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UP Politics : भाजपा के मायाजाल में मायावती, सपा की मजबूत रणनीति!

UP Politics : केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के द्वारा डॉ. भीमराव अम्बेडकर पर दिए गए विवादित बयान के बाद विपक्ष आक्रामक रूप में नज़र आ रहा है। एक तरफ जहां सपा और कांग्रेस ने जमकर प्रदर्शन किया, वहीं आठ साल बाद बसपा के कार्यकर्त्ता भी सड़क पर नज़र आए। बीते आठ वर्षों में देश में घटनाएं घटीं और कई प्रदर्शन हुए, लेकिन उसमें बसपा की भागीदारी नज़र नहीं आई।

Abhinendra Srivastava
Published on: 30 Dec 2024 6:47 PM IST
बसपा सुप्रीमो मायावती, पूर्व सीएम अखिलेश यादव और सीएम योगी आदित्यनाथ
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बसपा सुप्रीमो मायावती, पूर्व सीएम अखिलेश यादव और सीएम योगी आदित्यनाथ (Pic - Social Media)

UP Politics : 2024 में राजनीति की रणनीति में इतनी नीति बन गई कि कई दलों की राजनीति ने नई करवट ले ली। गरीबों को मुफ्त अनाज और पीएम मोदी के करकमलों से रामलला के विराजमान होने के बाद भाजपा की रणनीति से एक ऐसा मायाजाल तैयार किया गया, जिसमें दलितों की राजनीति करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती केवल उलझी नहीं, बल्कि विफल होती हुई भी नज़र आयीं। नज़र तो समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव पर भी लगा रखा था और राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' अखिलेश यादव के लिए विजय मन्त्र बन गई।

सपा के राजनीतिक इतिहास में वर्ष 2024 स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गया। भले ही केंद्र में सरकार न बन सकी, लेकिन लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी 37 सीटें जीतकर भाजपा से भी आगे निकल गई। सपा के तीन दशक से ज्यादा के इतिहास में इतनी सीटें कभी नहीं मिलीं। वहीं, अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई। इसी वर्ष हुए उपचुनाव में सपा को झटका जरूर लगा, लेकिन बाबा साहेब अम्बेडकर पर केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के विवादित बयान ने विपक्ष को बड़ा मौका दे दिया।

2024 में लगा भाजपा को बड़ा झटका!

वर्ष 2024 को भाजपा के नजरिये से अच्छा नहीं कहा जा सकता है। जिस अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कर कमलों से रामलला विराजमान हुए, जिस एजेंडे को लेकर भाजपा ने लोकसभा चुनाव की रणनीति तैयार की, उसी अयोध्या को लोकसभा चुनाव में भाजपा हार गई। यहां से समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद ने जीत हासिल की। इण्डिया गठबंधन ने इस हार पर भाजपा को खूब घेरा। वहीं उत्तर प्रदेश में भाजपा की लोकसभा सीट 62 से घटकर 32 और एनडीए की 64 से 36 रह गईं। भले ही भाजपा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा के उपचुनाव में नौ में से सात सीटें जीत ली हों, लेकिन राजनीति के जानकारों का कहना है कि केंद्र में चल रही गठबंधन की सरकार भाजपा के लिए सरदर्द बनती जा रही है।

पीएम नरेंद्र मोदी (Pic- Social Media)

घट गया नरेन्द्र मोदी का कद!

राम मंदिर से भाजपा को ऐसा प्रतीत होने लगा कि नरेन्द्र मोदी का 400 पार का नारा लोकसभा चुनाव में हकीकत में बदलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। प्रदेश की राजनीति में भाजपा का वर्चस्व घट गया, नरेन्द्र मोदी को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी से भी जीत हासिल करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा। गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर देश के प्रधानमंत्री बनने की अपनी यात्रा में नरेन्द्र मोदी को पहली बार ऐसे गठबंधन की सरकार बनानी पड़ी, जहां न तो भाजपा को पूर्ण बहुमत है और न ही विचारधाराओं का मेल। एक तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में विधानसभा के शीतकालीन सत्र में विशेष समुदाय को लेकर अक्रात्मक बयान दिया तो वहीं केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर पर विवादित बयान देकर न केवल विपक्ष को मौका दिया, बल्कि केंद्र में एनडीए के प्रमुख साथी टीडीपी और नीतीश कुमार के लिए भी कई सवाल खड़े कर दिए।

स्मारक घोटाले का डर और बिखरते वोट बैंक से विफल हो गई बसपा?

केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के द्वारा डॉ. भीमराव अम्बेडकर पर दिए गए विवादित बयान के बाद विपक्ष आक्रामक रूप में नज़र आ रहा है। एक तरफ जहां सपा और कांग्रेस ने जमकर प्रदर्शन किया, वहीं आठ साल बाद बसपा के कार्यकर्त्ता भी सड़क पर नज़र आए। बीते आठ वर्षों में देश में घटनाएं घटीं और कई प्रदर्शन हुए, लेकिन उसमें बसपा की भागीदारी नज़र नहीं आई। हालांकि जब बात बाबा साहेब अम्बेडकर के सम्मान की आई तो आठ साल बाद बसपा ने भी मोर्चा खोल दिया। भले ही आठ साल बाद बसपा, भाजपा के विरोध में खुलकर नज़र आई, लेकिन अमित शाह के बयान का बचाव करने वाले तमाम भाजपा के नेताओं ने विपक्ष के नाम पर सपा और कांग्रेस पर ही निशाना साधा, बसपा का जिक्र नहीं किया। इसे भाजपा की रणनीति का हिस्सा भी माना जा रहा है।

बसपा सरकार के दौरान बना स्मारक (Pic - Social Media)

बीते कई वर्षों में लगातार विफल होती बसपा ने कभी खुल कर भाजपा का विरोध नहीं किया। वहीं, बसपा का कोर वोट बैंक भाजपा समेटने में कामयाब भी नज़र आई, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में ये वोट बैंक इण्डिया गठबंधन की ओर ट्रान्सफर होता हुआ भी नज़र आया। बसपा को इस मज़बूरी का कारण तो स्पष्ट नहीं हो पाया, लेकिन बसपा सरकार में उत्तर प्रदेश में हुए स्मारक घोटाले ने जरुर कईयों की नींद उड़ा रखी है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और नोएडा में आपको पत्थरों से बने बड़े-बड़े पार्क नज़र आएंगे। इन पार्कों में दलित महापुरुषों की मूर्ति नज़र आएंगी, पत्थरों से बने हाथी नज़र आएंगे और इनके सामने सेल्फी लेते हुए मजबूर जनमानस भी नज़र आएगा।

2007 से 2012 तक उत्तर प्रदेश में बसपा यानी मायावती की सरकार थी। उस समय इन पार्कों का निर्माण हुआ। दलित समाज के लिए संघर्ष करने वाले महापुरषों की मूर्ति लगी। होना भी चाहिए, उन्हें सम्मान बिल्कुल मिलना चाहिए, लेकिन क्या इन पार्कों के पीछे 14 अरब का घोटाला करना चाहिए? यही तो बड़ा सवाल है और अब बसपा सरकार में अंजाम दिए गए स्मारक घोटाले में ईडी ने अपनी जांच को तेज कर दिया है, सम्बंधित रिटायर्ड आईएस अधिकारी और करीबियों से लगातार सख्ती से पूछताछ हो रही है। कई नेताओं के नाम के शामिल होने की भी ख़बर है।

रावण की राजनीति से बदल गया समीकरण?

दलित युवाओं के आकर्षण का केंद्र माने जाने वाले चंद्रशेखर आजाद रावण की राजनीति ने दलित वोट बैंक की राजनीति करने वालों को बड़ा झटका दिया। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही दिन बाद सहारनपुर में हिंसा हुई और उसी के आरोप में चंद्रशेखर आजाद को जेल भेज दिया गया था। 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले 16 महीने बाद उनकी रिहाई हुई, जिसके बाद चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि बीएसपी नेता मायावती से उनका खून का रिश्ता है, और वो उनकी बुआ हैं, लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती ने प्रेसवार्ता कर इसे नकार दिया।

नगीना लोकसभा सीट से सांसद चंद्रशेखर रावण (Pic - Social Media)

आज चंद्रशेखर रावण नगीना लोकसभा सीट से सांसद हैं। वहीं, मायावती हमेशा से ही अपने समर्थकों को रावण जैसे लोगों से बच कर रहने की सलाह देती रहीं, लेकिन 2024 के लोकसभा में रावण और मजबूत हो गए और संसद तक पहुंच गए। भाजपा से झटका खाने और बसपा के मुंह मोड़ लेने के बाद 2024 के लोकसभा में भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर रावण, समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करना चाहते थे, लेकिन बात नहीं बनी। अखिलेश यादव चाहते थे कि चंद्रशेखर आगरा या बुलंदशहर से मैदान में उतरें। बात न बनने पर आज़ाद समाज पार्टी के टिकट पर वो नगीना से मैदान में उतरे और जीत हासिल कर लिया, जो सपा ही नहीं बसपा के लिए भी झटका था। वैसे भाजपा सरकार ने चंद्रशेखर को लोकसभा चुनाव से पहले वाई कैटेगरी की सुरक्षा मुहैया करा दिया था।



Rajnish Verma

Rajnish Verma

Content Writer

वर्तमान में न्यूज ट्रैक के साथ सफर जारी है। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। मैने अपने पत्रकारिता सफर की शुरुआत इंडिया एलाइव मैगजीन के साथ की। इसके बाद अमृत प्रभात, कैनविज टाइम्स, श्री टाइम्स अखबार में कई साल अपनी सेवाएं दी। इसके बाद न्यूज टाइम्स वेब पोर्टल, पाक्षिक मैगजीन के साथ सफर जारी रहा। विद्या भारती प्रचार विभाग के लिए मीडिया कोआर्डीनेटर के रूप में लगभग तीन साल सेवाएं दीं। पत्रकारिता में लगभग 12 साल का अनुभव है। राजनीति, क्राइम, हेल्थ और समाज से जुड़े मुद्दों पर खास दिलचस्पी है।

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