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Death of Emperor Akbar : अकबर सम्राट की मौत की वजह बनी थी जो अब है बहुत ही मामूली बीमारी, जानिए उस जानलेवा पीड़ा से जुड़े इतिहास के बारे में जो पन्नों में कहीं गुम है
Death of Emperor Akbar :इतिहास के पन्नों में मुग़ल सम्राट अकबर की महानता के कई किस्से आपको मिल जायेंगें लेकिन क्या आप जानते हैं कि उसकी मृत्यु कैसे हुई थी।
Death of Emperor Akbar: जब हम मुगल साम्राज्य की बात करते हैं, तो एक नाम स्वर्णिम अक्षरों में उभरता है वह है अकबर महान का। केवल एक सम्राट ही नहीं, बल्कि एक युग पुरुष, एक दूरदर्शी शासक, एक धर्मनिरपेक्ष विचारक। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस महान सम्राट का अंत कैसे हुआ? एक राजा जिसने आधे हिंदुस्तान पर राज किया, जिसने मजहब की दीवारें गिराईं, जिसे 'अकबर द ग्रेट' कहा गया—वह एक साधारण सी बीमारी से तड़प-तड़पकर मर गया। यह कहानी केवल एक मौत की नहीं है, यह उस महानता की करुण गाथा है, जो इतिहास की धूल में कहीं गुम हो गई।
अकबर एक युगद्रष्टा एक धर्मनिरपेक्ष विचारक
अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 को सिंध के अमरकोट में हुआ था। वह मुगल सम्राट हुमायूं और हमीदा बानो बेगम के पुत्र थे। केवल 13 वर्ष की आयु में, 1556 में, पानीपत की दूसरी लड़ाई के पश्चात अकबर ने गद्दी संभाली। जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर ने न केवल मुग़ल साम्राज्य का भौगोलिक विस्तार किया, बल्कि अपनी नीति, धर्मनिरपेक्षता और प्रशासनिक कौशल से भारतीय इतिहास में एक स्थायी छाप छोड़ी।
ऐसे हुई जानलेवा बीमारी की शुरुआत
1605 का अक्टूबर महीना था। दिल्ली और आगरा के दरबार में अचानक खामोशी छा गई। सम्राट अकबर अस्वस्थ हो गए थे। प्रारंभ में सामान्य थकान और कमजोरी समझा गया, लेकिन कुछ ही दिनों में यह बीमारी गंभीर रूप ले बैठी।
पेचिश यह शब्द आज भले ही साधारण प्रतीत हो, लेकिन सोलहवीं शताब्दी में यह एक जानलेवा बीमारी थी। यह पेट और आंतों से जुड़ी एक संक्रामक बीमारी होती है, जिसमें रोगी को दस्त, खून, बुखार और शरीर में अत्यधिक कमजोरी का सामना करना पड़ता है।
24 दिन की यातना और एक सम्राट की दर्दनाक विदाई
3 अक्टूबर 1605 को अकबर को पेचिश के लक्षण दिखाई देने लगे। शाही हकीमों को बुलाया गया। यूनानी और आयुर्वेदिक चिकित्सा की मदद ली गई, लेकिन सम्राट की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती गई। अकबर ने इन 24 दिनों में न केवल शारीरिक पीड़ा सही, बल्कि मानसिक कष्ट भी। उन्हें यह अहसास हो चुका था कि उनका समय अब पूरा हो चला है। इस दौरान उन्होंने जहांगीर को उत्तराधिकारी घोषित करने की प्रक्रिया भी प्रारंभ कर दी थी, क्योंकि उनके अन्य पुत्र—हुसैन और मुराद पहले ही दिवंगत हो चुके थे। 27 अक्टूबर 1605 को, अकबर ने अंतिम सांस ली। उस दिन मुगल दरबार में न केवल एक राजा की मृत्यु हुई, बल्कि एक युग का अंत हुआ।
मौत की खबर पर हर धर्म का दिल हुआ आहत
अकबर की मौत की खबर जब प्रजा तक पहुंची, तो चारों ओर शोक की लहर दौड़ गई। हिंदू, मुसलमान, सिख, जैन—हर धर्म, हर जाति के लोगों की आंखें नम थीं। एक राजा, जिसने "सुलह-ए-कुल" की नीति से धर्मों को जोड़ा, जिसने दीन-ए-इलाही जैसी धर्मनिरपेक्ष विचारधारा को जन्म दिया, वह अब इतिहास बन चुका था।
वो ऐतिहासिक कब्र जो अकबर का बनी अंतिम ठिकाना
अकबर का मकबरा सिकंदरा, आगरा में स्थित है। यह एक विशाल और भव्य संरचना है, जो अकबर की जीवन शैली और वास्तुशिल्प सौंदर्य का प्रतीक है।
क्या आप जानते हैं इस मकबरे का निर्माण किसने करवाया था?
आपको जानकार आश्चर्य होगा कि इस मकबरे का निर्माण स्वयं अकबर ने अपने जीवनकाल में ही प्रारंभ कराया था। यह उनकी दूरदर्शिता और मृत्यु के प्रति सजगता को दर्शाता है। अकबर चाहते थे कि उनका मकबरा एक शांत स्थल हो जहां आत्मा को शांति मिले और आने वाली पीढियां उनके योगदान को याद रखें। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र जहांगीर ने इस मकबरे को पूर्ण करवाया। सिकंदरा का मकबरा लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से निर्मित है। इसकी चारों दिशाओं में बड़े-बड़े दरवाज़े हैं, जिन पर सुंदर नक्काशी की गई है।
मुख्य मकबरा एक विशाल गुम्बद से ढका हुआ है। मकबरे के चारों ओर बाग़-बग़ीचे हैं जो चारबाग़ शैली का प्रतीक हैं, जिसमें स्वर्ग के चार नहरों की कल्पना की जाती है। आज भी यह मकबरा आगरा के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है और हजारों लोग हर साल इस ऐतिहासिक स्मारक को देखने आते हैं।
इतिहास की नज़र में अकबर की मृत्यु
इतिहासकारों के अनुसार, अकबर की मृत्यु जितनी साधारण बीमारी से हुई, उतनी ही असाधारण उसका प्रभाव था। अकबर का देहांत केवल एक शासक की मौत नहीं थी, यह उस युग की समाप्ति थी जिसने भारत को सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से एक नई दिशा दी थी। अकबर की मृत्यु के बाद भी उनकी नीतियां और विचार आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने 'दीन-ए-इलाही' जैसे प्रयोग किए, 'इलाही संवत' की शुरुआत की, नवरत्नों की परिषद बनाई और सबसे महत्वपूर्ण, जनता से सीधे संवाद स्थापित किया। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्चा सम्राट वह होता है जो केवल तलवार से नहीं, अपने विचारों से साम्राज्य बनाता है। अकबर की मृत्यु एक याद दिलाती है कि चाहे इंसान कितना भी महान क्यों न हो, प्रकृति के नियमों के आगे सब समान हैं। एक साधारण बीमारी ने उस महाशक्तिशाली सम्राट को भी झुका दिया।
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