×

Chaitra Navratri 2024: मां चंद्रघंटा की पूजा को लेकर मंदिरों में उमड़ी भक्तों की भीड़

Shravasti News: चैत्र नवरात्र व्रत के तीसरे दिन श्रद्धालुओं ने मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की आराधना की। सुबह से ही सिद्ध पीठ सीताद्वार मंदिर में मां के भक्त पहुंचना शुरू हो गए थे।

Radheshyam Mishra
Published on: 11 April 2024 3:18 PM GMT
Maa Sita Dwar
X

Maa Sita Dwar Mandir (Pic:Newstrack) 

Shravasti News: चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन प्रसिद्ध सिद्ध पीठ स्थल मां सीताद्वार मंदिर में मां चंद्रघंटा की पूजा अर्चना बड़े धूमधाम से की गई। साथ ही 13 हवन कुंडों में साधकों ने मां चंद्रघंटा का आह्वान कर पूजा अर्चना की। चैत्र नवरात्र व्रत के तीसरे दिन श्रद्धालुओं ने मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की आराधना की। सुबह से ही सिद्ध पीठ सीताद्वार मंदिर, जगपति माता मंदिर,काली माता मंदिर ज्वाला देवी मंदिर समेत जिले के सभी छोटे बड़े देवी मंदिरों में मां के भक्त पहुंचना शुरू हो गए थे, यह क्रम सारा दिन जारी रहा। मां शेरावाली के जयकारे से माहौल भक्तिमय नजर आया। एसपी के निर्देश पर जिला मुख्यालय समेत ग्रामीण क्षेत्र के मंदिर पुलिसकर्मियों की निगरानी में हैं।

चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन वृहस्पतिवार को चंद्रघंटा देवी की पूजा आराधना हुई। भक्तों ने स्वयं व परिवार के लिए विभिन्न मंदिरों में जाकर माथा टेका और मनवांछित फल की कामना की। जिला मुख्यालय से लेकर ग्रामीण क्षेत्र में मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप की विधि विधान से पूजा-अर्चना हुई। नौ दिन का व्रत रखने वाले श्रद्धालुओं ने पहले घरों में पूजा की फिर मंदिर पहुंच कर माथा टेका। भिनगा नगर पालिका अन्तर्गत पुराना अस्पताल स्थित राजशाही सिद्ध पीठ काली माता मंदिर, जमुनहा तहसील अन्तर्गत गोमती वैराज निकट जगपति माता मंदिर, इकौना तहसील अन्तर्गत टंडवा महंत प्रसिद्ध सीताद्वार मंदिर, इकौना बाजार अन्तर्गत ज्वाला माता मंदिर व बाजार स्थित दुर्गा मंदिर ,सीतला माता देवी मंदिर सहित जनपद के सभी मंदिरों में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ दिखी। महिला व पुरुष श्रद्धालुओं ने मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा की आराधना की। मंदिरों में श्रद्धालुओं के जयकारों से माहौल भक्तिमय बना रहा। श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए पुलिस भी सक्रिय दिखी।

सीताद्वार देवी मंदिर महंत पंडित संतोष तिवारी ने बताया कि देवी का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इस देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है। इसीलिए इस देवी को चंद्रघंटा कहा गया है। इनके शरीर का रंग सोने के समान चमकीला है। हमें मन, वचन और कर्म के साथ ही काया को विधि-विधान के अनुसार शुद्ध व पवित्र करके चंद्रघंटा के शरणागत होकर उनकी उपासना-आराधना करनी चाहिए। इससे सारे कष्टों से मुक्त होकर सहज ही परम पद के अधिकारी बन सकते हैं। साथ ही इस देवी की कृपा से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और कई तरह की ध्वनियां सुनाईं देने लगती हैं। इन क्षणों में साधक को बहुत सावधान रहना चाहिए। इस देवी की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है। इसलिए हमें चाहिए कि मन, वचन और कर्म के साथ ही काया को विहित विधि-विधान के अनुसार परिशुद्ध-पवित्र करके चंद्रघंटा के शरणागत होकर उनकी उपासना-आराधना करना चाहिए।

इससे सारे कष्टों से मुक्त होकर सहज ही परम पद के अधिकारी बन सकते हैं। यह देवी कल्याणकारी है। पंडित संतोष तिवारी सीताद्वार मंदिर का इतिहास बताते हैं कहते हैं कि यह मंदिर काफी पुराना है। इसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। इस प्रसिद्ध धार्मिक स्थल का संबंध भगवान श्रीराम की धर्मपत्नी सीता माता से है। बताते हैं कि यही माता सीता को भगवान राम के आदेश पर लक्ष्मण ने छोड़ा था और यही पर लवकुश का जन्म हुआ था। यही पर बाल्मीकि आश्रम है जहां पर लवकुश का पालन पोषण और शिक्षा दीक्षा मिली थी। इसका रामायण और रामचरित मानस में भी उल्लेख है।

बाल्मिकी मंदिर के महंत श्याम मनोहर तिवारी ने बताया कि माता का यह रूप राक्षसों का वध करने वाली है। मान्यता है कि यह अपने भक्तों के दुखों को दूर करती हैं। इसलिए इनके हाथों में तलवार, त्रिशूल, गदा और धनुष सुशोभित होते हैं। इनकी उत्पत्ति ही धर्म की रक्षा और संसार से अंधकार मिटाने के लिए हुई। वृहस्पतिवार को माता के तीसरे रूप मां चंद्रघंटा की पूजा के लिए सुबह 7.30 बजे से ही मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। पंडित जी ने बताया कि माता की आरती में शामिल होने से भक्तों के मनोकामनाएं अवश्य ही पूर्ण होती है।

उन्होंने कहा कि जो लोग किसी कारणवश आरती के लिए मंदिर नही पहुंच पाते हैं। ऐसे भक्त अपने घर में ही मां दुर्गा की आरती विधि-विधान पूर्वक पूजा करने के बाद करते हैं। मां चंद्रघंटा की सवारी शेर है। इनका शरीर सोने की तरह चमकीला होता है। दसों हाथों में कमल और कमंडल सहित अस्त्र- शस्त्र होते हैं। माथे पर बना आधा चांद ही इनकी पहचान है। इस वजह से माता दुर्गा के तीसरे रूप को मां च्रदघंटा के नाम से जाना जाता है।

भिनगा अन्तर्गत राजशाही काली माता मंदिर के पुजारी पंडित राधेश्याम पांडेय ने बताया कि मां चंद्रघंटा की पूजा के लिए भक्तों द्वारा लाल पुष्प और लाल सेब चढ़ाए गए। पूजा और मंत्र पढ़ते समय घंटी बजायी गई। क्योंकि मां चंद्रघंटा की पूजा में घंटे का बड़ा महत्व है। इसी के साथ जिले के देवी मंदिरों सहित कई मंदिर और पंडालों में माता रानी की जयकारे के साथ श्रद्धालुओं ने पूजा अर्चना किए। आरती लेने के लिए श्रद्धालु देवी मंदिर और पंडाल में आते रहे हैं।

Durgesh Sharma

Durgesh Sharma

Next Story