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UP Election 2022: कैराना से चाणक्य रणनीति, जाने क्या है इसके सियासी मायने

इसी कड़ी में शनिवार को गृहमंत्री अमित शाह ने चुनाव तारीखों के ऐलान के बाद उत्तर प्रदेश में अपने कैंपेन का श्रीगणेश किया।

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Newstrack NetworkPublished By Divyanshu Rao
Published on: 22 Jan 2022 5:47 PM GMT
UP Election 2022
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अमित शाह की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

UP Election 2022: विधानसभा चुनाव को लेकर जनवरी के सर्द मौसम में भी गरमाई उत्तर प्रदेश की सियासत में राजनीतिक गतिविधियां चरम पर है। चुनाव प्रचार को लेकर अब दलों के स्टार प्रचारक प्रदेश में कैंप करना शुरू कर दिए हैं।

इसी कड़ी में शनिवार को गृहमंत्री अमित शाह ने चुनाव तारीखों के ऐलान के बाद उत्तर प्रदेश में अपने कैंपेन का श्रीगणेश किया। पश्चिमी यूपी के प्रभारी बनाए गए शाह ने वेस्ट यूपी के सियासी तौर पर संवेदनशील माने जाने वाले शामली की कैराना विधानसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी मृगांका सिंह के पक्ष में डोर टू डोर प्रचार किया। मृगांका सिंह दिवंगत भाजपा सांसद औऱ दिग्गज गुर्जर नेता हुकुम सिंह की सुपुत्री हैं। गृहमंत्री शाह के इस कदम के पीछे बड़ा राजनीतिक उद्देश्य माना जाता है। तो आईए जानते हैं क्या है कैराना का सियासी गणित -

हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत के अंगराज कर्ण ने कर्णपुरी की स्थापना की थी, जो कालांतर में कैराना कहलाया। मुस्लिम बहुल कैराना विधानसभा सीट 1955 में अस्तित्व में आया। कैराना 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद काफी सुर्खियों में आया। 40 फीसद से अधिक मुस्लिम आबादी होने के कारण यहां जमकर ध्रुवीकरण की राजनीति हुई।

अमित शाह की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

दंगों के बाद बीजेपी ने इलाके से हिंदू परिवारों के पलायन का मुद्दा उठाया। इसके जरिए उसने जाट, गुर्जर और दलित समुदायों को साधा। जिसका फायदा उसे 2014 और फिर 2017 की लोकसभा चुनाव में हुआ। पार्टी को इसका फायदा भी हुआ।

सियासी गणित

कैराना में मुस्लिम, गुर्जर औऱ दलित सबसे अधिक संख्या में हैं। इनके अलावा सवर्ण, जाट समेत अन्य पिछड़ी जातियां भी है। बीजेपी ने जहां गुर्जर नेत्री मृगांका सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है वहीं सपा – रालोद गठबंधन ने नाहिद हसन को चुनाव मैदान में उतारा है। हालांकि मृगांका पिछला दो चुनाव नाहिद हसन के हाथों गंवा चुकी है। फिर भी बीजेपी ने एक बार और उनपर भरोसा करते हुए मैदान में उतारा है। बीजेपी को जहां गुर्जर, ओबीसी औऱ सवर्ण समीकरण का भरोसा है तो सपा गठबंधन को जाट मुस्लिम गठजोड़ का।

बात अगर बीते चुनाव की करें तो 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में मृगांका 21 हजार से अधिक मतों से सपा के नाहिद हसन से चुनाव हार गईं। इससे पहले भी 2015 में पिता हुकुम सिंह के सांसद बनने के बाद रिक्त हुई सीट पर चुनाव हार चुकी हैं। दरअसल हुकुम सिंह कैराना से कई बार कांग्रेस, बीजेपी समेत अन्य दलों से चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंच चुके हैं। 1995 में भाजपा ज्वाइन करने के बाद 1996 से 2012 तक लगातार बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतते आए। यही वजह रही कि वेस्ट यूपी में हुकुम सिंह बीजेपी के बड़े गुर्जर नेता के तौर पर पहचाने जाने लगे।

कैराना से चुनाव प्रचार की शुरूआत

कैराना से चुनाव प्रचार की शुरूआत कर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने एक बड़ा सियासी संदेश दिया। वो इसके जरिए एकबार फिर वेस्ट यूपी में सियासी ध्रुवीकरण करना चाहते हैं। जिसके लिए कैराना का सियासी समीकरण सबसे मुफीद है। इसके अलावा पूर्व सांसद हुकुम सिंह की मृत्यु के बाद बीजेपी को वेस्ट यूपी में एक दिग्गज गुर्जर नेता की कमी महसूस हो रही है।

अवतार सिंह भड़ाना को सपा गठबंधन ने अपने पाले में कर के बीजेपी की मुश्किलों को पहले ही बढा रखा है। पृथ्वीराज चौहान की जातीय पहचान को लेकर राजपूत औऱ गुर्जर समुदाय में छिड़ी जंग से गुर्जर समाज बीजेपी से खफा है। यही वजह है कि गृह मंत्री अमित शाह मृगांका सिंह के सहारे गुर्जरों को साधने की कोशिश कर रहे हैं। जाट समुदाय से नाराजगी झेल रही बीजेपी के लिए गुर्जरों की नाराजगी वेस्ट यूपी में उसके सारे समीकरण को तबाह कर सकती है।

Divyanshu Rao

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