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Natural Disaster Alert: कल के लिए हालात पर रोना आया, बहुत तेजी से बढ़ी प्राकृतिक आपदाएं

Natural Disaster Increase: आपदा तो आसमान से आईं है लेकिन इन्हें बनाने में इंसानों का भी कम हाथ नहीं। टूरिस्ट जगहों पर जबर्दस्त भीड़, गाड़ियों का अपार रेला, हर जगह मकान-होटल-गेस्ट हाउस और बाजार। छोटे-छोटे हिल स्टेशन बड़े-बड़े शहर में तब्दील कर दिए गए। जहाँ चंद सौ लोग जाते थे वहां लाखों का रेला लगने लगा।

Yogesh Mishra
Published on: 30 Aug 2023 3:31 AM GMT
Natural Disaster Alert: कल के लिए हालात पर रोना आया, बहुत तेजी से बढ़ी प्राकृतिक आपदाएं
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Natural Disaster Increase (Photo-Social Media)

Natural Disaster Increase: कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया। यही हाल है तमाम उन जगहों का जहां हम लुत्फ उठाने या जिंदगी की रौ बदलने के लिए जाते हैं। कहीं जंगलों की आग है, तो कहीं बाढ़, तो कहीं बादल फटना, कहीं सूखी नदियाँ या भीषण बाढ़। स्थिति गंभीर है और लगातार साल दर साल गंभीर होती चली जा रही है। प्राकृतिक आपदाएं कोई नई चीज नहीं है, हमेशा से होती आईं हैं। लेकिन इनकी तीव्रता और बारम्बारता जिस तरह से बढ़ी है, वह पहले कभी नहीं देखी गयी।

इस साल तो गजब ही हो गया है। आपदाओं का सितम प्राकृतिक संसाधनों पर तो पड़ ही रहा है, साथ में अंततः आफत इंसानों और जीव जंतुओं पर ही गिर रही है। हिमाचल, उत्तराखंड से लेकर असम तक और सात समंदर पार यूरोप के देशों में एक जैसा हाल देखा जा रहा है। मकान, बिल्डिंगें, कारें, खेत-खलिहान, ढोर-डंगर सब तबाह हो गए। चार-चार लेन के हाईवे, पुल, बाँध, बिजली प्रोजेक्ट सब टूट कर बह गए-ढह गए। करोड़ों-अरबों रुपये का नुकसान हुआ, सैकड़ों जिंदगियां खत्म हो गईं।

आपदा तो आसमान से आईं है लेकिन इन्हें बनाने में इंसानों का भी कम हाथ नहीं। टूरिस्ट जगहों पर जबर्दस्त भीड़, गाड़ियों का अपार रेला, हर जगह मकान-होटल-गेस्ट हाउस और बाजार। छोटे-छोटे हिल स्टेशन बड़े-बड़े शहर में तब्दील कर दिए गए। जहाँ चंद सौ लोग जाते थे वहां लाखों का रेला लगने लगा। हालत इतनी विकराल हो चली कि यूरोप वालों ने तो टूरिस्टों से तौबा कर ली है। अब यूरोप के कई देश कहने लगे हैं - अब बहुत हुआ, रहम करो, अब न आओ। खुले हाथ से टूरिस्टों का इस्तकबाल करने की बजाये अब दूर से ही बाय-बाय कर दिया जा रहा है।

क्रोएशिया का मध्ययुगीन शहर डबरोवनिक यूरोप के सबसे भीड़भाड़ वाले शहरों में से एक है। 41,000 लोगों की आबादी वाले शहर में रिकॉर्ड 14 लाख पर्यटक आए। अब यहाँ पर्यटकों को आने से मना किया जा रहा है। 16 लाख की आबादी वाले स्पेन के बार्सिलोना में 2022 में 97 लाख पर्यटक आये। यही हाल ग्रीस के रोड्स द्वीप, इटली के वेनिस और कई अन्य जगहों का है। क्रूज जहाजों को बंदरगाहों में एंट्री नहीं दी जा रही। सड़कों पर नो एंट्री के बोर्ड लगा दिए गए हैं। अब टूरिस्टों से तौबा है। वजह बहुत बड़ी है। यूरोप के टूरिस्ट डेस्टिनेशंस में जगह ही नहीं बची है। इतनी भीड़ हो चली है कि स्थानीय लोग चलना फिरना तो दूर, सांस तक नहीं ले पा रहे। चंद हजार लोगों के शहरों में लाखों टूरिस्टों का धावा है। पानी की किल्लत, खाने की कमी, चोक सीवेज...आखिर कोई कब तक झेल पायेगा।

प्रकृति भी क्लाइमेट चेंज के रूप में जंगलों की आग, सूखा, असहनीय गर्मी का लंबा मौसम, बाढ़, भूस्खलन का मंजर पेश कर रही है। एक आदमी की जगह में 100 लोग आ जायेंगे तो होगा क्या? यही होगा जो पूरा यूरोप ही नहीं, भारत के हिमालयी राज्य भी देख रहे हैं। अपने यहाँ देखिये - हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड। देव भूमि कहलाते हैं। पूज्यनीय नदियों के स्रोत, पर्यटकों के लिए स्वर्ग, अद्भुत हिमालय के घर। लेकिन शायद हमसे इनका स्वर्गिक स्वरूप बर्दाश्त नहीं हो रहा। तभी तो हम इन्हें बर्बाद होते देख रहे हैं। साल दर साल, बाढ़, अतिवृष्टि, भूस्खलन, जंगलों की आग और न जाने क्या-क्या। इस साल तो तबाही इस कदर मची है जैसी कभी देखी नहीं गयी थी।

कोई भी टूरिस्ट गंतव्य या बड़ा कामकाजी शहर उठा कर देख लीजिए। मनाली, दार्जिलिंग, नैनीताल से लेकर बद्रीनाथ, केदारनाथ और इंदौर, हैदराबाद, बंगलुरु, से लेकर कोच्चि, नोएडा, लखनऊ, पटना तक सब जगह यही हाल। मनाली की जनसंख्या 8 हजार, नैनीताल की जनसंख्या 41,000, कुल उत्तराखंड की जनसंख्या 1 करोड़ 10 लाख और हिमाचल की जनसंख्या 75 लाख। इसके कई कई गुना लोग इन राज्यों में घूमने जाते हैं। इतने टूरिस्टों के लिए सुविधाएँ चाहिए, इंफ्रास्ट्रक्चर चाहिए सो जंगल, पहाड़ काट कर होटल, गेस्ट हाउस, दुकानें, बाजार बनाये जा रहे हैं। टूरिस्ट भी कोई वहां फूल लगाने तो जाते नहीं, उलटे कचरा फैला कर ही आते हैं। आंकड़े तस्दीक करते हैं कि हिमालयन रीजन में हर साल 80 लाख टन कचरा उत्पन्न होता है।

हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला का नाम तो सुना ही होगा। कभी छोटा सा सुरम्य कस्बा अब ऐसा शहर बन गया है जहाँ रोजाना 25 टन कचरा निकलता है। ये सब कचरा हवा, पानी, मिटटी सब कुछ प्रदूषित कर रहा है, नाले, नदी चोक कर रहा है। ट्रैफिक का ये हाल है कि हिमालयन रीजन के सुदूर क्षेत्रों में भी आज के समय ट्रैफिक प्रदूषण और ट्रैफिक जाम देखा जाने लगा है। हिमालयी क्षेत्र के 50 फीसदी वाटरफाल सूख चुके हैं। जितना जंगल काटेंगे उतने ही वाटरफाल सूखते जायेंगे। यही नहीं, अगले 70 से 80 साल में हिमालयी ग्लेशियर सूख जाने का अनुमान है। देश की बड़ी-बड़ी नदियों में इन्हीं ग्लेशियर से पानी आता है जो एक अरब लोगों तक पहुंचता है।

उपभोग की इन्तेहा भी देखिये. लद्दाख क्षेत्र में लोकल लोग पानी की वैल्यू समझते हैं और औसतन एक व्यक्ति प्रतिदिन 20 लीटर पानी खर्च करता है। लेकिन वहीं टूरिस्ट औसतन प्रतिव्यक्ति प्रति दिन 75 लीटर पानी खर्च कर देते हैं। नतीजतन, लोकल लोगों को पानी की कमी का दुष्परिणाम भुगतना पड़ता है। जान लीजिये कि 2001 से 2021 के बीच सिर्फ हिमाचल प्रदेश में 4820 हेक्टेयर जंगल खत्म कर दिए गए। सिक्किम में यह संख्या 2000 हेक्टेयर की है। 2013 में केदारनाथ की बाढ़ हो या 2018 से शिमला में जारी पानी संकट या 2002 में असम और अरुणाचल में भयानक बाढ़।

इन सबका एक बहुत बड़ा कारण है-टूरिज्म। जी हाँ, गैर जिम्मेदाराना टूरिज्म जिसके लिए हम और आप जैसे लाखों-करोड़ों पर्यटक ही जिम्मेदार हैं। सिर्फ जम्मू-कश्मीर की बात करें तो वहां की 50 से 60 फीसदी जनता पर्यटन पर भी आश्रित है। यहाँ की जीडीपी का 15 फीसदी हिस्सा टूरिज्म से आता है। हिमाचल की जीडीपी का 7 फीसदी और उत्तराखंड की जीडीपी का 4 फीसदी पर्यटन से आता है। भले ही यह संख्या छोटी लग रही हो, लेकिन रकम में देखें तो ये 12 से 13 हजार करोड़ रुपये बैठता है। ये भी जान लीजिये कि इन राज्यों में 99 फीसदी पर्यटक भारतीय ही होते हैं। पर्वतीय राज्यों में हर साला 10 करोड़ से ज्यादा टूरिस्ट आते हैं। और अनुमान है कि अगले कुछ साल में ये संख्या 25 करोड़ हो जायेगी।

कोई शहर उठा कर देख लीजिए। मुम्बई से लेकर बंगलुरु और हैदराबाद से लेकर दिल्ली तक। मानों कुकर ठसाठस भरा हुआ है, सीटी बजने तक की जगह न बची है। ऊपर से जनाब रोना पानी का है, बिजली, सफाई, सड़क, सुकून और शांति का है। अयोध्या को देखें। 2011 की गिनती में कोई 55 हजार की जनसंख्या थी। 2022 में इसी अयोध्या में ढाई करोड़ आगंतुक आये। यानी रोजाना औसतन 68 हजार। जितनी लोकल जनसंख्या उससे भी ज्यादा। बनारस में जनसंख्या 12 लाख थी, जो अब 17 लाख से ऊपर जा चुकी है। इस शहर में सिर्फ एक महीने यानी जुलाई 2022 में 40 लाख से ज्यादा पर्यटक आये। ये तो सिर्फ उदाहरण हैं। कहाँ समायेंगे इतने लोग। कितना फैलेगी कोई जगह। आपदा सिर्फ पहाड़ों या जंगलों में आ रही है ये सोचना सरासर गलत है। मैदानी इलाकों में भीषण गर्मी भी उसी आपदा का हिस्सा है। ये कोई आखिरी त्रासदी नहीं है, अभी तो शुरुआत है। प्रकृति और ईश्वरीय नियम है-जैसा करोगे वैसा भरोगे। आज नहीं तो कल, भरना तो पड़ेगा।

Yogesh Mishra

Yogesh Mishra

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