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दिखी सबसे बड़ी गैलेक्सी! अब ऐसे सुलझेंगी ब्रह्मांड की पहेलियां

ऑस्ट्रेलिया की स्वाइनबर्न प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शोधकर्ता और इस अध्ययन के सह-लेखक इवो लाबे के अनुसार यह एक विशालकाय आकाशगंगा है, जिसमें लगभग उतने ही तारे हैं जितने हमारे मिल्की वे (Milky Way) में है, लेकिन इसमें एक फर्क यह है कि इस आकाशगंगा के तारों की गतिशीलता हमारे मिल्की वे (Milky Way) से सौ गुना ज्यादा है।

SK Gautam
Published on: 26 Oct 2019 11:47 AM GMT
दिखी सबसे बड़ी गैलेक्सी! अब ऐसे सुलझेंगी ब्रह्मांड की पहेलियां
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बोस्टन: ब्रह्मांड हमेशा से ही खगोलविदों के लिए एक रहस्यमय का विषय रहा है। खगोलविदों ने अंतरिक्ष में एक ऐसी आकाशगंगा का पता लगाया है, जो ब्रह्मांडीय धूल के बादलों के बीच छुपी हुई है और माना जा रहा है कि यह आकाशगंगा शुरुआती ब्रह्मांड से बहुत पुराना है। खगोलविदों ने दावा किया है कि यह अब तक की खोजी गर्ईं सबसे बड़ी गैलेक्सी है। यह खोज नई आकाशगंगाओं का पता लगाने लिए खगोल विज्ञानियों को प्रोत्साहित कर सकती है।

अल्मा 66 रेडियो दूरबीनों का संग्रह

अमेरिका की मैसाच्युसेट्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा है कि यह खोज हमें ब्रह्मांड की कुछ सबसे बड़ी आकाशगंगाओं के शुरुआती दौर के बारे में नई जानकारियां देती है। साथ ही इनके बारे में एक नया नजरिया पेश करती है।

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यह एक विशालकाय आकाशगंगा है

ऑस्ट्रेलिया की स्वाइनबर्न प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शोधकर्ता और इस अध्ययन के सह-लेखक इवो लाबे के अनुसार यह एक विशालकाय आकाशगंगा है, जिसमें लगभग उतने ही तारे हैं जितने हमारे मिल्की वे (Milky Way) में है, लेकिन इसमें एक फर्क यह है कि इस आकाशगंगा के तारों की गतिशीलता हमारे मिल्की वे (Milky Way) से सौ गुना ज्यादा है।

एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने अटाकामा लार्ज मिलीमीटर एरे, या अल्मा का उपयोग किया। अल्मा 66 रेडियो दूरबीनों एक संग्रह है, जो चिली के ऊंचे पहाड़ों में स्थित है।

यह एक रहस्यमय आकाशगंगा है

इस अध्ययन की मुख्य लेखिका क्रिस्टीना विलियम्स ने कहा, यह बहुत रहस्यमय आकाशगंगा है। इसका प्रकाश अन्य आकाशगंगाओं से बिल्कुल अलग है। जब मैंने देखा कि यह आकाशगंगा किसी अन्य तरंग दैध्र्य में दिखाई नहीं देती, तो इसके प्रति हमारा उत्साह और बढ़ गया, क्योंकि इसका मतलब है कि संभवत: यह आकाशगंगा अंतरिक्ष में बहुत दूर धूल के बादलों के बीच छिपी हुई है।

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यह है आकाशगंगा

मंदाकिनी या क्षीरमार्ग उस आकाशगंगा (गैलेक्सी) का नाम है, जिसमें हमारा सौर मण्डल स्थित है। आकाशगंगा आकृति में एक सर्पिल (स्पाइरल) गैलेक्सी है, जिसका एक बड़ा केंद्र है और उस से निकलती हुई कई वक्र भुजाएँ। हमारा सौर मण्डल इसकी शिकारी-हन्स भुजा (ओरायन-सिग्नस भुजा) पर स्थित है। क्षीरमार्ग में 100 अरब से 400 अरब के बीच तारे हैं और अनुमान लगाया जाता है कि लगभग 50 अरब ग्रह के होने की संभावना है, जिनमें से 50 करोड़ अपने तारों से 'जीवन-योग्य तापमान' की दूरी पर हैं।

सन् 2011 में होने वाले एक सर्वेक्षण में यह संभावना पायी गई कि इस अनुमान से अधिक ग्रह हों - इस अध्ययन के अनुसार, क्षीरमार्ग में तारों की संख्या से दुगने ग्रह हो सकते हैं। हमारा सौर मण्डल आकाशगंगा के बाहरी इलाक़े में स्थित है और उसके केंद्र की परिक्रमा कर रहा है। इसे एक पूरी परिक्रमा करने में लगभग 22.5 से 25 करोड़ वर्ष लग जाते हैं।

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हल हो सकती है ब्रह्मांड की सारी पहेलियां

शोधकर्ताओं के मुताबिक, इसका सिग्नल इतनी दूर से आया था कि पृथ्वी तक पहुंचने में लगभग 1.25 करोड़ वर्ष लग गए। खगोलविदों का मानना है कि यह खोज खगोल विज्ञान में लंबे समय से चली आ रही पहेलियों को हल कर सकती है कि प्रारंभिक ब्रह्मांड में सबसे बड़ी आकाशगंगाओं में से कुछ बड़ी गैलेक्सी कैसे दिखाई देती हैं और सैद्धांतिक रूप से यह बहुत जल्दी कैसे परिपक्व हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त यह भी पता लग सकता है कि हबल स्पेस टेलीस्कोप से देखी जाने वाली छोटी आकाशगंगाएं तेजी से क्यों नहीं बढ़ रही हैं?

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भारतीय टेलीस्कोप ने खोजी थी आकाशगंगा

इससे पहले खगोलशास्त्रियों ने एक भारतीय टेलीस्कोप की मदद से ब्रह्मांड में अब तक की सबसे दूर स्थित आकाशगंगा की खोज की थी। पुणे में स्थित गेंट मीटर- वेव रेडियो टेलीस्कोप द्वारा खोजी गई यह आकाशगंगा उस दौर की बताई गई थी जब ब्रह्मांड की उत्पत्ति को ज्यादा समय नहीं हुआ था।

इस आकाशगंगा की दूरी जेमिनी नार्थ टेलीस्कोप और लार्ज बाइनोक्युलर टेलीस्कोप की मदद से निर्धारित की गई थी। रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी जर्नल के अनुसार, यह आकाशगंगा उस समय की है, जब ब्रह्मांड की उत्पत्ति को महज एक अरब साल हुए थे।

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