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Jaunpur News: कानून के अधिकार को संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार का दर्जा दिये जाने की मांग, प्रधानमंत्री को भेजा गया पत्र

Jaunpur News: समाज मे कानून मित्र पद का गठन करके भारतीय संविधान व कानून का ज्ञान जन जन तक पहुंचाया जाय तथा कानून विषय के ज्ञान को अनिवार्य रूप से सर्व शिक्षा अभियान से जोड़ा जाए।

Kapil Dev Maurya
Published on: 31 Dec 2022 3:49 PM GMT
Jaunpur News: कानून के अधिकार को संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार का दर्जा दिये जाने की मांग, प्रधानमंत्री को भेजा गया पत्र
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Jaunpur News: कानून के विषय की जानकारी को संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार (fundamental right) का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर विगत दिनों अधिवक्ता विकास तिवारी के नेतृत्व में राष्ट्रपति को सम्बोधित ज्ञापन जिलाधिकारी जौनपुर के माध्यम से प्रेषित किया गया था तथा जनपद जौनपुर के विद्वत जन से मुहिम में जुड़ने का आह्वाहन भी किया गया था। उक्त विषय को लेकर तहसील बार एसोसिएशन केराकत ने कानून के विषय की जानकारी को संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार का दर्जा दिलाये जाने की मांग को लेकर उपजिलाधिकारी केराकत के माध्यम से प्रधानमंत्री को ज्ञापन प्रेषित किया है। साथ ही यह मांग की गई की समाज मे कानून मित्र पद का गठन करके भारतीय संविधान व कानून का ज्ञान जन जन तक पहुंचाया जाय तथा कानून विषय के ज्ञान को अनिवार्य रूप से सर्व शिक्षा अभियान से जोड़ा जाए।

अधिवक्ता विकास तिवारी व अतुल सिंह ने संयुक्त रूप से कहा कि सामाजिक या अन्य प्रकार की संहिताओं, नियम-कानूनों या संविधानों की अपनी विशिष्ट उपयोगिता है। संविधान , विधि या नियम-कानूनों से प्राप्त प्रतिफल यानी जिन संस्थाओं के लिए ये नियम-कानून निर्मित हुए, उन संस्थाओं की सहज एवं सरल रूप से संवहनीयता अथवा क्रिया कलाप से ही उनकी भूमिका को मापा जा सकता है ।

नियम-कानून एवं संविधान

संविधान अथवा नियम-कानून लिखित या अलिखित दोनों प्रकार के होते हैं। कुछ प्राकृतिक रूप से बने सामाजिक संस्थाओं के नियम-कानून अलिखित होते हैं। जैसे परिवार, विवाह, अवस्था, जाति, समुदाय इत्यादि अलिखित, किंतु अन्यान्य संस्थाओं के कुछ लिखित एवं कुछ अलिखित यानी दोनों प्रकार के संविधान होते हैं। संविधान यानी कानून जिस समुदाय, जाति, वर्ग या व्यक्तियों के लिए होता है, यह स्वाभाविक अपेक्षा होती है कि उन्हें उन नीति-निर्देश तत्त्वों, नियम-कानून एवं संविधान का भली-भाँति ज्ञान हो।

तहसील बार चुनाव आयोग अधिकारी व तहसील अधिवक्ता राजेश पाण्डेय व अनिल गांगुली ने संयुक्त रूप से कहा कि यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण भी है कि जो संविधान जिस समाज अथवा संस्था के लिए बना है, उस संस्था अथवा समाज के प्रत्येक सदस्यों को उसकी संपूर्ण जानकारी होनी चाहिए। यदि उनसे कोई त्रुटि होती है या यदा-कदा उनसे नियम-कानून अथवा संविधान का उल्लंघन होता है तो वे दंड पाने के या प्रायश्चित्त करने के दायरे में आ जाते हैं। नियमन अथवा संविधान उल्लंघन के लिए पूर्व निर्धारित प्रायश्चित्त या दंड इत्यादि की प्रखर सामाजिक स्वीकार्यता के कारण प्रत्येक व्यक्ति को उन्हें स्वीकार करना ही पड़ता है । इससे कोई व्यक्ति भाग भी नहीं सकता है।

धर्म की परिभाषा

पाषाण युग से लेकर आज आधुनिक युग तक संविधान अथवा नीति-निर्देशो की उपस्थिति या उसकी स्थापित मान्यताओं के अस्तित्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। हमारे भारत देश में संविधान या नियम कानून के ही परिप्रेक्ष्य में धर्म को भी देखा जाता है। धर्म की परिभाषा करते हुए धर्म के संदर्भ में यह उल्लेख होता है कि- "धारयति इति धर्म:"

कानून मानव समाज के कुशल संचालन एवं स्वत: संवहन की दिशा में गतिशीलता एवं निरंतरता के‌ लिए एक आवश्यक उपकरण है। इसलिए हमारी कोशिश है और सरकार से मांग भी है कि भारत देश में निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को कानून का ज्ञान हो। इसके लिए आवश्यक है कि इसे संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार का दर्जा दिया जाय तथा "कानून मित्र" का निर्माण कर जनजागरण अभियान चलाया जाय। उक्त अवसर पर तहसील बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष नमःनाथ शर्मा, उच्च न्यायालय के अधिवक्ता अतुल सिंह, पुनीत चंद्र श्रीवास्तव, दिनेश शुक्ला, प्रभात पाठक, रवि कुमार, राघव सिंह, दिनेश पांडेय, कुलदीप यादव, संजय चौबे, नीरज पाठक समेत अन्य अधिवक्तागण उपस्थित रहे।

Shashi kant gautam

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