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Blessings of Elders: कहां गए वो आर्शीवाद देते बड़े-बुजुर्ग

Blessings of Elders: अब उन बुजुर्ग रिश्तेदारों की वह पीढ़ी इस दुनिया में ही नहीं रही जो इस तरह के आशीर्वाद दिया करते थे। सच कहूं तो उन्हें प्रणाम का अभिवादन करने में भी बहुत अच्छा लगता था।

Anshu Sarda Anvi
Written By Anshu Sarda Anvi
Published on: 19 Nov 2023 3:00 PM GMT
Where have the elders given their blessings gone
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कहां गए वो आर्शीवाद देते बड़े-बुजुर्ग: Photo- Social Media

Blessings of Elders: 'राम जी महाराज सुहाग -भाग बनो रहवे, चूड़ा-चुनड़ी बनी रहवे, बाबू मोकली कमाई करें, बच्चा राजी रहवे, बालाजी महाराज रक्षा करें..........' और उसके आगे भी पता नहीं कितने आशीर्वाद बुद-बुदाते रहती थीं मेरी दादेरसासु, मेरी बुआ सास, मेरी पूफा जी और फिलहाल में अभी-अभी मिलकर आई वे बुआ सास भी जो कि शारीरिक रूप से पूर्णतः अस्वस्थ हैं लेकिन मानसिक रूप से पूर्णतः सक्रिय। आजकल शहरों में, वह भी हमारे जैसे प्रवासियों के लिए तो विशेष कर इस तरह के आशीर्वाद सुनना रेत में सुई ढूंढने जैसा हो चला है। अब उन बुजुर्ग रिश्तेदारों की वह पीढ़ी इस दुनिया में ही नहीं रही जो इस तरह के आशीर्वाद दिया करते थे। सच कहूं तो उन्हें प्रणाम का अभिवादन करने में भी बहुत अच्छा लगता था। वह सब कुछ पुराने समय का था...... नहीं-नहीं पुराना समय कैसे कहूं, मैं भी तो उसी समय में ब्याह कर आई थी, जब घर के सभी बड़े बहूओं का नाम न लेकर फलाना की बीनणी, फलाना की मां कहा करते थे। हमेशा यह सुनकर नई नवेलेपन का एहसास होता था।

एक समय ऐसा भी आया था जब हमें उनकी टोका-टोकी या कही गई बातें कभी-कभार सिर के ऊपर से निकल जाया करती थी या हम निकल जाने दिया करते थे, पसंद नहीं करते थे या उनकी लंबी बातें हमें थका दिया करती थी, बोझिल कर दिया करती थीं एक समय के बाद। वे अपने किस्से, अपने बीते दिनों की बातें हमें कहा करते थे, हम कभी उनसे अपनी इच्छा, अपनी रुचि जाहिर किया करते थे तो कभी कोई बहाना बनाकर उठ जाया करते थे। कभी-कभी 'सावधानी हटी दुर्घटना घटी' वाली उपरोक्ति को ध्यान कर भी उठ जाया करते थे कि कहीं यह कोई ऐसी बात न कह दे जो कि हमें मुश्किल में डाल दे, या हमारी अपनी कमी को बेपर्दा कर दे। पर फिर भी उनकी इन बातों ने हमें उन्हें जानने का, उनको समझने का, उनके संघर्ष के दिनों की बातों की जानकारी देने का मौका दिया। हमें अपनी पुरानी पीढ़ियों के बारे में उनकी बातों से ही जानकारी मिली।

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अपनी संस्कृति को सहेजना जरुरी

कब कौन कहां रहते थे, कौन कहां से कहां गया, कौन कहां से कब गया, कौन परिवार वहां से कब प्रवासी बना, हमारे घरों का माहौल कैसा था, किस तरह से रीति -रिवाज, त्योहार मनाए जाते थे, क्या, किस तरह का खानपान था या किसी तरह की दिनचर्या थी, किस तरह का पहरान था? सब कुछ उनकी इन बातों ने ही हमें बताया पर फिर भी इतनी जागृति नहीं थी, यह समझ नहीं थी कि हम उस मौखिक वार्तालाप को यादों में कितना खुद भी सहेज पाएंगे। यह इतिहास इस पीढ़ी के जाने के बाद मिट्टी में ही दब जाएगा। फिर हमें ये बातें कौन बतायेगा ? कभी-कभी ऐसा मन में विचार भी आया कि उनकी बातों को लिखूं, सहेजूं, रिकॉर्ड करूं पर पारिवारिक व्यस्तता और न मिलने वाली लेखनीय माहौल ने कभी ऐसा नहीं होने दिया, जिसके जिम्मेदार हम स्वयं भी होते हैं और जब वही पीढ़ी धीरे-धीरे करके काल-कलवित हो रही है, उनकी वे बातें बहुत याद आ रही हैं जो कि अब स्मृति लोप में भी जा चुकी हैं क्योंकि उन्हें तो अभी भी नहीं सहेजा तो कभी भी नहीं सहेज पाएंगे।

और ये सिर्फ यादें या बातें नहीं होती हैं, ये हमारी विरासत होती हैं , ये हमारी पारिवारिक धरोहर होती हैं, सामाजिक- सांस्कृतिक धरोहर होती हैं। वे बातें अपनी जड़ों से जुड़े रहने का एक माध्यम थी, जिससे हमने उनके संघर्षों के विषय में जाना था। वे कहानियों के माध्यम से हमें उस समय की विरासत, वैभव और परिवारों की मान-मर्यादाओं का पता बताती थीं। उनके अहम् के, उनकी पगड़ी के सम्मान के, उनकी अपने परिवारों की नाक न नीची हो जाए उससे संबंधित अनेकों कहानियां , संयुक्त परिवार किस तरह से एक साथ रहते थे, किस तरह से व्यापार चल करता था, इतने बड़े-बड़े परिवारों को एक साथ कौन, किस तरह से सहेज कर रखता था , घर की महिलाएं क्या पहनती थी, घर के पुरुष किस तरह से दूर देश कमाने जाते थे, ये सब बातें उन्हीं की उन बातों से मालूम पड़ीं।

आज की पीढ़ी

आज की पीढ़ी में यह धैर्य कहां कि वह इन बातों को बैठकर उतना खुद से सुने या समझे और उन पर मनन करें। इस 'यूज एंड थ्रो' प्रयोग वाली पीढ़ी को यह सब समझाने के लिए अनेकों बड़े-बड़े परिवारों ने, घरानों ने अपनी पुरानी पीढ़ियो की स्मृतियों को पुस्तकाकार किया है, उनसे संबंधित चित्रों को ,पुरानी चिट्ठियों को, उनकी फोटोस को, पुराने सामान और उनकी विस्तृत जानकारी को और जा चुकी पीढ़ी से संबंधित स्मृतियों को लेखों के माध्यम से एक स्थान पर संग्रहित किया है, जिससे जब कभी भी हमारे युवा पीढ़ी अपने परिवार के विषय में जानने के प्रति जिज्ञासु बने तब उनकी इस जिज्ञासा को शांत करने के लिए उपलब्ध जानकारी की यह किताबें काम आएंगीं, जो कि नई पीढ़ी को एक विरासत, एक धरोहर के रूप में स्थानांतरित हो सकेगी।

उदाहरण के लिए राजस्थान के लोसल गांव की बड़ी हवेली के काबरा परिवार ने अपने पूर्वजों और अपनी हवेली से संबंधित एक बहुत ही सुंदर कॉफी टेबल बुक बनाई है, जिसमें काबरा परिवार, बड़ी हवेली के परिवार से संबंधित सभी जानकारियां, हवेली के नक्शे की जानकारी बहुत ही सुंदर आकर्षित चित्रों के माध्यम से और ग्राफ चित्रों के माध्यम से भी तथा लेखों के द्वारा दी गई है। इसी तरह से कई अन्य परिवारों की भी अपने परिवार की जानकारी से संबंधित किताबें हैं जो कि धरोहर के रूप में अगली पीढ़ी को सहजने के लिए दी जा सकेगी।

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नई पीढ़ी को अपने रीति-रिवाजों, त्योहारों, परिवार को जानना जरुरी

बच्चों को अपनी जड़ों से जुड़ना है तो उन्हें जिज्ञासु बनकर अपने रीति-रिवाजों, त्योहारों, परिवार को जानना होगा। हमारी मौजूदा पीढ़ी को भी अपने इतिहास के संरक्षण की चेष्टा करनी होगी तभी वह खुद उसे सुरक्षित रख पाएगा अन्यथा यह मौखिक वार्तालाप एक दिन हवा हो जाएगा और हवा तो कभी भी किसी के हाथ नहीं आती। उस पीढ़ी को मिश्रित संस्कृति या संस्कारों की जानकारी मिलते वह अपनाएं, वह ठीक है पर सभी परिवारों और समाज की अपनी भी कोई विशिष्टता होती है जो उसे अन्य से अलग करती है, वह जानना भी आवश्यक है। अंत में सूर्योपासना के महापर्व छठ पूजा और गोपाष्टमी की अनेकानेक शुभकामनाएं।

Shashi kant gautam

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