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UP Election 2022: मेरठ की सातों सीटों पर होगी भाजपा-सपा-रालोद गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर

UP Election 2022: मेरठ में इस बार सपा-रालोद (SP-RLD alliance) के संभावित गठबंधन के चलते भाजपा (BJP) और सपा-रालोद गठबंधन के उम्मीदवारों के बीच रोचक मुकाबले की तस्वीर उभरती दिख रही है।

Sushil Kumar
Report Sushil KumarPublished By Shashi kant gautam
Published on: 26 Nov 2021 7:41 AM GMT
UP Election 2022: मेरठ की सातों सीटों पर होगी भाजपा-सपा-रालोद गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर
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Meerut News: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में समाजवादी पार्टी(सपा) (Samajwadi Party) और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) (Rashtiry Lok Dal) गठबंधन कर विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) लड़ने की तैयारी में है। दोंनो दलों के बीच संभावित गठबंधन की स्थिति में सीटों के बंटवारे को लेकर हालांकि अभी स्थिति साफ नही है। लेकिन सपा-रालोद के गठबंधन के बाद मेरठ जनपद की सात विधानसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) और सपा-रालोद गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर होगी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश (Western Uttar Pradesh) की राजनीतिक राजधानी माने जाने वाले मेरठ जनपद की सात विधानसभा सीटों में से छह पर भाजपा काबिज है। जबकि एक सीट सपा के पास है। लेकिन अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा की चुनावी डगर आसान नही दिख रही है।

सपा-रालोद हलकों से जिस तरह की खबरे छन कर आ रही है उसमें मेरठ जिले की दो सीटें रालोद में जाने की बात हो रही है। पांच सीटों पर सपा लड़ेगी। सिवालखास सीट पर रालोद का प्रत्याशी होगा। मेरठ कैंट सीट पर सपा प्रत्याशी रालोद के सिंबल पर चुनाव लड़ेगा। 2017 में भी सपा कांग्रेस के साथ गठबंधन में यह फार्मूला अपना चुकी है। सपा के कई नेता कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लड़े थे। अब वही फार्मूला सपा-रालोद गठबंधन में भी अपनाने जा रही है। सहारनपुर,मुजफ्फरनगर,बागपत,शामली समेत करीब एक दर्जन सीटों पर भी ऐसा होने की संभावना है।

मेरठ में पिछले चुनाव में यहां सपा ने झंडा गाड़ दिया था

मेरठ की बात की जाए तो इस बार सपा-रालोद (SP-RLD alliance) के संभावित गठबंधन के चलते भाजपा (BJP) और सपा-रालोद गठबंधन के उम्मीदवारों के बीच रोचक मुकाबले की तस्वीर उभरती दिख रही है। यूं तो मेरठ की सातों सीटों पर मुकाबला रोचक होने के आसार हैं। लेकिन सबसे अधिक रोचक मुकाबला मेरठ शहर की सीट पर ‌देखने को मिलेगा जहां से पिछले चुनाव में यहां सपा ने झंडा गाड़ दिया था। मेरठ शहर सीट पर 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के रफीक अंसारी ने चुनाव जीत कर भाजपा के कद्दावर नेता डॉक्टर लक्ष्मीकांत वाजपेयी (Dr. Laxmikant Bajpai, a strong leader of BJP) को हराकर राजनीतिक हलकों में सनसनी फैला दी थी। भाजपा उत्तर प्रदेश के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे लक्ष्मीकांत वाजपेयी यहां से चार बार विधायक बन चुके हैं। यहां 2022 के चुनाव में भी सपा से रफीक अंसारी और भाजपा से डॉ.लक्ष्मीकांत वाजपेयी का चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है। सपा-रालोद गठबंधन के चलते इस बार भी डॉ.लक्ष्मीकांत वाजपेयी के लिए चुनावी डगर आसान नही रहने वाली है।

पिछले तीन दशकों से भाजपा का गढ़ बनी हुई कैंट सीट पर भाजपा के टिकट पर सत्य प्रकाश अग्रवाल 2002 से ही लगातार विधायक बनते चले आ रहे हैं। 2017 के पिछले चुनाव सत्य प्रकाश ने बसपा प्रत्याशी सतेंद्र सोलंकी को हराया था। वैश्य और पंजाबी बहुल इस सीट पर सवा चार लाख मतदाता हैं। इस बार सपा-रालोद के संभावित गठबंधन के कारण कैंट सीट पर जीत का इतिहास दोहराना भाजपा के लिए आसान नही रहेगा। ऐसे में यहां भाजपा और सपा-रालोद गठबंधन के उम्मीदवार के बीच कड़ा मुकाबला होना तय है।

दो चुनावों में मुख्य मुकाबला भाजपा और बसपा के बीच

2012 में अस्तित्व में आई मेरठ जिले की साउथ विधानसभा सीट पर अब तक के दो चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का ही प्रत्याशी जीतकर विधायक बना है। इस सीट से मौजूदा विधायक भारतीय जनता पार्टी के डॉक्टर सोमेंद्र तोमर हैं। यूं तो इस सीट पर पिछले दो चुनावों में मुख्य मुकाबला भाजपा और बसपा के बीच रहा था। लेकिन इस बार यहां सपा-रालोद गठबंधन उम्मीदवार कड़ी टक्कर देगा। कड़ी टक्कर के बीच विधानसभा चुनाव 2022 में अब देखना होगा कि क्या भाजपा इस सीट पर चुनाव में जीत की हैट्रिक लगा पाएगी या फिर इस सीट के मतदाता किसी नए व्यक्ति को मौका देते हैं।

किठौर विधानसभा सीट पर 23 साल बाद भाजपा के सत्यवीर त्यागी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में कमल खिलाने में सफलता पाई थी, जब उन्होंने समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता शाहिद मंजूर को करारी शिकस्त देकर यह सीट अपने नाम की थी। किठौर विधानसभा सीट पर 2002, 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के शाहिद मंजूर यहां से विधायक चुने गए थे। वह समाजवादी पार्टी सरकार में श्रम मंत्री भी थे। वह लगातार 15 साल तक इस सीट से विधायक थे। किठौर विधानसभा सीट को आखिरी बार भाजपा ने 1993 में जीती थी, जब यहां से भाजपा प्रत्याशी रामकृष्ण वर्मा चुनाव जीतकर विधायक बने थे। 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी सत्यवीर त्यागी ने एक अप्रत्याशित जीत दर्ज करते हुए सबको चौंका दिया, जब उन्होंने समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता और इस सीट से लगातार 15 साल तक विधायक रहे शाहिद मंजूर को पटखनी देकर विधायक बने। लेकिन २०२२ में भाजपा के लिए २०१७ का इतिहास दोहराना आसान नही होगा।

सिवालखास को 1974 में विधानसभा सीट बनाया गया

मेरठ की सिवालखास विधानसभा सीट का 2008 में परिसीमन किया गया था। सिवालखास सीट 2007 तक आरक्षित सीट रही थी। लेकिन 2012 में यह सीट अनारक्षित हो गई थी। 1974 में इसे विधानसभा सीट बनाया गया था। 1974 में हुए चुनाव से लेकर 1985 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा था। यह सीट बागपत संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती है। यहां 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के जितेंद्र पाल सिंह विधायक चुने गए थे। इस बार जबकि कांटे का मुकाबला होना तय माना जा रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा अपना २०१७ का प्रदर्शन दोहरा पाती है अथवा नही।

मेरठ जिले की हस्तिनापुर विधानसभा सीट (Hastinapur Assembly seat) पिछले पांच दशक से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। यहां से भाजपा के दिनेश खटीक मौजूदा विधायक हैं। हस्तिनापुर विधानसभा बिजनौर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है। उत्तर प्रदेश में होने वाले 2022 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा और सपा के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है। वहीं बसपा भी इस सीट पर अगर पूरी मजबूती के साथ लड़ी तो यहां त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है।

भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में सबको चौंका

2017 विधानसभा चुनाव के पहले इस सीट पर मुख्य लड़ाई सपा और बसपा के बीच हुआ करती थी। इस सीट पर कमजोर मानी जाने वाली भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में जीत हा‌सिल कर सबको चौंका दिया था। यहां से भाजपा के दिनेश खटीक चुनाव जीतकर विधायक बने। उन्होंने बसपा के योगेश वर्मा को चुनाव हराया था। सपा-रालोद के गठबंधन के चलते 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा विधायक दिनेश खटीक के लिए इस सीट को बचा पाना आसान नही माना जा रहा है।

मेरठ की सरधना विधानसभा सीट पर वर्तमान में सरधना विधानसभा सीट से भाजपा के फायर ब्रांड नेता संगीत सोम विधायक हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में संगीत सोम जहां एक बार फिर इस चर्चित सीट को जीतना चाहेंगे। वहीं किसानों के इस गढ़ में आंदोलन का फायदा सपा-रालोद गठबंधन का उम्मीदवार लेने की पूरी कोशिश करेगा।

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