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बिहार में निशाने पर प्रशासनिक अधिकारी, सियासी दखलंदाजी से परेशान हैं IAS IPS
उत्पाद आयुक्त केके पाठक अपने मातहत पर कार्रवाई से आहत होकर कुछ दिन की छुट्टी पर गए तो सरकार ने उन्हें एक तरह की लंबी छुट्टी पर ही भेज दिया। 1990 बैच के केके पाठक 11 सितंबर 2016 से सामान्य प्रशासन विभाग में पदस्थापन की प्रतीक्षा में बैठाए गए हैं
शिशिर कुमार सिन्हा, पटना
पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के शराबबंदी अभियान में कल तक मुख्य भूमिका निभा रहे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी केके पाठक को एक जिद भारी पड़ गई। यह जिद कुछ हद तक व्यक्तिगत थी। इसलिए उन्हें पदस्थापना की प्रतीक्षा में बैठा दिया गया। वैसे यह पाठक की कोई पहली जिद नहीं थी, लेकिन इन दिनों यही चल रहा है बिहार में।
पिछले साल पटना में अपराधियों को सुधारने की जिद ठाने भारतीय पुलिस सेवा के दो अधिकारियों को एक-एक कर सरकार ने सुस्ताने के लिए किनारे छोड़ दिया था। आईएएस केके पाठक के साथ हुए व्यवहार के बाद बिहार में आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की असल हालत खंगालने पर पूरी हकीकत सामने आ गई।
सिर से ऊपर पानी
भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा के अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग हर प्रदेश में उस समय की सरकार के हिसाब से होती रहती है, लेकिन बिहार की नीतीश सरकार के कार्यकाल में इसे लेकर अब पानी सिर के ऊपर जाने जैसी स्थिति हो गई है। उत्पाद आयुक्त केके पाठक अपने मातहत पर कार्रवाई से आहत होकर कुछ दिन की छुट्टी पर गए तो सरकार ने उन्हें एक तरह की लंबी छुट्टी पर ही भेज दिया। 1990 बैच के केके पाठक 11 सितंबर 2016 से सामान्य प्रशासन विभाग में पदस्थापन की प्रतीक्षा में बैठाए गए हैं और इसी के साथ यह चर्चा तेज हो गई है कि सरकार उन्हें या तो किसी निष्क्रिय पद की शोभा बढ़ाने भेज देगी या पहले के दर्जनों प्रशासनिक अधिकारियों की तरह पाठक भी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए कतार में लग जाएंगे।
चुनाव के ठीक पहले बिगड़ी सरकार की चाल
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निर्वाचन आयोग का हस्तक्षेप
बिहार में जब तक भाजपा-जदयू की सरकार थी, ट्रांसफर-पोस्टिंग की खबरें आती तो थीं लेकिन आईएएस-आईपीएस को लेकर इतना बवाल नहीं था। भाजपा से अलग होने के बाद भी जदयू के अंदर ऐसे ट्रांसफर-पोस्टिंग की कोई परंपरा नहीं बनी। लेकिन महागठबंधन के बाद यह खेल शुरू हुआ और इसने सरकार के रवैए को जनता के सामने काफी हद तक बेपर्दा कर दिया। बिहार विधानसभा चुनाव के आसपास जदयू के तत्कालीन विधायक और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाते रहे बाहुबली अनंत सिंह को गिरफ्तार करने, एक आरोपी को छोडऩे की पैरवी करने पर कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी पर केस दर्ज करने और बिहार बंद के दौरान राजद कार्यकर्ताओं के उत्पात के बाद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के खिलाफ एफआईआर दर्ज करते हुए चार्जशीट करने के कारण आईपीएस विकास वैभव को सरकार ने पटना एसएसपी के पद से हटा दिया था।
एक के बाद एक ऐसी कई घटनाओं से खार खाए नेताओं ने प्रदर्शन के दौरान लाठीचार्ज को आधार बनाकर एसएसपी विकास वैभव को हटवाया था। राज्य सरकार का रवैया इसलिए भी जनता की नजर में आ गया क्योंकि एसएसपी के साथ पटना की डीएम डॉ.प्रतिमा को भी ऐसे ही आरोप के जरिए हटाया गया। हालत यह रही कि विधानसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होते ही सरकार के इन दो निर्णयों को निर्वाचन आयोग ने रद्द कर सरकार की छवि आइने की तरह साफ कर दी। निर्वाचन आयोग ने भूल सुधार का रवैया अख्तियार किया तो सत्तारूढ़ होते ही महागठबंधन ने पटना की डीएम डॉ. प्रतिमा और एसएसपी विकास वैभव को यहां-वहां फेंकना शुरू कर दिया। सख्त छवि से अपराधियों पर नकेल कसने वाले आईपीएस अधिकारी विकास वैभव इस समय एआईजी ट्रेनिंग के रूप में एक दफ्तर की कुर्सी पर पूरे दिन फाइल निबटा रहे हैं। इसी तरह 2002 बैच की डॉ.प्रतिमा बिहार प्रशासनिक सुधार मिशन सोसायटी की अपर निदेशक की कुर्सी पर बैठी हैं।
बार-बार सामने आ रहा दर्द लाइलाज
इस साल चॢचत आईपीएस अधिकारी शिवदीप लांडे ने अपने गृह प्रदेश महाराष्ट्र में स्थानांतरण की इच्छा जाहिर कर बिहार सरकार के रवैए को कठघरे में ला खड़ा किया। इसके साथ ही पुलिस-प्रशासन के सख्त अधिकारियों के साथ बिहार के ‘सुशासन’ में हो रहे खिलवाड़ को भी लांडे के आवेदन ने आम जनता के सामने ला दिया। छेडख़ानी करने वालों से लेकर नकली सामानों के कारोबारियों तक और इलाकाई गुंडे से बड़े अपराधियों तक की हवा खराब कर देने वाले आईपीएस अधिकारी शिवदीप लांडे ने पटना में एसपी (सेंट्रल) के रूप में ऐसी छवि बनाई थी कि किशोरियों-युवतियों के मोबाइल में इनका नंबर फास्ट डायल में सबसे ऊपर रहता था और दिन-रात कभी भी सक्रिय रहने की अपनी प्रवृत्ति के कारण पटना में लांडे के रहते क्राइम का ग्राफ काफी नीचे गिर गया था। अपराधियों और दवा के काले कारोबारियों के दबाव में लांडे को पटना के एसपी पद से हटाए जाने की बात कहते हुए कई दिनों तक राजधानी समेत प्रदेश के कई इलाकों में सरकार के खिलाफ नारेबाजी हुई थी। लांडे कुछ समय तक राज्यपाल के साथ रहे और फिलहाल एसटीएफ एसपी के रूप में जनता की नजरों से दूर हैं।
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कई ने खुद ही पीछा छुड़ाया
भारतीय पुलिस सेवा के कई अधिकारियों के नाम बिहार के लोगों की जुबान पर आज भी हैं, जिन्होंने या तो । 1998 बैच के अमित लोढ़ा फिलहाल डीआईजी के रूप में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। लोढ़ा की सख्त छवि को पहले की राज्य सरकारें भी सहन नहीं कर पा रही थीं। 1998 बैच के ही अमृत राज डीआईजी के रूप में ही केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। 27 मार्च 2012 से 27 मार्च 2013 तक पटना एसएसपी के रूप में सेवा देने वाले अमृत राज की छवि अब भी पटनावासियों में धूमिल नहीं हुई है। केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर गए 1997 बैच के ओ.एन.भास्कर हों या 202 बैच के राकेश राठी या 2005 बैच के.पी.कन्नन, हर नाम के पीछे कुछ न कुछ कहानी है और इनकी पटकथा में राजनीतिक हस्तक्षेप का कहीं न कहीं स्थान जरूर है।
सख्त आईपीएस यहां रहे भी तो गुमनाम
आईपीएस में कुछ नाम ऐसे भी हैं, जो कभी अपनी सख्त छवि से सुॢखयों में रहे थे,लेकिन अब कहीं दिन गुजार रहे हैं। 1987 बैच के गुप्तेश्वर पांडेय ने बेगूसराय जिले में कभी एसपी रहते हुए अपनी जो सख्त छवि बनाई थी, उसे आगे की पोस्टिंग में भी कायम रखने में सफल रहे, लेकिन आज की तारीख में एडीजी के पद पर वायरलेस एंड टेक्नीकल सॢवसेज देख रहे हैं। करीब तीन साल तक लगातार पटना के एसएसपी के रूप में सेवा देने वाले चुनिंदा अफसरों में रहे 1994 बैच के आईपीएस अधिकारी कुंदन कृष्णन बाहुबली नेता व पूर्व सांसद आनंद मोहन की कथित तौर पर जमकर धुनाई के बाद वर्षों केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर आईबी में रहे। लौटे तो कुछ समय तक जनता के बीच रहने का भी मौका मिला, फिलहाल आईजी ऑपरेशन के रूप में सेवा दे रहे हैं। पहले पटना के एसपी सिटी रहे विकास वैभव की क्षमता का केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के दौरान एनआईए ने बखूबी इस्तेमाल किया, लेकिन बिहार लौटने पर पटना में दो टर्म चॢचत एसएसपी रहने के बाद इन्हें एआईजी ट्रेनिंग के रूप में बैठाकर रखा गया है। इसी तरह कई जिलों में सख्त छवि बनाकर अपराध को नियंत्रित रखने में सक्षम रहीं 2008 बैच की महिला आईपीएस अधिकारी किम को सरकार ने अभी बीएमपी १४ में कमांडेंट बना रखा है।
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बिहार से दूर हुए क्षमतावान आईएएस
आईएएस के.के.पाठक को किनारे किए जाने से भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों को एक बार फिर लालू-राबड़ी सरकार के दिन याद आने लगे हैं। लालू प्रसाद सार्वजनिक मंचों से जिलाधिकारियों की क्लास लगाने के कारण खासे चर्चा में रहे थे और अब एक बार फिर महागठबंधन के घटक के रूप में राजद के सत्ता में आते ही लालू प्रसाद ताकतवर होकर अपना संदेश दे रहे हैं। विधानसभा चुनाव से पहले पटना में तमाम राजनीतिक दलों के साथ राजद और जदयू की रैलियों के पोस्टर हटाए जाने के कारण ही डॉ.प्रतिमा वर्मा को सरकार बनने के बाद से ही लगातार किनारे रखा जा रहा है। वैसे,डॉ.प्रतिमा का केस भी बिहार के लिए नया नहीं था और के.के.पाठक का मामला भी अलग नहीं है।
प्रशासनिक व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए नाम कमाने वाले रमेश अभिषेक उन चुनिंदा आईएएस अधिकारियों में हैं जो पटना में लंबे समय तक जिलाधिकारी रहे। नवंबर 1992 से जनवरी 1995 तक और फिर अप्रैल 1995 से मार्च 1996 तक पटना के डीएम रहे रमेश अभिषेक एक तरह से बिहार छोड़ चुके हैं। चार बार पटना की डीएम रहीं राजबाला वर्मा ने झारखंड स्वीकार लिया। जुलाई 2005 से मार्च 2008 तक पटना के डीएम रहे बी.राजेंदर को प्रशासनिक क्षमता के कारण याद किया जाता है, लेकिन वह भी अब केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। चॢचत आईएएस अधिकारी सुभाष शर्मा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में अपर सचिव एवं वित्तीय परामर्शी तो संदीप पौंड्रिक पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय में संयुक्त सचिव की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। पटना के नगर आयुक्त के रूप में अपनी अमिट छाप छोडऩे के बाद आईएएस अधिकारी संतोष कुमार मल्ल आज की तारीख में केंद्रीय विद्यालय संगठन के आयुक्त हैं तो हाजीपुर के डीएम रहे तेजतर्रार आईएएस संजीव हंस केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के सचिव के रूप में सेवारत हैं। पटना में ट्रेनी आईएएस रहते हुए बाहुबली अनंत सिंह के गोदामों को सील करने के कारण सख्त छवि बनाने वालीं वंदना प्रेयसी वित्त मंत्रालय के आॢथक कार्य विभाग में उप सचिव का काम देख रही हैं।
अनबन में गुमनाम हुए नामी आईएएस
प्रशासनिक क्षमता के कारण नाम कमाने वाले आईएएस अधिकारियों की सूची में ऐसे कई नाम हैं, जो आज बिहार में रहकर भी एक तरह से गुमनाम हैं। पटना के नगर आयुक्त रहे कुलदीप नारायण सत्तारूढ़ राजद समर्थक पटना के मेयर अफजल इमाम से अनबन के कारण चर्चा में रहे और उसके बाद ऐसे गायब हुए कि ज्यादातर लोगों को यह भी नहीं पता कि अपर सचिव स्तर के अधिकारी कुलदीप नारायण पंचायती राज निदेशक के साथ बिहार राज्य ग्राम स्वराज योजना सोसायटी के परियोजना निदेशक के अतिरिक्त प्रभार में हैं।
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टारगेट का ट्रेंड मानते हैं वरिष्ठ अफसर
अपना भारत ने इस सिलसिले में पटना और दिल्ली में सेवारत कई आईएएस-आईपीएस अधिकारियों से बात की, लेकिन स्थानांतरण, केंद्रीय प्रतिनियुक्ति जैसे विषयों पर किसी ने सामने आकर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। विशेष सचिव स्तर के एक अधिकारी ने कहा कि कुछेक अधिकारी माहौल और प्रोन्नति के मौकों के कारण केंद्रीय प्रतिनियुक्ति चाहते हैं, लेकिन ज्यादातर केस में कारण कुछ और ही होता है। एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ने कहा कि न तो विकास वैभव का केस छिपा है और न ही शिवदीप लांडे का। अपराधियों पर काबू पाने के लिए जो आईपीएस दिनरात एक करता हो, उसे राजनीति पर काबू पाने की तकनीक नहीं पता चलती। पटना के डीएम रहे एक अधिकारी ने बातचीत के क्रम में कहा कि पटना, सीवान, बेगूसराय जैसे कुछेक जिले हैं, जिसमें काम कर सुॢखयों में आए आईएएस या आईपीएस को टारगेट पर रखने का ट्रेंड है बिहार में। कोई भी सूची देखें, पटना में डीएम, एसएसपी या नगर आयुक्त की जिम्मेदारी निभाने वाले जल्दी और ज्यादा टारगेट हो जाते हैं।
(नीतीश-लालू:फोटो साभार: इंडियनएक्सप्रेस.कॉम)