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Bindeshwar Pathak Death: सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक का निधन, एम्स में ली अंतिम सांस

Bindeshwar Pathak Death: दो दिन पहले ही पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। 1970 में सुलभ इंटरनेशनल सर्विस ऑर्गनाइजेशन की स्थापना की थी।

Ashish Pandey
Published on: 15 Aug 2023 10:50 AM GMT (Updated on: 15 Aug 2023 12:46 PM GMT)
Bindeshwar Pathak Death: सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक का निधन, एम्स में ली अंतिम सांस
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Bindeshwar Pathak Death (Photo: Social Media)

Bindeshwar Pathak Death: सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक का मंगलवार को निधन हो गया। दिल्ली के एम्स में उन्होंने अंतिम सांस ली। बिंदेश्वर पाठक की अचानक तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें आज ही एम्स में भर्ती कराया गया था। दो दिन पहले ही पाठक ने पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। बिंदेश्वर पाठक ने 1970 में सुलभ इंटरनेशनल सर्विस ऑर्गनाइजेशन की स्थापना की थी। उन्होंने समाज के लिए कई कार्य किए हैं। उनका निधन देश के लिए भारी क्षति है।

सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन के संस्थापक डॉ. बिंदेश्वर पाठक 15 अगस्त यानी आज निधन हो गया। दिल्ली के एम्स में उन्होंने मंगलवार को अंतिम सांस ली। पाठक का निधन समाज के लिए एक बड़ी क्षति है। उन्होंने समाज के लिए काफी किया है। बिंदेश्वर पाठक ने पांच दशकों से अधिक समय तक चलने वाले राष्ट्रव्यापी स्वच्छता आंदोलन के निर्माण के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। पाठक के योगदान ने उन लाखों वंचित गरीबों के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाया जो शौचालय का खर्च नहीं उठा सकते थे और जो लोग मैला ढोने का काम करते थे।
पाठक ने पिछले 50 वर्षों में सूखे शौचालयों को साफ करने वाले हाथ से मैला ढोने वालों के मानवाधिकारों के लिए अथक प्रयास किया, जो भारत की जाति-आधारित व्यवस्था के सबसे निचले तबके से आते हैं और उसमें ज्यादातर महिलाएं हैं।

मां ने हमेशा दूसरों की मदद करना सिखाया-

डॉ. बिंदेश्वर पाठक का जन्म बिहार के वैशाली जिले के रामपुर बाघेल गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी मां योगमाया देवी और उनके पिता रमाकांत पाठक थे-जो समुदाय के एक सम्मानित सदस्य थे। पाठक अपनी मां के बहुत करीब थे और उनसे काफी प्रभावित थे। पाठक कहते थे, ‘मेरी मां ने मुझे हमेशा दूसरों की मदद करना सिखाया। मां ने मदद के लिए आए किसी भी व्यक्ति को कभी मना नहीं किया। उनसे मैंने बदले में कुछ भी अपेक्षा किए बिना देना सीखा। ऐसा कहा जाता है कि इंसान अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए पैदा होता है।‘ पाठक ने इन मूल्यों को अपने जीवन में जल्दी ही शामिल कर लिया।

Ashish Pandey

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