×

Paper Leak Mamla: परीक्षाओं में फेल होती परीक्षाएं!

Paper Leak Mamla: ताज़ा मामला उत्तर प्रदेश का ही है। जहां पुलिस भर्ती की परीक्षा पेपर लीक होने की वजह से रद कर दी गई है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 27 Feb 2024 4:38 PM GMT
Bharti Paper Leak Mamla Sarkari Naukari Ghotala Cases Report
X

Bharti Paper Leak Mamla Sarkari Naukari Ghotala Cases Report

Paper Leak Mamla: किसी मुकाम पर पहुंचने का कोई शॉर्ट कट नहीं होता। रास्ता पूरा और नियत तरीके से ही तय करना पड़ता है। ये तय है। जल्दी रास्ता तय करने या झटपट नतीजा हासिल करने के नतीजे भी शॉर्ट ही होते हैं। इस सच्चाई को जानने के बावजूद शॉर्ट कट अपनाने वालों की कोई कमी नहीं है। हम अपने इर्दगिर्द देखें तो हर जगह यही नजर आता है। खासकर, हमारे युवा देश के युवा कर्णधारों के बीच ये रोग गहरे पैठ कर गया है। बस किसी तरह नतीजा अपने हक में चाहिए। और ये बीमारी स्कूल स्तर से ही शुरू हो जाती है।

तभी तो, स्कूल-कालेज की परीक्षा हो, कहीं दाखिले की परीक्षा हो या नौकरी पाने की परीक्षा हो, हर स्तर पर पास भर होने के लिए शॉर्ट कट अपनाने वालों की भरमार है। ये भी जरायम का बड़ा धंधा बन चुका है। ये उसी तरह है कि ड्रग्स न लेने वालों को चस्का लगा कर लती बनाया गया है। पहले जो कभी सुना नहीं गया था वह शब्द "एग्जाम माफिया" अब प्रचलन में आ चुका है।

इसी का असर है कि भारत में अक्सर ही पर्चे लीक होने की खबरें आती रहती हैं, जिसके चलते परीक्षा रद्द करनी पड़ती है। ताज़ा मामला उत्तर प्रदेश का ही है। जहां पुलिस भर्ती की परीक्षा पेपर लीक होने की वजह से रद कर दी गई है। अब 48 लाख परीक्षार्थियों पर क्या बीतेगी, ये आप खुद अंदाज़ा लगा सकते हैं।


यूपी के इस मामले के आलोक में जान लीजिए कि बीते पांच वर्षों में 15 राज्यों में नौकरी भर्ती परीक्षाओं में पर्चा लीक के 41 मामले पाए गए थे। जो मामले पकड़ में नहीं आये उनका तो कहना ही क्या। दो साल पहले, रेलवे भर्ती परीक्षा के परिणामों में गड़बड़ी की शिकायत को लेकर खूब हिंसक बवाल हुआ, जिसके चलते परीक्षा स्थगित कर दी गई। इस परीक्षा में लगभग 35,200 से अधिक पदों के लिए लगभग 7,00,000 उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट किया गया था। राजस्थान में 2018 के बाद से 12 भर्ती परीक्षाएं रद की जा चुकी हैं। कई परीक्षा तो आखिरी घड़ी में रद की गईँ। क्यों? वही पेपर लीक का रोग।

मध्यप्रदेश के व्यापम स्कैम की परतें तो आज तक नहीं खुल सकीं हैं। 2013 में इसका भंडा फूटा था। हजारों नौकरियां फर्जी तरीकों से हासिल की गईं, कितने ही मेडिकल एडमिशन भ्रष्ट तरीके से लिये गए। 13 तरह की परीक्षाओं को आयोजित करने वाले व्यापम संगठन में क्या क्या नहीं हुआ। घोटाले में नेता, हर स्तर के अधिकारी और व्यवसायी शामिल थे। इस बेहद खतरनाक स्कैम में दर्जनों लोगों की जान तक जा चुकी है।

2022 में सीबीआई ने आईआईटी में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा में सेंध लगाने के आरोप में एक रूसी हैकर को गिरफ्तार किया था। ये हैकर किसी कोचिंग संस्थान के लिए काम करता था। इसे धोखाधड़ी की इंतहा ही कहेंगे।


शायद दुनिया में भारत ही एकमात्र देश है जहां परीक्षा में बेईमानी के खिलाफ केंद्रीय और राज्यों के कानून हैं जिनमें सख्त सजाओं का प्रावधान है। पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों ने परीक्षाओं में धोखाधड़ी को रोकने के लिए कानून बनाए हैं, खासकर लोक सेवा आयोगों में भर्ती के लिए। परीक्षाओं में धोखाधड़ी और बेईमानी के कारण 2023 में उत्तराखंड ने सख्त कानून बनाया। गुजरात में आलम ये रहा कि 2015 के बाद से राज्य बिना पेपर लीक के एक भी भर्ती परीक्षा आयोजित करने में सक्षम नहीं हुआ है। इसीलिए फरवरी 2023 में, गुजरात विधानसभा ने सार्वजनिक परीक्षाओं में धोखाधड़ी को दंडित करने के लिए एक कानून भी पारित किया। अन्य राज्यों जैसे कि राजस्थान (2022), उत्तर प्रदेश (1998 में पारित अधिनियम) और आंध्र प्रदेश (1997 में पारित अधिनियम) में भी समान कानून हैं।

ताज़ा तरीन उदाहरण केंद्र सरकार का है। संसद ने सरकारी नौकरियों और सार्वजनिक कॉलेजों में प्रवेश के लिए परीक्षाओं में नकल रोकने के लिए एक सख्त नया कानून पास किया है।कानून के तहत नकल की सुविधा देने वालों के लिए तीन से 10 साल की जेल की सजा का प्रावधान है। यही नहीं, इसमें दस लाख रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक का जुर्माना भी है।नया कानून सीधे तौर पर परीक्षार्थियों पर जुर्माना नहीं लगाता है बल्कि नकल कराने वालों यानी एग्जाम माफिया को टारगेट करता है। यह कानून संघीय सरकार और उसकी परीक्षण एजेंसियों द्वारा आयोजित अधिकांश परीक्षाओं पर लागू होगा। सभी अपराध गैर-जमानती हैं और उनकी जांच वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा की जाएगी। सरकार ने कहा है कि यह अधिनियम "अधिक पारदर्शिता, निष्पक्षता और विश्वसनीयता" लाएगा क्योंकि यह परीक्षाओं में कदाचार को रोकने वाला पहला संघीय कानून है।

सिर्फ कानून ही नहीं, 2017 में केंद्र सरकार ने बाकायदा एक नेशनल टेस्टिंग एजेंसी स्थापित की जिसका काम जेईई मेन, नीट यूजी, यूजीसी-नेट, सीमैट, जैसे राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं को कराना है। ये तो राष्ट्रीय एजेंसी है, हर राज्य में अपने अपने भर्ती बोर्ड, परीक्षा बोर्ड हैं। लेकिन नतीजा क्या है?

जब भी पेपर लीक होते हैं, दूसरे के नाम पर परीक्षा देते लोग पकड़े जाते हैं, आंसर शीट में बेईमानी पकड़ी जाती है तब एग्जाम माफिया के नाम पर कुछ धरपकड़ होती है, बहुत से बहुत कुछ बाबू धरे जाते हैं। लेकिन परीक्षा बोर्ड के आला अधिकारियों पर कोई आंच नहीं आती। परीक्षा सही से कराने का सात चक्रव्यूह रचने वाले को छुआ तक नहीं जाता जबकि पैदल सेना के सिपाही पकड़े जाते हैं। ये भी एक अजीब सिस्टम है। ये पहले ही क्यों मान लिया जाता है कि परीक्षा - भर्ती बोर्डों के आला आईएएस, आईपीएस अफसर बेदाग हैं, एग्जाम माफिया के करोड़ों के खेल में उनका कोई हाथ नहीं है? जबकि यही आला अफसर परीक्षा के पहले अपने चक्रव्यूह में बायो मीट्रिक व्यवस्था, फेशियल रिकग्निशन, मोबाइल जैमर, सीसीटीवी, स्कैनिंग, एक्सरे, और न जाने क्या क्या इंतजामों का बखान करते नहीं थकते। लेकिन पर्चा लीक होने पर उनको कठघरे में खड़ा नहीं किया जाता।

परीक्षा तो किसी को तौलने, आंकने,समझने का पैमाना होती है। परीक्षा देने वाले के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण स्थिति क्योंकि परीक्षा का परिणाम बना भी सकता है या तोड़ सकता है। परीक्षा लेने वाले को इसीलिए बहुत ऊंचा स्थान दिया गया है, वह एक तरह से न्यायाधीश की भांति होता है, उसे गलत और सही का निर्णय जो लेना होता है।

परीक्षा पूर्णतया निष्पक्ष, स्वतंत्र और बेदाग प्रक्रिया है जिसे हर तरह से ऐसा होना चाहिए जिस पर उंगली न उठाई जा सके। ये आदर्श स्थिति है। लेकिन तमाम चीजों की तरह परीक्षा भी आदर्श स्थिति से कोसों दूर पहुंची हुई नजर आती है।

यूपी में लंबे अरसे बाद पुलिस कांस्टेबलों की भर्ती की घोषणा हुई। सरकारी नौकरी की आस लगाए हुए देश भर के 48 लाख से ज्यादा युवाओं ने 60 हजार पदों के लिए अर्जी लगाई।सरकार ने परीक्षा की शुचिता बनाये रखने के लिए इंतजामों के लम्बे चौड़े दावे थे। लेकिन नतीजा क्या हुआ? वही पेपर लीक, परीक्षा रद, करोड़ों का नुकसान, हताश परीक्षार्थी।


हालात को कंट्रोल करने के लिए अब केंद्रीय कानून है। राज्यों के कानून अपनी जगह हैं। लेकिन क्या सिर्फ कानून बनाने, सख्त सजा बनाने से बीमारी ठीक हो जाएगी। शायद नहीं। क्योंकि हर अपराध के लिए सजाएं हैं, कानून हैं फिर भी कौन से अपराध घटे हैं? अपराध खत्म होना तो बहुत दूर की बात है। हत्या की सज़ा फांसी है लेकिन हत्याएं बढ़ी ही हैं।

दरअसल, समस्या की जड़ कहीं और है लेकिन मट्ठा कहीं और डाला जा रहा है। बेरोजगारी,सरकारी नौकरी के लिए दीवानापन, सामाजिक सुरक्षा की नितांत कमी, गरीबी, भ्रष्ट आचरण, बेईमानी जैसे तमाम कारक हैं जहां तक जड़ें फैली हुईं हैं और फैलती-गहराती ही जा रहीं हैं। ये तो लोककथा के हाइड्रा की तरह है जिसका एक सिर कटता था तो दो और उग आते थे। एग्जाम माफिया भी उसी तरह है। एक पकड़ा जाता है तो उसकी जगह चार और आ जाते हैं। कैसे नष्ट होगा ये हाइड्रा और कब? इंतज़ार देश के कर्णधारों को है।

Admin 2

Admin 2

Next Story