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Emergency Situations: 25 जून की वो रात, मानसिक प्रताड़ना, विचारों का हनन और जुल्म की इंतेहा थी इमरजेंसी

Emergency Horrible Situations: 1975 में लागू हुई इमरजेंसी के हालातों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं देवरिया से भारतीय जनता पार्टी के सांसद रमापति राम त्रिपाठी जो खुद आपातकाल के दौरान 10 महीनों तक जेल में रहे।

Hariom Dwivedi
Published on: 24 Jun 2023 1:08 PM GMT (Updated on: 25 Jun 2023 3:15 AM GMT)
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Emergency Horrible Situations: आज कोई भी इमरजेंसी का जिक्र नहीं करना चाहेगा। 1975 का दौर था जब देश में आपातकाल लगा था। इंदिरा गांधी उस वक्त देश की प्रधानमंत्री थीं। उनके कहने पर ही तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की थी। 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक भारत में आपातकाल लागू रहा। इन 21 महीनों तक लोगों को बुरे दौर से गुजरना पड़ा।

इमरजेंसी के चलते आजादी के 28 साल बाद भी देशवासियों को एक बार फिर गुलामी जैसे हालात नजर आने लगे थे। कार्यपालिका पंगु हो चुकी थी और न्यायापालिका असहाय। चौथे स्तम्भ पर बेड़ियां लगा दी गई थीं। विरोध कर रहे विपक्ष के नेता जेलों में थे और जनता की आवाज को कुचला जा रहा था। लोगों के मन में जहां डर था वहीं, सरकार के प्रति गुस्सा भी खूब भरा था। आपातकाल के दौरान देश में कैसे हालात थे? बता रहे हैं देवरिया से बीजेपी सांसद रमापति राम त्रिपाठी। इमरजेंसी के दौरान वह खुद महीनों जेल में रहे।

विपक्षी दलों की थी सिम्पैथी

बीजेपी सांसद बताते हैं कि इमरजेंसी के हालातों को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। विपरीत परिस्थितियों में किस तरह से लोग इमरजेंसी के खिलाफ आवाज उठा पा रहे थे। इस दौरान एक तरफ लोग जहां भयभीत थे और दूसरी तरफ वह सरकार का विरोध कर रहे लोगों का सम्मान भी करते थे। उनकी मदद करते थे। प्रोत्साहित करते थे। यहां तक कि छिप-छिपकर सभी को खाना तक पहुंचाते थे। विपक्षी दलों के साथ आम पब्लिक की सिम्पैथी थी।

10 महीनों तक जेल में रहे सांसद

इमरजेंसी के दौरान वह झोले में सरकार के खिलाफ प्रचार सामग्री घर-घर तक पहुंचाते थे और लोगों को जागरूक करते थे। बिहार के छपरा जिले में वह पर्ची बांट रहे थे। रात में वह छपरा स्टेशन पर ही सोये थे। प्रचार सामग्री उनके पास थी। आधी रात को पुलिसवाले उनके पास आये और झोले की तलाशी ली। झोले में पम्पलेट था। गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। वह 10 महीनों तक जेल में रहे। इमरजेंसी के खत्म होने के बाद ही सभी नेताओं की रिहाई हुई।

गुजरात से सुलगी थी विरोध की चिंगारी

विपरीत परिस्थितियों में विपक्षी नेता किस तरह से आंदोलन को धार दे पा रहे थे? सांसद बताते हैं कि इसकी वजह स्वयं का संकल्प था। राष्ट्रीयता का जुनून और जनता का प्यार था। वह बताते हैं कि 1971 में इंदिरा गांधी भारी बहुमत से प्रधानमंत्री चुन कर आई थीं। उनकी सरकार में भ्रष्टाचार चरम पर था। पार्टी में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों की संख्या बढ़ती जा रही थी।

भ्रष्टाचार और अराजकता के खिलाफ 1974 में गुजरात में छात्रों का एक आंदोलन शुरू हुआ। उस वक्त गुजरात में चमन भाई पटेल की सरकार थी। उस वक्त जयप्रकाश नारायण ने छात्र संगठनों की एक बैठक बुलाई थी। इसके बाद बिहार में भी एक छात्र संघर्ष समिति बनी। उस वक्त लालू प्रसाद यादव पटना विश्वविद्यालय के अध्यक्ष बने। महामंत्री नीतीश कुमार थे और संयुक्त मंत्री रविशंकर प्रसाद थे।

और बनी जनता पार्टी की सरकार

सांसद रमापति राम त्रिपाठी बताते हैं कि आपातकाल के दौरान शीर्ष नेतृत्व जेल में था। लगता था कि जो जेल में हैं वे कभी बाहर नहीं आ पाएंगे और जो लोग बाहर हैं उनके साथ कभी भी कुछ हो सकता है। लेकिन, मनोबल बढ़ाने का जनता कर रही थी। वही विरोध कर रहे नेताओं का बल भी था। जनता के मन में सरकार के प्रति रोष था। लोग चुनाव का इंतजार कर रहे थे।

जैसे ही चुनाव हुए जनता का वोट की चोट कर दी। वह कहते हैं कि जैसे हर रात के बाद सुबह होती है, वैसे ही देश आपातकाल की बेड़ियों से मुक्त हुआ। जय प्रकाश नारायण का अगुआई में आंदोलन हुआ और फिर भारी बहुमत से जनता पार्टी की सरकार बनी।

Hariom Dwivedi

Hariom Dwivedi

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