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Delhi Mughlai Food: इस मुगलई खाने का नहीं कोई जोड़, रसीले कबाब व बिरयानी की सुगंध 50 से अधिक शहरों में

Delhi Mughlai Food History: हाजी करीमुद्दीन ने आजाद भारत से पहले 1913 में मुगलई व्यंजन के कारोबार में कदम रख दिया था। उन्होंने एक दिल्ली में एक ढाबे के रूप में इसकी शुरूआत की थी, जिसका करीम मुगलई व्यंजन रखा। अपने स्वाद से दम पर आज करीम मुगलई के भारत में 50 शहरों में अधिक आउटलेट चल रहे हैं।

Viren Singh
Published on: 26 Aug 2023 10:04 AM GMT (Updated on: 26 Aug 2023 4:11 PM GMT)
Delhi Mughlai Food: इस मुगलई खाने का नहीं कोई जोड़, रसीले कबाब व बिरयानी की सुगंध 50 से अधिक शहरों में
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Delhi Famous Mughlai Food History (सोशल मीडिया)

Delhi Famous Mughlai Food History: दिल्ली हमेशा से हिन्दुस्तान का दिल कहा जाता रहा है। जब देश में मुगलों का प्रवेश हिन्द की धरती पर हुआ तो उनके हर मुगल शासक की निगाहें दिल्ली के दरबार पर रहीं। पता नहीं ऐसा उस समय ऐसा क्या था जो हर मुगल शासक दिल्ली कूच करना चाहता था। हर किसी की चाह थी, वह एक बार दिल्ली की गद्दी पर बैठे, तो कई मुगल शासक ऐसा करने में कामयाब भी हुए। फिर आया अंग्रेजों का शासन तब तक हिन्दुस्तान में काफी कुछ बदल चुका था। दिल्ली भी बदली हुई दिखाई दे रही थी। अंग्रेजों में भले ही ईस्ट इंडिया का हेड ऑफिस कलकत्ता को चुना, लेकिन दिल्ली उनके दिलों में भी थी और कुछ समय बाद अपनी सस्ता का केंद्र उसे ही बनाया। मौटे तौर पर इसकी वजह यह थी दिल्ली हमेशा से हिन्दुस्तान की संस्कृति और खान-पान केंद्र रहा है।

मुगल आए तो साथ में मुगलई व्यंजन भी लेकर आए। और इन व्यंजनों का केंद्र बना दिल्ली। तब से लेकर आज यानी आधुनिक युग में देश का मुगलई व्यंजन का केंद्र है तो वह दिल्ली है। यहां पर मिलने वाले मुगलई व्यंजन का स्वाद आपको देश के किसी भी कोने में नहीं मिलेगा। सही मुगलई व्यंजनों का स्वाद चखना है तो दिल्ली कूच करना पड़ेगा और पुरानी दिल्ली आना पड़ेगा। मुगल तो देश से चले गए लेकिन मुगलई भोजन का स्वाद देश मे छोड़ गए। आज इसके लाखों करोड़ों लोग दिवाने हैं और यह दिवाने हाजी करीमुद्दीन को जरूर जानते होंगे। हाजी करीमुद्दीन का नाम आते ही जानकार लोगों के दिलों के एक ही तस्वीर छपती है और वह है मुगलई भोजन की,जो दिल्ली व देश के लोग करीम के नाम से जानते हैं। आज इस लेख के माध्मय से हाजी करीमुद्दीन करीम मुगलई व्यंजन के कारोबार की बात करेंगे।

करीम के पूरे भारत में है दिवाने

करीम अपने मुगलई व्यंजन के रसीले कबाब, बिरयानी, सुगंधित मसालों और समृद्ध सुगंधित व्यंजनों से पूरे हिन्दुस्तान में लाखों लोगों को दिल जीत हुआ है। पूरे भारत में करीम से अच्छा कोई मुगलई व्यंजन नहीं परोस सकता है, यह हम नहीं बल्कि खाने वाले लोग बोलते हैं। हाजी करीमुद्दीन ने आजाद भारत से पहले 1913 में मुगलई व्यंजन के कारोबार में कदम रख दिया था। उन्होंने एक दिल्ली में एक ढाबे के रूप में इसकी शुरूआत की थी, जिसका करीम मुगलई व्यंजन रखा। अपने स्वाद से दम पर आज करीम मुगलई के भारत में 50 शहरों में अधिक आउटलेट चल रहे हैं और 1913 वाला मुगलई भोजन स्वाद लोगों को परोस रहे हैं।

पिता ने सिखाया बेटे को मुगलई व्यंजन

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मोहम्मद अवैज़ ने 19वीं शताब्दी के मध्य में लाल किले में मुगल सम्राट के शाही दरबार में रसोइया के रूप में काम किया था, लेकिन सम्राट के तख्तापलट हुआ तो अवैज वहां से चले गए। अवैज ने अपने बेटे हाजी करीमुद्दीन को मुगल व्यंजनों के बारे में सब कुछ सिखाया था, जो अंततः गाजियाबाद में बस गए। करीमुद्दीन 1911 में किंग जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक के लिए शाही महानगर लौटे और एक फूड बूथ लगाया। करीमुद्दन दो सालों में इतना पैसा कमाया जिसके बाद उन्होंने 1913 में एक रेस्टोरेंट खोला और लोगों को मुगलई व्यंजन परोसने लगे।

जामा मस्जिद की गली में हुआ शुरू था कारोबार

उन्होंने 1913 में दिल्ली में जामा मस्जिद के करीब गली कबाबियन में करीम होटल खोला। जब उन्होंने इसकी शुरुआत की तब उन्होने केवल दो व्यंजन पेश किए, जो कि एक रुमाली रोटी के साथ दाल और आलू गोश्त (आलू के साथ मटन)। इसके तुरंत बाद उनका भोजनालय स्वादिष्ट शाही व्यंजनों को सस्ती पहुंच प्रदान करने के लिए प्रसिद्ध हो गया। फिलहाल, करीम एक प्रसिद्ध रेस्तरां है, जहां भोजन का स्वाद लेने के लिए पूरे भारत से लोग आते हैं। यहां पर लोगों को कबाब, बिरयानी, तंदूरी भरा, मटन कोरमा, मटन स्टू, चिकन मुगलई, और चिकन जहांगीरी जैसे कई सुगंधित व्यंजन परोसे जाते हैं।

हाजी करीमुद्दीन का परिवार

करीमुद्दीन के बेटे हाजी नूरुद्दीन के चार बच्चे थे। इसमें जहूरुद्दीन का जन्म 1932 में हुआ था। 12 साल की उम्र में उन्होंने करीम के काम करना शुरू किया। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, ज़हूरुद्दीन को बहुत कम उम्र में करीम परिवार के प्रभाव का एहसास हुआ। उनके दोपहर के भोजन की उनके स्कूल में काफी मांग थी, जिससे युवा लड़के को अपने परिवार के महत्व का एहसास हुआ। और फिर जो उन्होंने किया, उसका आज पूरा हिन्दुस्तान दिवाना है।

करीम के इस वक्त ये हैं मालिक

हाजी करीमुद्दीन के निधन के बाद करीम के वर्तमान मालिक ज़ैन साब हैं। वह ही करीम के खाना पकाने के हर हिस्से को खुद ही संभालते हैं। वह व्यंजनों और चखने तक वही स्वाद और भोजन की गुणवत्ता प्रदान करने के लिए सावधान रहता है जिसका करीम ने वर्षों पहले शुरू किया था। साब का लक्ष्य अपने ग्राहकों के साथ हमेशा उसी सम्मान और स्नेह के साथ व्यवहार करना है, जिस पर करीम की स्थापना हुई थी।

करीमुद्दीन के निधन के बाद यह संभाल रहे विरासत

27 जनवरी, 2018 को हाजी करीमुद्दीन की 85 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके द्वारा शुरू हुआ कारोबार उनकी विरासत को उनके चचेरे भाई ज़ईमुद्दीन ने संभाला और आगे बढ़ा रहे हैं। ज़ईमुद्दीन मौजूदा समय करीम के निदेशक हैं। करीम देश भर में लाखों भारतीयों को अपने व्यंजनों से परोस रहा है और आम तौर पर खाने-पीने के शौकीनों और पर्यटकों के लिए एक जरूरी जगह बन गया है।

Viren Singh

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