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UP विधानसभा चुनाव: आरक्षित सीटें एक बार फिर तय करेंगी सत्ता की मंजिल

aman
By aman
Published on: 12 Jan 2017 11:42 AM GMT
UP विधानसभा चुनाव: आरक्षित सीटें एक बार फिर तय करेंगी सत्ता की मंजिल
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R-Narayan

लखनऊ: यूपी विधानसभा चुनावों में अनुसूचित जाति के आरक्षित सीट महत्वपूर्ण रोल अदा करते रहे हैं। लगता है कि अगले महीने होने वाले चुनाव में भी सरकार बनाने या बिगाडने में ये सीटें महत्वपूर्ण हो सकती हैं। ऐसा हो भी क्यों नहीं। यूपी में विधानसभा की 85 सीटें आरक्षित जो हैं।

दलित वोट को अपना आधार मानने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) इन सीटों पर ज्यादा ध्यान देती है। क्योंकि विधानसभा के 2007 के चुनाव में बसपा ने इनमें से 62 सीटें जीती थीं। इन सीटों पर मिली जीत की बदौलत ही बसपा पूरे बहुमत की सरकार बनाने में सफल रही थी।

साल 2012 में टूटा बसपा का तिलिस्म

साल 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा आरक्षित सीटों पर कोई करिश्मा नहीं दिखा सकी। उसे मात्र 15 सीटें ही मिली। इनमें अधिकतर सीटों पर समाजवादी पार्टी (सपा) ने कब्जा किया और सरकार बनाने में सफलता पाई। सपा को कुल 58 सीटें मिली थी।

राज्य में दलित आबादी 21 प्रतिशत

अनुसूचित जाति जिसे यूपी में दलित कहा जाता है वो साधारण सीटों पर भी हार-जीत में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। क्योंकि राज्य में उनकी जनसंख्या करीब 21 प्रतिशत है। यूपी की कुल जनसंख्या करीब 22 करोड़ है, जिसमें 14 करोड़ मतदाता हैं।

आगे की स्लाइडस में पढ़ें कैसे बीजेपी ने कैसे दरकाया बसपा का किला...

पश्चिमी यूपी दलित बाहुल्य

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलितों की अच्छी खासी संख्या है। बसपा प्रमुख मायावती भी इसी इलाके से आती हैं। इसीलिए उनका इस इलाके में खासा दबदबा है। पश्चिमी यूपी की 17 आरक्षित सीटों में मायावती ने 10 सीटों पर चमार या जाटव को प्रत्याशी बनाया है।

बसपा को मिले-जुले परिणाम

विधानसभा के 1993-2007 के चुनाव पर नजर डालें तो ये सामने आता है कि बसपा को सिर्फ 2007 के चुनाव में ही 15 सीटें मिली, जबकि कभी भी उसे 23 से कम सीटें नहीं मिली थी। लेकिन लोकसभा चुनाव में इन सीटों ने बसपा को मिले-जुले परिणाम दिए हैं। लोकसभा के 2014 के चुनाव में बसपा को किसी भी सीट पर सफलता नहीं मिली और उसकी झोली खाली रह गई। जबकि लोकसभा के 2004 के चुनाव में उसे पांच और 2009 के चुनाव में दो सीटें मिली थी।

बीजेपी ने खाली किया बसपा का दामन

बसपा के लिए दलित-ब्राह्मण गठजोड 2007 के चुनाव में रामबाण था। तो इस बार उन्होंने दलित-मुस्लिम पर भरोसा जताया है। बसपा को उम्मीद है कि समाजवादी पार्टी में फूट का पूरा फायदा उसे मिलेगा। बसपा अभी दलितों में बीजेपी के बढ़ते प्रभाव से चिंता में दिखाई दे रही है। पिछले लोकसभा चुनाव में दलितों ने बीजेपी के पक्ष में मतदान कर बसपा का दामन खाली कर दिया था।

मोदी 'भीम' के सहारे करीब आ रहे

मोदी लगातार अनुसूचित जाति के उत्थान की बात करते रहे हैं। केंद्र सरकार ने उनके लिए कई योजनाएं भी शुरू की। पीएम मोदी राजनीति में सरदार वल्लभ भाई पटेल और बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर को अपना आदर्श मानते हैं। इसीलिए उन्होंने हाल ही में कैशलेश के लिए जारी एप का नाम भी 'भीम' ही रखा। हालांकि मायावती इसे बाबा साहब का अपमान बता रही हैं।

हालांकि बीजेपी ने अभी तक प्रत्याशियों के नाम का ऐलान नहीं किया है लेकिन ये माना जा रहा है कि मायावती को टक्कर देने के लिए मजबूत प्रत्याशी उतारेगी।

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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