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Independence Day: महिला सेनानी ने तिरंगा फहरा कर फूंका था आजादी का बिगुल

Sonbhadra news: महज तीन दिन बाद 15 अगस्त को हम सभी 75वां स्वाधीनता दिवस मना रहे होंगे। इस स्वाधीनता के लिए देश के अन्य हिस्सों के साथ सोनभद्र के लोगों ने भी मजबूती से लड़ाई लड़ी।

Kaushlendra Pandey
Written By Kaushlendra PandeyPublished By Pallavi Srivastava
Published on: 12 Aug 2021 3:20 AM GMT (Updated on: 12 Aug 2021 3:18 PM GMT)
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महिला सेनानी ने तिरंगा फहरा उड़ा दी थी फिरंगियों की नींद pic(social media)

Sonbhadra news: अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी वीरांगनाओं की अमिट गाथा है। स्वाधीनता के लिए देश के अन्य हिस्सों के साथ सोनभद्र के लोगों ने भी मजबूती से लड़ाई लड़ी। उन्हीं स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में एक थीं दुद्धी की राजेश्वरी देवी। गोरी हुकूमत की कड़ी नाकेबंदी और बंदिश के बावजूद राजेश्वरी देवी ने घर से बाहर निकल कर दुद्धी के चौक पर तिरंगा फहरा कर न केवल फिरंगियों की नींद उड़ा दी, बल्कि आजादी के आंदोलन की ऐसी मशाल जलाई कि अति पिछड़े क्षेत्रों में शुमार दुद्धी तहसील क्षेत्र के हर हिस्से से आजादी का कारवां अंग्रेजी सरकार से दो-दो हाथ करने सड़क पर निकल पड़ा।

महज तीन दिन बाद 15 अगस्त को हम सभी 75वां स्वाधीनता दिवस मना रहे होंगे। इस स्वाधीनता के लिए देश के अन्य हिस्सों के साथ सोनभद्र के लोगों ने भी मजबूती से लड़ाई लड़ी। उन्हीं स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में एक थीं दुद्धी की राजेश्वरी देवी। वर्ष 1942 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने करो या मरो, अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा बुलंद किया तो क्या युवा क्या बुजुर्ग सभी स्वतंत्रता के इस निर्णायक समर में कूद पड़े। राबर्टसगंज (जिला मुख्यालय) से यूपी के आखिरी छोर पर स्थित दुद्धी (तत्कालीन समय में दुद्धी स्टेट) तक आजादी की आग धधकती रही।

गोरी हुकूमत की कड़ी नाकेबंदी और बंदिश के बावजूद राजेश्वरी देवी ने घर से बाहर निकल कर दुद्धी के चौक पर तिरंगा फहरा कर न केवल फिरंगियों की नींद उड़ा दी, बल्कि आजादी के आंदोलन की ऐसी मशाल जलाई कि अति पिछड़े क्षेत्रों में शुमार दुद्धी तहसील क्षेत्र के हर हिस्से से आजादी का कारवां अंग्रेजी सरकार से दो-दो हाथ करने सड़क पर निकल पड़ा।

अमर सेनानियों की याद में जिले में कई जगह गौरव स्तंभ एवं शहीद स्तंभ स्थापित किए गए हैं pic(social media)

याद की जाती है राजेश्वरी देवी की वीरता

आज भी दुद्धी तहसील क्षेत्र में लोग राजेश्वरी देवी की वीरता को गर्व से याद करते हैं। आंदोलन को कुचलने के लिए गोरी हुकूमत के हुक्मरानों ने अत्याचार की इंतिहा कर दी। कहीं आजादी के अमर सेनानियों पर कोड़े बरसाए गए तो कहीं गर्म पानी की बौछारें मारी गई। बेड़ियां लगाकर चौराहों पर यातना दी गई। गोरों की फौज से सीधी भिड़ंत हुई तो लाठियां भी खूब बरसीं। जेलों में बंद कर असीम यातनाएं दी गईं। लेकिन मां भारती के अमर सपूतों का हौसला जरा भी डिग नहीं पाया। स्वतंत्रता के आंदोलन की यह मशाल तब तक जलती रही जब तक आजादी नहीं मिल गई।

स्तंभ नई पीढ़ी को अमर सेनानियों की याद भी दिलाते हैं pic(social media)

वर्ष 1920 में ही आंदोलन ने ले लिया था व्यापक स्वरूप

अट्ठारह सौ सत्तावन की अगस्त क्रांति में सोनभद्र ने मजबूती से सहभागिता तो दर्ज कराई ही, महात्मा गांधी की अगुवाई में देश के आजादी के लिए जितने भी आंदोलन किए गए, सभी में सोनभद्र के लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। इसकी मजबूत शुरुआत 1920 से 1922 तक चलाए गए असहयोग आंदोलन से ही शुरू हो गई थी। राबर्ट्सगंज क्षेत्र के गुरु परासी निवासी पं. महादेव चौबे, परासी निवासी सोबरन बियार, दुद्धी निवासी यूसुफ मसीह, जोखन तेली, महावीर प्रसाद गुप्ता, सैयद सेखावत हुसैन, दुद्धी क्षेत्र के धनौरा गांव निवासी रामनंदन पांडेय ने आगे बढ़कर गोरों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका तो आजादी के रणबांकुरों का एक कारवां सा बनता चला गया।

विरोध का स्वर बढ़ता देख अंग्रेजों ने दमन चक्र चलाना शुरू कर दिया। जिस समय आंदोलन शुरू हुआ था, उस समय राबर्टसगंज और दुद्धी के बीच आवागमन के लिए पथरीली और कंकरीली पगडंडियां ही माध्यम थीं। रास्ते में पड़ने वाले नदी-नाले, जंगल-पहाड़ बड़ी चुनौती बन कर खड़े थे। हिंसक जानवरों का खतरा था सो अलग। बावजूद न तो आजादी का जुनून कम हुआ, न ही इस आंदोलन से जुड़ने वालों की संख्या। हर चुनौती से जूझते हुए सेनानियों का कारवां गोरी हुकूमत की चूलेें हिलाने मेें लगा रहा।

जेलों में दी यातनाएं, एक साल तक कारावास में रखा बंद

आंदोलन को कुचलने के लिए जहां जिले से दर्जनों लोगों को पकड़कर जेलों में ठूंस दिया गया। वहीं कई लोगों को एक-एक साल की सजा भी सुनाई गई। जेलों में बंद लोगों का अमानवीय यातनाएं भी दी गईं लेकिन आजादी का जुनून लेकर गोरी हुकूमत के खिलाफ बगावत की आवाज बुलंद करने वाले सेनानी हंसते-हंसते इस पीड़ा को झेलते चले गए।

गौरव स्तंभ दिलाते हैं सेनानियों की याद

अमर सेनानियों की याद में जिले में कई जगह गौरव स्तंभ एवं शहीद स्तंभ स्थापित किए गए हैं। परासी स्थित शहीद स्तंभ, घोरावल स्थित शहीद स्तंभ, रामगढ़ स्थित शहीद स्तंभ तियरा स्थित अमर शहीद पार्क राबर्ट्सगंज स्थित चाचा नेहरू पार्क, दुद्धी क्षेत्र के नगवा गांव में स्थित सुराज स्तंभ नई पीढ़ी को अमर सेनानियों की याद भी दिलाते हैं। परासी स्थित शहीद उद्यान में आयोजित कार्यक्रम में प्रशासन भी सहभागी बनता है लेकिन अमर सेनानियों की गौरव गाथा को लेकर विशेष अवसरों पर आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों के अलावा अब तक कुछ खास नहीं किया जा सका है।

Pallavi Srivastava

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