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HIV का दानव: नई पीढ़ी ने किया कमजोर, इनको बनाया अपना हथियार

भारत में बाहरी देशों से आकर पांव फैलाने वाला एचआईवी वायरस अब कमजोर पड़ने लगा है। बीस साल पहले इस वायरस ने महामारी का रूप ले लिया था और तेजी के साथ भारत में संक्रमित लोगों की तादाद बढ़ा रहा था।

Newstrack
Published on: 1 Dec 2020 8:06 AM GMT
HIV का दानव: नई पीढ़ी ने किया कमजोर, इनको बनाया अपना हथियार
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HIV का दानव: नई पीढ़ी ने किया कमजोर, इनको बनाया अपना हथियार

लखनऊ। लगभग दो दशक पहले देश में महामारी की तरह फैल रहा एचआईवी वायरस अब दम तोड़ता दिखाई दे रहा है। पिछले दस साल के दौरान एचआईवी संक्रमित रोगियों की तादाद में बड़ी कमी देखने को मिली है। एचआईवी को कमजोर करने का श्रेय नई पीढ़ी को जाता है जो यौन व रक्त संक्रमण को लेकर बेहद सतर्क है। विशेषज्ञों का मानना है कि एचआईवी संक्रमित रोगियों के लिए ईजाद हुई नई दवाओं ने भी कमाल कर दिखाया है लेकिन खतरा अभी बना हुआ है। नाको के अनुसार 2019 में गर्भधारण कर चुकी लगभग 21 हजार महिलाओं के शिशुओं से नए मरीज बढ़ने का खतरा बना हुआ है।

बीस साल पहले इस वायरस ने महामारी का रूप ले लिया था

भारत में बाहरी देशों से आकर पांव फैलाने वाला एचआईवी वायरस अब कमजोर पड़ने लगा है। बीस साल पहले इस वायरस ने महामारी का रूप ले लिया था और तेजी के साथ भारत में संक्रमित लोगों की तादाद बढ़ा रहा था। ग्रामीण क्षेत्रों में भी एचआईवी संक्रमित मरीजों की तादाद बढऩे लगी थी। इस खतरे को भांपते हुए सरकारी स्तर पर एचआईवी रोकथाम के लिए कई बड़े कदम उठाए गए।

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उत्तर प्रदेश में हालांकि एचआईवी संक्रमित मरीजों की तादाद महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश सरीखे राज्यों से कम है इसके बावजूद आज पूरे प्रदेश में 38 एआरटी सेंटर संचालित किए जा रहे हैं जहां से संक्रमित रोगियों को पूरा उपचार मुफ्त मिल रहा है। इसके अलावा बीएचयू में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित किया गया है जबकि राज्य के पांच महानगरों में एआरटी प्लस सेंटर बनाए गए हैं। ताजा आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में इस समय एचआईवी संक्रमित रोगियों की तादाद लगभग 87 हजार है।

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नई पीढ़ी ने दिखाई जागरुकता, महामारी पर लगाया अंकुश

एचआईवी संक्रमित रोगियों के बीच काम करने वाले एक रोगी ने बताया कि संक्रमित रोगियों को भी संक्रमण फैलने से रोकने के तरीकों की जानकारी दी जा रही है। जागरुकता कार्यक्रमों और एड्स व एचआईवी महामारी के बारे में समाज में होने वाली चर्चाओं से नई पीढ़ी ने सकारात्मक सबक सीखा है। रक्त संक्रमण, असुरक्षित यौन संबंध को लेकर नई पीढ़ी ज्यादा जागरुक व सतर्क है।

इसकी वजह से एचआईवी का संक्रमण उस तरह से नहीं हो सका है जैसा पाश्चात्य देशों में हुआ है। दवाओं की डोज पूरी तरह से मिलने और दवाओं का नियमित इस्तेमाल करने से संक्रमित रोगी भी स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। इससे संक्रमण का दुष्प्रभाव कम हुआ और संक्रमित व्यक्ति को एड्स होने से बचाया जा सका है।

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बरकरार है एचआईवी संक्रमण का खतरा

नाको के अनुमान के अनुसार भारत में 23 लाख 49 हजार एचआईवी संक्रमित लोग हैं । इन की अधिकतम संख्या 30 लाख 98 हजार हो सकती है. 15 से 49 साल की उम्र वाले लोगों का प्रतिशत दशमलव 22 है. लगभग 9.94 लाख महिलाएं एचआईवी संक्रमित जीवन जी रही हैं । खतरे को ऐसे समझा जा सकता है कि 2019 में 69000 नए मामले सामने आए हैं ।

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2019 में नए मामले 37 प्रतिशत कम

आंकड़ों के विश्लेषण करने वाले यह दावा करते हैं कि 2010 के मुकाबले यह 2019 में नए मामले 37 प्रतिशत कम है और 1997 के चरम काल के मुकाबले 86 प्रतिशत का ढलान है। लेकिन तमाम इलाज के बावजूद 2019 में एड्स से मरने वालों की संख्या भी लगभग 59000 है । लगभग 21000 महिलाओं के गर्भ धारण करने के कारण नवजात शिशुओं में भी एचआईवी का खतरा बना हुआ है। महाराष्ट्र व आंध्र प्रदेश के मुकाबले कम एचआईवी संक्रमित रोगी वाले उत्तर प्रदेश में भी एचआईवी संक्रमित अव्यस्कों की तादाद सात हजार से अधिक है। यह वह बच्चे हैं जिन्हें अपने माता-पिता से संक्रमण मिला है।

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रिपोर्ट-अखिलेश तिवारी

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