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Insurance: अपनी बीमा कंपनी से हैं असंतुष्ट तो यहां करें शिकायत, तुरंत होगा समाधान, जानें पूरी डिटेल

Insurance: बीमाधारक अगर अपनी बीमा कंपनी से असंतुष्ट है। उसे लगता है कि उसके साथ धोखा हुआ है या फिर क्लेम सेटलमेंट में कोई दिक्कत आ रही है। ऐसे ग्राहकों के पास शिकायत के लिए कई प्लेटफॉर्म हैं।

Hariom Dwivedi
Published on: 24 May 2023 9:43 AM GMT
Insurance: अपनी बीमा कंपनी से हैं असंतुष्ट तो यहां करें शिकायत, तुरंत होगा समाधान, जानें पूरी डिटेल
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ग्राहक अपनी बीमा कंपनी के खिलाफ कर सकता है शिकायत।

Insurance- वर्तमान में भारत में 24 जीवन बीमा कंपनियां (Life Insurance) और 34 गैर जीवन बीमा (Non Life Insurance/General Insurance) कंपनियां काम कर रही हैं। एकमात्र पुनर्बीमा (Reinsurance) कंपनी GIC (General Insurance Company) है। हर कंपनी के पास लाखों की संख्या में ग्राहक हैं। जाहिर है कि इनमें से कई ग्राहक जीवन बीमा कंपनी से असंतुष्ट हो सकते हैं। ऐसे ग्राहकों की समस्याओं के निस्तारण के लिए कई प्लेटफॉर्म हैं जहां बीमा कंपनी के खिलाफ शिकायत की जा सकती है। आइये जानते हैं इन प्लेटफार्म के बारे में जहां ग्राहक नि:शुल्क शिकायत कर सकता है।

आंतरिक शिकायत निवारण प्रकोष्ठ (Internal Grievance Redressal Cell)

ग्राहक अगर अपनी बीमा कंपनी से असंतुष्ट है। उसे लगता है कि उसके साथ धोखा हुआ है या फिर क्लेम सेटलमेंट में कोई दिक्कत आ रही है। ऐसे ग्राहक सबसे पहले अपनी बीमा कंपनी में शिकायत कर सकते हैं। हर बीमा कंपनी का अपना आंतरिक शिकायत निवारण प्रकोष्ठ होता है। यहां पर बीमाकर्ता के खिलाफ शिकायत की जा सकती है। प्रकोष्ठ के पास ग्राहक की शिकायत का जवाब देने के लिए अधिकतम 10 दिनों का वक्त होता है।

एकीकृत शिकायत प्रबंधन प्रणाली (Integrated Grievance Management System)

Insurance Regulatory and Development Authority (IRDA) के प्लेटफॉर्म पर भी बीमा कपनी के खिलाफ शिकायत की जा सकती है। शिकायत के लिए IRDA ने कस्टमर को जो प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराया है, उसका नाम है एकीकृत शिकायत प्रबंधन प्रणाली( IGMS)। यह उद्योग में शिकायत निवारण की निगरानी के लिए इंश्योरेंस ग्रीवांस डाटा और टूल के केंद्रीय संग्राहक के रूप में कार्य करता है। यह सभी कंपनियों की शिकायत सुनता है और TAT (Term Arround Time) के माध्यम से शिकायत पर नजर रखता है।

बीमा लोकपाल (Insurance Ombudsman)

बीमा अधिनियम 1938 व लोक शिकायत निवारण नियम के तहत 11 नवंबर 1998 को बीमा लोकपाल का गठन किया गया था। भारत में लोकपाल के 17 ऑफिस हैं। लोकपाल बीमा कंपनी और शिकायतकर्ता के बीच मध्यस्थता का काम करता है। लोकपाल को शिकायत लिखित रूप में जरूरी दस्तावेजों की साथ की जानी चाहिए। लोकपाल निर्दिष्ट क्षेत्र की ही समस्याएं सुनता है। शिकायत मिलने के 30 दिनों के भीतर बीमा लोकपाल अपना फैसला (सुलह) सुनाता होता है जबकि दूसरा फैसला 90 दिनों के भीतर देगा, जिसे अवार्ड कहते हैं। बीमा कंपनी को 30 दिनों के भीतर लोकपाल के फैसले पर अमल करना होता है। ध्यान रहे कि बीमा कंपनी लोकपाल का फैसला मानने के लिए बाध्य है, लेकिन ग्राहक नहीं।

लोकपाल से शिकायत कब कर सकते हैं?

- जब बीमा कंपनी ने शिकायत को अस्वीकार कर दिया हो या फिर एक महीने के भीतर कोई जवाब नहीं दिया हो
शिकायतकर्ता बीमाकर्ता के जवाब से संतुष्ट न हो
- बीमा कंपनी द्वारा अस्वीकृति दिनांक के एक साल के भीतर शिकायत की गई हो। मतलब लोकपाल एक साल से अधिक पुरानी शिकायत नहीं सुनता है।
- शिकायत किसी अदालत, ग्राहक फोरम या मध्यस्थता में लंबित न हो

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम Consumer Protection Act (COPA) 1986

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 ग्राहकों के हितों का बेहतर संरक्षण और ग्राहक परिषदों को स्थापित करने के प्रावधान बनाने और ग्राहकों के विवाद निपटाने के लिए, अन्य प्राधिकरणों को बनाने के लिए पारित किया गया। इस अधिनियम का संशोधन उपभोक्त संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2022 द्वारा किया गया। ग्राहक यहां शिकायत कर सकता है। ध्यान रहे कि यहां शिकायत करने के लिए अधिकतम दो साल का वक्त है। मतलब दो साल पुरानी ही शिकायत यहां सुनी जाती है। यहां शिकायत के लिए तीन फोरम हैं-

शिकायत के तीन फोरम

1- जिला फोरम- यहां 0 से 01 करोड़ रुपए तक के दावे की सुनवाई होती है।
2- राज्य फोरम- 01 करोड़ से 10 करोड़ तक के दावे की सुनवाई होती है।
3- राष्ट्रीय फोरम- 10 करोड़ से ऊपर के दावों की सुनवाई होती है।

शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया (किसी भी प्लेटफॉर्म पर)

- शिकायत को व्यक्तिगत रूप से दर्ज किया जा सकता है या फिर डाक द्वारा भी भेजा जा सकता है
- शिकायतकर्ता खुद या फिर उसके प्राधिकृत एजेंट द्वारा शिकायत दर्ज की जा सकती है।
- शिकायत दर्ज करवाने के लिए न तो कोई शुल्क जरूरत होता है और न ही किसी वकील की

शिकायतों की प्रकृति

- दावों के निपटान में देरी
- दावों का निपटारा न होना
- दावों को रद्द करना
- हानि का परिणाम
- पालिसी के नियम, शर्तें आदि

सूचना का आधिकार (Right to Information)

सूचना का अधिकार कानून 2005 में आया था। यह बीमा कंपनियों पर भी लागू होता है। इस अधिकार के उपयोग के जरिए बीमा बीमा धारक, बीमा कंपनी और आईआरडीए से कोई भी जानकारी मांग सकता है। ध्यान रहे कि मांगी गई जानकारी स्पष्ट और पांच बिंदुओं में होनी चाहिए। किसी भी कंपनी को अधिकतम 45 दिनों में आरटीआई का जवाब देना होता है।

Hariom Dwivedi

Hariom Dwivedi

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