जयकारे के साथ हुआ कूष्मांडा देवी का जलाभिषेक, पिंडी के नीर से दूर होती हैं बीमारियां

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Published on: 21 Sep 2017 6:55 AM GMT
जयकारे के साथ हुआ कूष्मांडा देवी का जलाभिषेक, पिंडी के नीर से दूर होती हैं बीमारियां
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कानपुर: नवरात्रि के पहले दिन जय माता दी के जयकारे के साथ माता कुष्मांडा का जलाभिषेक हुआ। शहर से करीब साठ किलोमीटर दूर घाटमपुर ब्लॉक में मां कुष्मांडा देवी का अद्भुत मंदिर है। मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप मां कुष्मांडा देवी इस प्राचीन व भव्य मंदिर में लेटी हुई मुद्रा में है। एक पिंड के रूप में लेटी मां कुष्मांडा, जिससे लगातार पानी रिसता रहता है। कहते हैं कि इस नीर का सेवन करने से कई प्रकार की बीमारियों से लोगो को राहत मिलती है। हांलाकि कुष्मांडा देवी की पिंडी से रिसने वाला नीर आज भी लोगों के लिए रहस्य बना हुआ है।

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मंदिर के पुजारी परशुराम दुबे के मुताबिक मां कुष्मांडा की पिंडी की प्राचीनता की अंक में गणना करना बहुत मुश्किल है कि यह कितने साल पुरानी है। उन्होंने बताया कि घाटमपुर क्षेत्र में घनघोर जंगल था। उस दौरान एक कुढाहा नाम का ग्वाला गाय चराने आता था। उसकी गाय चरते चरते मां की पिंडी के पास आ जाती थी। पूरा दूध माता की पिंडी के पास निकाल देती थी। जब कुढाहा शाम को घर जाता था तो उसकी गाय दूध नहीं देती थी, यह क्रम कई महीनों तक चलता रहा।

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तभी कुढाहा के मन यह बात आई कि आज देखेंगे कि यह कहां-कहां जाती है जो शाम को दूध नहीं देती है। कुढाहा झाड़ियों के पीछे छिप कर अपनी गाय का पीछा करता रहा। कुढाहा ने देखा कि उसकी गाय एक पिंडी के ऊपर खड़ी है और अपने आप दूध निकल रहा है। यह देख वह बड़ा आश्चर्यचकित हो गया, उसने यह अपने गांव में बताई। ग्रामीणों ने इस जगह पर एक छोटी सी मठिया बना दी। धीरे-धीरे इस स्थान पर तमाम साधू संत भी आ कर रहने लगे और पूजा-पाठ करने लगे। लेकिन लोगों को चौंकाने वाली बात यह थी कि पिंडी से निकलने वाले नीर को माता का प्रसाद मानकर लोग चखने लगे, जिससे तमाम बीमारियों में लोगों को राहत मिलने लगी।

पुजारी परशुराम का मानना है कि यदि सूर्योदय से पहले नहा कर छ माह तक इस नीर का इस्तेमाल किसी भी बीमारी में किया जाए तो उसकी बीमारी शत-प्रतिशत ठीक हो जाएगी। लेकिन उन्होंने कहा कि लोग ऐसा कर नहीं पाते हैं। इसके लिए बहुत नियम और संयम की जरूरत होती है।

मंदिर के बगल में बने तालाब का भी बड़ा आश्चर्य चकित इतिहास है। मंदिर की सेवा करने वाले बुजुर्ग राजपाल सिंह के मुताबिक जब से यह माता कुष्मांडा का मंदिर बना है। यह तालाब कभी सूखा नहीं है। उन्होंने कहा कि मेरी उम्र 68 साल है, लेकिन मैंने कभी भी इस तालाब को सूखा नहीं देखा है। बारिश हो या न हो, लेकिन यह तालाब सूखता नहीं है।

मंदिर की माली मन्नी देवी ने बताया कि मां दुर्गा के चौथे स्वरुप का नाम कूष्मांडा देवी है। यह श्रष्टि की आदि स्वरूप और आदि शक्ति है। नवरात्रि पूजन के चौथे दिन मां कूष्मांडा देवी की उपासना की जाती है।

मां कुष्मांडा के मंदिर में दर्शन करने के बाद जिन भक्तों की मुरादें पूरी हो जाती हैं। वह मंदिर में आकर कथा सुनते हैं। बिरहर गाव के पवन अवस्थी अपने पूरे परिवार के साथ माता के दरबार में कथा सुनने आए हैं। उन्होंने बताया कि खेती का एक विवाद चल रहा था और मनोकामना मानी थी कि विवाद निपट जाएगा। तो माता के दरबार में कथा सुनेंगे। इस लिए आज कथा सुनने के लिए परिवार समेत आए हैं। इसी प्रकार लोग यहां पर बच्चों के मुंडन संस्कार कराते हैं।

लोगों का मानना है कि मां के दरबार में आने वाले सभी भक्त निराश हो कर जाते हैं। उन्होंने बताया कि मैं यहां पर बहुत बड़ा भंडारा करा रहा। मां कुष्मांडा देवी ने मेरी मनोकामना पूरी की है।

श्री कुष्मांडा माता सेवा समिति के सचिव विजय मिश्र के मुताबिक इस मंदिर में विदेशी पर्यटक भी आते हैं। नवरात्रि पर्व में यहां पर मेला लगाने का प्रबंध नगर पालिका करती है और कमेटी मेले में देख-रेख का काम करती है।

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