खुदा है या नहीं? मुफ्ती शमाइल नदवी की वो दलीलें, जो बताती हैं कि 'ईश्वर' को विज्ञान के पैमाने से क्यों नहीं नापा जा सकता!

Existence of God: ईश्वर है या नहीं? जावेद अख्तर और मुफ्ती शमाइल नदवी की बहस में जानिए वो तर्क, जो बताते हैं कि भगवान को विज्ञान के पैमाने से क्यों नहीं नापा जा सकता।

Update:2025-12-22 15:57 IST

Existence of God: ईश्वर के अस्तित्व को लेकर हुई एक हालिया बहस इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब चर्चा में है। यह बहस एक बड़े न्यूज़ चैनल के मंच पर आयोजित की गई थी, जहां मशहूर शायर-गीतकार और खुले तौर पर नास्तिक विचार रखने वाले जावेद अख्तर आमने-सामने थे कोलकाता की वाहयान फाउंडेशन से जुड़े मुफ्ती शमाइल नदवी के। यह कार्यक्रम दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में हुआ, लेकिन असली बहस अब सोशल मीडिया पर देखने को मिल रही है, जहां लोग दोनों पक्षों के तर्कों पर अपनी राय रख रहे हैं।

ईश्वर पर बहस की चुनौती और नदवी के तर्क

दिलचस्प बात यह है कि इसी साल कोलकाता उर्दू अकादमी द्वारा जावेद अख्तर को बुलाए जाने का मुफ्ती नदवी और उनकी संस्था ने विरोध किया था। उसी दौरान नदवी ने जावेद अख्तर को ईश्वर के अस्तित्व पर खुली बहस की चुनौती दी थी, जो अब इस मंच पर देखने को मिली। दर्शकों ने भी सवाल पूछे, जिससे बहस और रोचक हो गई। मुफ्ती शमाइल नदवी ने ईश्वर के अस्तित्व के समर्थन में अपनी बात को सरल और क्रमबद्ध तरीके से रखा। उन्होंने कहा कि ईश्वर को विज्ञान के पैमानों से नहीं मापा जा सकता, क्योंकि विज्ञान सिर्फ उन्हीं चीज़ों तक सीमित है जिन्हें देखा, नापा और प्रयोग से साबित किया जा सके। उनके अनुसार ईश्वर भौतिक नहीं, बल्कि उससे परे एक सत्ता है, इसलिए उसे साबित करने के लिए साइंस को अंतिम कसौटी बनाना सही नहीं है। उन्होंने यह भी साफ किया कि वे इस बहस में किसी धार्मिक ग्रंथ का सहारा नहीं लेंगे, क्योंकि सामने वाला पक्ष उन्हें ज्ञान का स्रोत नहीं मानता।

ईश्वर और ब्रह्मांड को लेकर नदवी की दलीलें

नदवी ने यह तर्क भी दिया कि किसी गैर-भौतिक सत्ता को भौतिक औजारों से खोजने की ज़िद करना गलत है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे धातु खोजने वाली मशीन से प्लास्टिक नहीं ढूंढा जा सकता, वैसे ही ईश्वर को लैब में ढूंढने की मांग तर्कसंगत नहीं है। उनका कहना था कि अगर ईश्वर के न होने की कोई ऐसी ठोस और अंतिम दलील हो, जिसे नकारा न जा सके, तो वे उसे मानने को तैयार हैं, लेकिन अब तक ऐसी कोई दलील सामने नहीं आई है। उन्होंने यूनिवर्स के निर्माण पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब कोई छोटी-सी चीज़ भी अपने-आप नहीं बनती, तो इतना विशाल और व्यवस्थित ब्रह्मांड खुद-ब-खुद कैसे बन सकता है।

बुराई, परीक्षा और अंतिम सत्ता का तर्क

बुराई और दुख के सवाल पर मुफ्ती नदवी ने कहा कि बुराई का होना ईश्वर के खिलाफ नहीं जाता। अगर इंसान को सही-गलत की समझ और जिम्मेदारी दी गई है, तो अच्छाई-बुराई दोनों का होना जरूरी है। उनके मुताबिक जीवन की मुश्किलें कई बार एक परीक्षा होती हैं और हर चीज़ का अंत में हिसाब होता है। अंत में उन्होंने कहा कि कारणों की एक अंतहीन कड़ी व्यवहारिक नहीं हो सकती। कहीं न कहीं एक ऐसी अंतिम सत्ता होनी चाहिए, जिस पर यह सिलसिला खत्म हो। उनके अनुसार वही सत्ता समय और स्थान से परे है, किसी पर निर्भर नहीं है और उसी को ईश्वर कहा जाता है। उनकी पूरी बात का सार यही था कि ईश्वर कोई कल्पना नहीं, बल्कि तर्क और सोच की जरूरत से निकला हुआ निष्कर्ष है।

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