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कुंभ स्पेशलः ...लेकिन गंगा अभी मैली, ऐसे तो बंद नहीं हो पाएगा नालों से सीवेज का गिरना

गंगा हिन्दू जनमानस के लिए सबसे पवित्र नदी है। और चार तिथियों पर इसके स्नान का विशेष महत्व है। ये तिथियां छह और 12 वर्ष पर पड़ने वाले कुंभ के अवसर पर अमृत तिथियों में बदल जाती हैं। कथा के अनुसार समुद्र मन्थन से अमृत कुंभ के निकलने पर असुर उसे छीनने के लिए देवताओं पर टूट पड़े, किन्तु इन्द्र का पुत्र जयन्त उस अमृत के घड़े को लेकर निकल गया।

Dharmendra kumar
Published on: 26 Dec 2018 2:58 PM GMT
कुंभ स्पेशलः ...लेकिन गंगा अभी मैली, ऐसे तो बंद नहीं हो पाएगा नालों से सीवेज का गिरना
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रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: अच्युत-चरण-तरंगिणी, शिव-सिर-मालति-माल। हरि न बनायो सुरसरी, कीजो इंदव-भाल।। हे गंगा मां आप भगवान विष्णु के चरण पखारती हैं और भगवान शंकर के सिर पर मालती के फूलों की माला के समान शोभित हैं। मुझे आप हरि न बनाना, शिव बनाना जिससे मैं आपको मस्तक पर धारण करूं। रहीम का भक्ति रस से परिपूर्ण यह दोहा गंगा मां की महिमा के बारे में सबकुछ बयां कर देता है। इसके बाद गंगा के महत्व के बारे में कुछ जानना शेष नहीं रह जाता।

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गंगा हिन्दू जनमानस के लिए सबसे पवित्र नदी है। और चार तिथियों पर इसके स्नान का विशेष महत्व है। ये तिथियां छह और 12 वर्ष पर पड़ने वाले कुंभ के अवसर पर अमृत तिथियों में बदल जाती हैं। कथा के अनुसार समुद्र मन्थन से अमृत कुंभ के निकलने पर असुर उसे छीनने के लिए देवताओं पर टूट पड़े, किन्तु इन्द्र का पुत्र जयन्त उस अमृत के घड़े को लेकर निकल गया। यह भाग-दौड़ दिव्य 12 दिन ( मनुष्य के 12 वर्ष) पर्यन्त चलती रही। इन 12 दिव्य दिनों में चार स्थानों पर चार बार राक्षसों ने जयन्त को पकड़ा और उससे अमृत घड़ा छीनने का भरसक प्रत्यन किया, किन्तु उसी समय सूर्य चन्द्र और बृहस्पति ने उन चारों स्थानों पर जयन्त का साथ देकर अमृत कुंभ की रक्षा की। खींचा-तानी में अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों पर गिरीं, वे स्थान प्रयाग, हरिद्वार, नासिक (गोदावरी), उज्जैन के रूप में मशहूर हुए।

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अमृत घट की रक्षा के समय सूर्य, चन्द्र और गुरु जिन राशियों में स्थित थे, उसी राशि पर इन तीनों के होने पर अब तक उक्त चारों पुण्य क्षेत्रों में कुंभ महापर्व का स्नान होता है। गुरु बृहस्पति ने राक्षसों से अमृत कुंभ की रक्षा की, सूर्य ने घड़े को फूटने से बचाया और चन्द्रमा ने घटस्थ अमृत को गिरने से बचाया, इसी कारण इन तीनों का कुंभ महापर्व से गहरा सम्बन्ध है। इसके बाद संन्यासियों का इसमें प्रवेश शंकराचार्य के समय हुआ। जब शंकराचार्य ने सनातन धर्म की स्थापना कर दी और अपने शिष्यों को इस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए पूरे देश में भेजा तो शिष्यों ने पूछा हम आपसे कब और कैसे मिलेंगे तो उन्होंने कुंभ और महाकुंभ पर्वौं पर मिलने को कहा तब से सन्यासी मण्डल प्रति तीसरे वर्ष इन निश्चित सथानों पर एकत्रित होने लगे। अब इतनी पुण्य दायिनी पापनाशनी गंगा उत्तरोत्तर हुए विकास के साथ मैली होनी शुरू हुई तो यह अंतहीन सिलसिला आज तक न रुका।

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गंगा के मैले होने का सिलसिला सरकारों के तमाम प्रयासों के बावजूद आज भी जारी है। हालात ये हो गए हैं कि आज गंगा में कितना सीवेज गिर रहा है किसी को पता नहीं है। गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के सारे प्रयास कुल निकलने वाले सीवेज और उसके ट्रीटमेंट के बीच संतुलन न होने से निरर्थक होते जा रहे हैं। क्योंकि सीवेज शोधन के लिए जो एसटीपी प्लांट लगाए जा रहे हैं उनकी क्षमता से कहीं अधिक सीवेज आ रहा है। जो कि मजबूरी में बिना शोधित हुए गंगा में जा रहा है। गंगा में सीवेज जाने की बड़ी वजह भ्रष्टाचार भी है। कभी बिजली जाने का बहाना करके तो कभी जेनरेटर खराब होने का बहाना करके प्लांट को न चलाकर डीजल की चोरी कर ली जाती है और गंगा की मौन चीत्कार की अनदेखी कर दी जाती है। गंगा मैली की मैली ही रह जाती है।

आंकड़ों पर नजर डालें तो शहरी सीवेज और निपटने की तैयारी में कोई तालमेल ही नहीं है। उत्तराखंड में कुल शहरी जनित सीवेज 495 मिलियन लीटर प्रतिदिन है तो शोधन की क्षमता मात्र 153 मिलियन लीटर प्रतिदिन की है। यानी 70 फीसदी सीवेज बिना शोधित हुए गंगा में जाना तय है। इसी तरह उत्तर प्रदेश में 7124 के सापेक्ष क्षमता मात्र 2646 यानी 37 फीसदी निस्तारण की है। बिहार, झारखंड, प. बंगाल राज्यों की बात करें तो हाल और भी खराब है। बिहार में 1879 एमएलडी सीवेज के सापेक्ष निस्तारण क्षमता 124 यानी 6.6 फीसद की है। झारखंड में 1270 के सापेक्ष 117 यानी 9.2 फीसद के निस्तारण की ही क्षमता है। प. बंगाल में 4667 के सापेक्ष 416 यानी 8.9 फीसद ही शोधित हो रहा है। यह स्थिति भयावह है।

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हालांकि 2018-19 के प्रयागराज कुंभ को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कमर कसे हुए हैं। उन्होंने पहले कहा भी था कि 15 दिसंबर से कोई भी नाला गंगा नदी में नहीं गिराया जाएगा। लेकिन अभी तक इस पर पूरी तरह अमल नहीं हो सका है। यदि उत्तराखंड से ही गंगा मैली होनी शुरू हो जाएगी तो यूपी में प्रयागराज तक आते आते वह कितना शुद्ध रह पाएगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीयत साफ है उन्होंने राष्ट्रीय गंगा नदी प्राधिकरण और नमामि गंगे परियोजना के माध्यम से 20 हजार करोड़ रुपये की एक परियोजना गंगा को निर्मल और अविरल बनाने के लिए दी है। लेकिन तत्काल इस दिशा में कुछ नहीं हो सकता।

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के अनुसार भी उत्तर प्रदेश में गंगा सफाई से जुड़ी 10 हजार करोड़ रुपये की लागत वाली 73 परियोजनाओं पर काम चल रहा है जिनमें से 13 परियोजनाओं पर काम पूरा हो चुका है। सरकार गंगा को निर्मल ही नहीं अविरल भी बना रही है और इसके लिए अधिसूचना जारी कर दी गई है और अगले साल मई तक गंगा अपेक्षा के अनुकूल निर्मल नजर आना शुरू हो जाएगी।

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लेकिन प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट में गंगा को सर्वाधिक प्रदूषित 39 स्थानों में से मात्र एक स्थान हरिद्वार में मानसून के बाद साफ होने की बात कही गई है। इससे लगता है कि गंगा सफाई की मंजिल अभी बहुत दूर है। इसलिए यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ बेशक कहें कि कुंभ से पहले हर हाल में गंगा स्वच्छ हो जानी चाहिए लेकिन जमीनी स्तर पर ऐसा हो पाना संभव नहीं दिख रहा है। बिजनौर से बलिया तक गंगा में जाने वाले सभी नालों के शोधन की तैयारी कितनी कारगर है यह कुंभ पर्व बताएगा। लेकिन फिलवक्त गंगा में सीवेज का गिरना जारी है। और कोई आंकड़े भी नहीं हैं जो यह बता सकें कि कुल कितना सीवेज गंगा में जा रहा है।

गंगा की अविरलता हम सब के लिए एक चुनौती है, अगर इसे बनाए रखना है तो गंगा की मूल धारा को यथावत बनाए रखते हुए उस पर कार्य करना होगा। एक बार गंगा अविरल हुई तो वह निर्मल भी होंगी। इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए।

Dharmendra kumar

Dharmendra kumar

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