहीं है। ये धार्मिक आयोजनों से बनते हैं। कहीं घूमने-फिरने से भी बनते हैं और अगर नहीं बनते तो सामाजिक और पारिवारिक उत्सवों के आयोजन से भी बनते हैं। जिनमें जीवन के अलग-अलग रंग देखने को मिलते हैं। और आपको एक ऐसी खुशी मिलती है जो आपको अपनी आगे की जिंदगी को उत्साह से जीने का मंच देती है। जीवन की नीरसता और एकरसता को तोड़ने के लिए त्योहारों का होना जरूरी है। जीवन में बर्फ की तरह जमे अकेलेपन को पिघलाने के लिए त्योहारों और समारोहों की ऊर्जा रूपी आग बहुत जरूरी है। अपने दोस्तों और परिवार को एक साथ इकट्ठा करने के लिए उत्सव भी आवश्यक हैं। जब आप अपने घर की चारदीवारी के भीतर सीमित होते हैं या अपने दैनिक जीवन में घुटन महसूस करते हैं, तो बाहर घूमना और कार्यक्रम हमेशा शरीर और दिमाग दोनों को तरोताजा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

अब जब शादी करने वाले युवाओं और शादी की चाहत रखने वालों की संख्या दिन-ब-दिन गिरती जा रही है, तो परिवार और शादी नाम की इन संस्थाओं को बचाना और बनाए रखना बहुत ज़रूरी है। इसके लिए जरूरी है कि उन्हें परिवार और विवाह के सुखद पहलुओं से परिचित कराया जाए। उन्हें बताया जाना चाहिए कि ऐसा नहीं है कि परिवार या शादी उनकी जिंदगी को दबा देगी या उन्हें आगे नहीं बढ़ने देगी। उन्हें बताया जाए कि परिवार और विवाह संस्था भी आपको सहयोग प्रदान करने और आपकी राह को संभव और आसान बनाने के लिए आवश्यक हैं।


वर्तमान में हम देख रहे हैं कि जैसे-जैसे लड़कियों की शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है, वे विवाह के प्रति विमुख होती जा रही हैं। इसका एक मुख्य कारण यह है कि उन्हें पता होता है कि शादी के बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल जाएगी। वे जानती हैं कि भले ही उन्होंने प्रेम विवाह किया हो, लेकिन शादी के बाद उनके पहनावे से लेकर खान-पान तक सब कुछ उनके ससुराल वालों और पति की इच्छा के अधीन होगा। और जो लड़कियां अपने आसपास हर दिन रिश्तों को बिगड़ते हुए देखती हैं, वे शादी के बाद सामंजस्य को लेकर अपने मन में नकारात्मक छवि बना लेती हैं। अब वह पढ़ाई और जिंदगी अपनी शर्तों पर जीकर अपने करियर को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में विश्वास रखती हैं। वह अपनी जिंदगी को किसी के आदेश पर घड़ी की सुइयों की तरह 24 घंटे घुमाना नहीं चाहती। आजकल की लड़कियां पुराने जमाने की महिलाओं जितनी सहनशील नहीं रह गई हैं। वह अपने पति के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं। वे भी उनकी तरह कमाई कर बराबर सम्मान की उम्मीद रखते हैं। जिसके कारण कई बार दोनों के बीच ईगो का टकराव होने लगता है और रिश्ते में दरार आने लगती है। वहीं, लड़के शादी के बाद आने वाली बंदिशों, पूछताछ और जिम्मेदारियों का बोझ भी नहीं उठा पाते हैं। इसलिए युवाओं के मन में शादी को लेकर जो शंकाएं हैं उन्हें दूर करने और उन्हें शादी नाम की संस्था से जोड़ने की असली जरूरत है।

Shalini Rai

Shalini Rai

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