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Sonbhadra: खनन पट्टे को लेकर हाईकोर्ट का फैसला, काश्तकारों को खनन का अधिकार

Sonbhadra News: हाईकोर्ट ने, जहां संबंधित भूभाग में खनन के लिए पूर्व में जारी किए गए पट्टा आवंटन आदेश को रद्द कर दिया गया है। वहीं, जमीन के काश्तकारों को, नियमानुसार पट्टा आवंटित करने का आदेश पारित किया है।

Kaushlendra Pandey
Published on: 27 Feb 2024 1:15 PM GMT
Sonbhadra News
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Sonbhadra News (Pic:Newstrack) 

Sonbhadra News: पूर्वांचल के दो बड़े बाहुबली खेमों के बीच वर्चस्व की लडाई का केंद्र बनते जा रहे बिल्ली-मारकुंडी के बहुचर्चित खनन पट्टे के मामले में हाईकोर्ट का बड़ा फैसला आया है। हाईकोर्ट ने, जहां संबंधित भूभाग में खनन के लिए पूर्व में जारी किए गए पट्टा आवंटन आदेश को रद्द कर दिया गया है। वहीं, जमीन के काश्तकारों को, नियमानुसार पट्टा आवंटित करने का आदेश पारित किया है। इसी के साथ पिछले छह माह से पट्टे आवंटन के वैधता के मसले पर बनी गतिरोध की स्थिति का पटाक्षेप हो गया है।

यह था पूरा प्रकरण

बताते हैं कि रघुनाथ दूबे आदि के नाम बिल्ली-मारकुंडी स्थित करीब 1.1 हेक्टेयर जमीन पर खान महकमे की तरफ से खनन पट्टा आवंटन की प्रक्रिया अपनाई गई थी। इस खनन पट्टे की सबसे अधिक बोली 400 रुपये प्रति घनमीटर की लगाई गई थी। नियमानुसार अगर काश्तकार संबंधित जमीन पर खनिज पट्टा चाहते हैं तो उन्हें उच्चतम बोली से अधिक में खनन पट्टा हासिल करने का अवसर दिया जाना था। इस नियम के अनुपालन में खनन महकमे की तरफ से काश्तकारों को पत्र जारी कर एक सप्ताह के भीतर उच्चतम बोली से अधिक का प्रस्ताव नियमानुसार प्रस्तुत करने के लिए कहा गया ताकि कार्रवाई आगे बढ़ाई जा सके।

यहां आकर मामले ने ले लिया नया मोड़

याचिकाकर्ता पक्ष का दावा था कि खनन विभाग की तरफ से जारी पत्र के क्रम में काश्तकारों की तरफ से इस आशय का पत्र खान महकमे में प्रस्तुत किया गया कि वह अपनी निजी भूमि पर स्वयं खनन पट्टा प्राप्त करना चाहते हैं। प्रति घनमीटर की उच्चतम बोली से एक रूपया बढ़ाकर प्रस्ताव भी दिया गया लेकिन एक सह काश्तकार रामजी दूबे को आधार बनाकर पट्टा उच्च बोलीदाता (400 रुपये प्रति घनमीटर बोली) लगाने वाले के पक्ष में जारी कर दिया गया। याचिकाकर्ता पक्ष का दावा था कि आपत्ति दाखिल करने वाले रामजी दूबे को प्रश्नगत आराजीयात परअइब कोई स्वत्व या अधिकार नहीं रह गया है, क्योंकि उनकी तरफ से 30 मई 1993 को एक बंटवारा व समझौता लिखित रूप से किया जा चुका है कि संबंधित आराजीयात से उनका कोई लेना-देना नहीं है।

बोलीदाता के पक्ष में पट्टा आवंटन के पीछे यह था तर्क

वहीं, खान महकमे का तर्क था कि किसी भी काश्त की जमीन पर काश्तकारों के पक्ष में पट्टा आवंटन के लिए सभी काश्तकारों की एकराय वाली सहमति जरूरी है। ऐसा न होने के कारण, जो उच्च बोलीदाता था उसके पक्ष में पट्टा आवंटित कर दिया गया।

कोर्ट ने माना आपत्तिकर्ता महज मुआवजे का हकदार

हाईकोर्ट में इस मामले की न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ की बेंच में सोमवार को सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के पक्ष से अनिल कुमार शुक्ला, अभिषेक कुमार पांडेय, अनिल कुमार शुक्ला और कुमार शिवम ने बेंच के सामने तर्क प्रस्तुत किए। वहीं, प्रतिवादी पक्ष से चीफ स्टैंडिंग काउंसिल, एकेएस परिहार, वीरेंद्र सिंह और स्वाती सिंह ने अपनी बात रखी।

दोनों पक्षों के तकों और पत्रावली में उपलक्ष्य साक्ष्यों को दृष्टिगत रखते हुए बेंच ने माना कि पूर्व में जारी पट्टा आवंटन विधिक रूप से सही नहीं है। बेंच ने कहा कि आपत्तिकर्ता पक्ष को प्रावधान के मुताबिक जो भी मुआवजा होगा, वह मिलेगा। वहीं, 4 सितंबर 2023 को बोलीदाता के पक्ष में जारी किए गए पट्टा आवंटन को रद्द करते हुए, कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को अब खनन का पट्टा दिया जा सकता है।

Durgesh Sharma

Durgesh Sharma

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