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सपाट पैरों के साथ नहीं थी राह आसान,जानें दीपा के त्रिपुरा से रियो का सफर

suman
Published on: 8 Aug 2016 7:57 AM GMT
सपाट पैरों के साथ नहीं थी राह आसान,जानें दीपा के त्रिपुरा से रियो का सफर
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लखनऊ: 52 सालों से जिमनास्ट में भारत की ओर से कोई नहीं रहा जो इस खेल का प्रतिनिधित्व करें। इस बार भारत के लिए रियो ओलंपिक में यही खास बात है कि इस बार जिम्नास्ट में भारत की ओर से दीपा कर्माकर ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है और दीपा के रूप में पहली बार रियो में भारतीय महिला जिमनास्ट नजर आएगी। दीपा ने ना सिर्फ ओलंपिक में अपनी इंट्री पाई है बल्कि महिला जिमनास्ट ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर गोल्ड मेडल भी जीता। अब दीपा अपनी मंजिल से कुछ कदम दूर है। सबकुछ अच्छा रहा तो वो जल्द ही मंजिल की उड़ान भर सकेंगी।

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त्रिपुरा से रियो तक का सफर

वैसे तो दीपा रियो ओलंपिक में जिमनास्टिक के फाइनल में पहुंच चुकी हैं और उनके पास अब मौका है जिमनास्टिक में मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनने का। लेकिन इससे पहले जानते हैं दीपा के त्रिपुरा से रियो तक का सफर....

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दीपा का जन्म 9 अगस्त 1993 को अगरतला में इंफाल स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) केंद्र में भारोत्तोलन कोच दुलाल ककर की बेटी रुप में हुआ। 6 साल की उम्र में ही दीपा ने जिमनास्टिक ओर रुख किया। लेकिन दीपा के पैर उस वक्त सपाट थे जिससे उससे शुरुआती दिनों में परेशानियों का सामना करना पड़ा। कहते हैं ऐसे पैरों वाले आसानी से जिमनास्ट नहीं बन पाते, लेकिन दीपा ने अपनी मेहनत और लगन से सब कर दिखाया।

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पापा ने जगाया बेटी में खेल के प्रति जुनून

बेटी के ओलंपिक फाइनल में पहुंचने पर पिता ने खुशी जाहिर की और ये भी कहा कि वो बचपन में जिमनास्टिक नहीं करना चाहती थी। पर धीरे-धीरे उसके प्रति रुचि पैदा की गई और फिर दीपा ने इस खेल में अपना बेहतर देना शुरू कर दिया। दीपा की खास बात है कि वो जो चाहती है उसे पूरा करके दम लेती है।

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मिला सही मार्गदर्शन

कहते है कि अगर गुरु ज्ञानी है तो शिष्य को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। दीपा की सफलता में भी बहुत हद तक उनके गुरु का भी योगदान रहा है। दीपा ने बिस्बेश्वर नंदी से जिमनास्ट की कोचिंग ली है। उनके कोच ने ट्रेनिंग के दौरान दीपा को हर समस्या से निजात दिलवाया है। दीपा के कोच नंदी का कहना है कि जब वे ट्रेनिंग लेने गई थी तब उनके पैर सपाट थे ऐसे पैरों की वजह से एथलीट के लिए पैर जमाना और भागना या कूदना आसान नहीं होता है। उन्होंने कहा कि दीपा की इस समस्या को ठीक करना ही सबसे बड़ी चुनौती थी। दीपा के पैरों में उस तरह का घुमाव लाने के लिए बचपन से ही दीपा ने कोच के साथ मिलकर बहुत मेहनत की। अर्जुन अवॉर्ड जीत चुकीं दीपा का कहना है कि वो जो भी है उसमे सारा श्रेय केवल उनके कोच को जाता है।

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दीपा ने 52 साल बाद फिर जगाया आस

रियो ओलंपिक में पहुंचने से पहले दीपा ने टेस्ट एग्जाम भी पास कर वाल्टस फाइनल में गोल्ड मेडल जीता और वे 14.833 प्वॉइंट के अपने बेस्ट प्रदर्शन के साथ महिला वाल्टस फाइनल में टॉप पर रहीं। हालांकि दीपा से पहले भी ग्यारह पुरुष जिमनास्ट- 1952 में दो, 1956 में तीन और 1964 में 6-ओलंपिक में भाग ले चुके हैं, लेकिन उस वक्त क्वालिफाइंग मुकाबले नहीं होते थे और सीधे ओलंपिक में प्रवेश मिल जाता था।

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आज के वक्त में दीपा बेस्ट आर्टिस्ट जिमनास्ट बन चुकी है और देश का प्रतिनिधित्व कर रही है उनसे पहले जिन 11 पुरुष खिलाड़ियों ने खेल में किस्मत आजमाया। वे इस खेल में सुविधाओं की कमी की वजह से खिलाड़ी कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाए। 52 साल के बाद दीपा ने जिमनास्ट में अपना दमखम दिखाया है। तो अब सरकार भी उनकी हौसलाअफजाई में आगे आई है और इस खेल के स्वर्णिम भविष्य को लकेर दीपा को केंद्रीय खेल मंत्रालय ने ओलंपिक स्कीम टॉप्स में शामिल किया। जिसके अनुसार उन्हें ओलंपिक की तैयारियों के लिए 30 लाख रुपये तक की आर्थिक मदद दी जाएगी।

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कुल 77 मेडल जीते

साल 2014 में दीपा ने ग्लास्को राष्ट्रमंडल खेलों में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। उसके बाद साल 2015 में उन्होंने एशियाई जिमनास्टिक चैंपियनशिप में भी ब्रॉन्ज मेडल जीता था। इससे पहले साल 2007 में उन्होंने जूनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में जीत दर्ज की थी। इसके बाद से उन्होंने राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुल 77 मेडल जीते हैं जिनमें 67 गोल्ड मेडल शामिल हैं।

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