Ravan Vadh Ki Kahani: रावणवध में हनुमान जी की भूमिका
Ravan Vadh Ki Kahani: जब भगवान राम और रावण का युद्ध चल रहा था तब श्रीराम का हर बाण, रावण का वध करने में असफल होता जा रहा था
Ravan Vadh Ki Kahani: पौराणिक किस्से-कहानियों में अक्सर हम यही सुनते आए हैं कि रावण की मृत्यु का कारण उसका अपना भाई विभीषण था। विभीषण ने ही रावण की मृत्यु का रहस्य राम को बताया था। ये इस कहानी की आधी हकीकत है। आधा भाग मंदोदरी से भी जुड़ा हैं। ये बात तो हम जानते ही हैं रावण, कुंभकर्ण और विभीषण, तीनों ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कड़ी तपस्या की थी।
ब्रह्मा जी के प्रकट होने पर रावण ने उनसे अमरता का वरदान मांगा था, लेकिन ब्रह्मा जी ने यह कहकर उस मांग को टाल दिया कि अमरता का वरदान देना उनके लिए मुमकिन नहीं है। ये कहने के बाद ब्रह्मा जी ने रावण को एक तीर दिया और कहा “तुम्हारी मृत्यु इसी तीर से हो सकती है”।
रावण वह तीर लेकर अपने महल पहुंचा और वहां जाकर उसे अपने सिंहासन के पास खंबे में चुनवा दिया। जब भगवान राम और रावण का युद्ध चल रहा था तब श्रीराम का हर बाण, रावण का वध करने में असफल होता जा रहा था। श्रीराम उसका सिर धड़ से अलग करते और जैसे ही वह सिर जमीन पर गिरता दोबारा धड़ से जुड़ जाता।
ऐसे में विभीषण ने राम को बताया कि उस विशिष्ट तीर के अलावा किसी भी अन्य शस्त्र से रावण की मृत्यु संभव नहीं है। लेकिन वह तीर कहां था, रावण ने उसे कहां छिपा रखा था, कोई ये नहीं जानता था ? सिवाय मंदोदरी के। बस फिर क्या था, एक ज्योतिषाचार्य का रूप धरकर हनुमान जी लंका पहुंच गए। वे लंका के प्रसिद्ध स्थानों में घूम-घूमकर लोगों के भविष्य बताने लगे। चारों ओर इस हनुमान रूपी ज्योतिष की खबर फैल गई।
ये समाचार मंदोदरी तक भी पहुंचा। उत्सुकतावश मंदोदरी ने ज्योतिष को अपने महल बुलाया। महल पहुंचकर हनुमान के रूप में ज्योतिष ने मंदोदरी को रावण से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बताईं, जो स्वयं मंदोदरी भी नहीं जानती थी। बातों ही बातों में हनुमानजी ने मंदोदरी को रावण को ब्रह्मा से मिले तीर और वरदान की बात भी कही।
साथ ही साथ हनुमान जी ने यह भी जाहिर करने की कोशिश की कि जहां भी वो बाण पड़ा है, वह सुरक्षित नहीं है। हनुमान जी चाहते थे कि मंदोदरी उन्हें किसी भी तरह उस बाण का स्थान बता दे।
मंदोदरी पहले तो ज्योतिषाचार्य को आश्वस्त करने की कोशिश करती रही कि वो बाण सुरक्षित है लेकिन हनुमान जी की वाकपटुता की वजह से मंदोदरी बोल ही पड़ी कि वह बाण रावण के सिंहासन के सबसे नजदीक स्थित स्तंभ के भीतर चुनवाया गया है।
यह सुनते ही हनुमान जी ने अपना असल स्वरूप धारण कर लिया और जल्द ही वह बाण लेकर श्रीराम को के पास पहुंच गए।
श्रीराम ने उसी बाण से फिर रावण की नाभि पर वार किया। इस तरह रावण का अंत हुआ।