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17 अगस्त बलिदान दिवस: अमर बलिदानी मदन लाल ढींगरा

Madan Lal Dhingra: मदन लाल धींगरा का जन्म अमृतसर के एक संपन्न खत्री परिवार में हुआ था। उनके पिता व भाई दोनों ने चिकित्सक के रूप में काफी ख्याति अर्जित की थी।

Mrityunjay Dixit
Written By Mrityunjay Dixit
Published on: 16 Aug 2022 6:59 AM GMT
Madan Lal Dhingra
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Madan Lal Dhingra (image social media)

Madan Lal Dhingra: मदन लाल धींगरा का जन्म अमृतसर के एक संपन्न खत्री परिवार में हुआ था। उनके पिता व भाई दोनों ने ही चिकित्सक के रूप में काफी ख्याति अर्जित की थी। वे बचपन से ही फुर्तीले थे। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा लाहौर और अमृतसर में हुई। स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद वह कश्मीर चले गये जहां उन्होंने सरकारी नौकरी की । शिमला व कुछ अन्य स्थानों पर भी कुछ दिनों तक काम किया। इंजीनियरिंग पढ़ने की महत्वाकांक्षा के चलते जुलाई 1906 में इग्लैंड पहुंचे। वहां उन्हें शीघ्र ही प्रवेश मिल गया। खाली समय में वे लंदन की सड़कों पर घूमा करते थे।

उन दिनों महान क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर इंग्लैंड में ही थे। एक दिन लंदन की सड़कों पर घूमते हुए मदन लाल इंडिया हाउस पहुंचे तो वहां पर वीर सावरकर का भाषण सुनकर अत्यंत प्रभावित हुए। सावरकर को सुनने के बाद उनमें भी देशभक्ति की प्रबल भावना हिलोरें लेने लगीं और मन में यही विचार उठने लगे कि ,"भारत में इस समय केवल एक ही शिक्षा की आवश्यकता है और वह है मरना सीखना और उसके सिखाने का एकमात्र ढंग है स्वयं मरना।"

उन्हीं दिनों इंग्लैंड में कर्जन वायली नामक एक ब्रिटिश अधिकारी प्रवासी भारतीय छात्रों की जासूसी करने के कारण काफी कुख्यात हो चुका था। भारतीय छात्रों को उससे इतनी घृणा हो गयी थी कि वे उसे अवसर मिलते ही समाप्त कर देना चाहते थे। मदनलाल यह कार्य अपने हाथों से सम्पन्न करना चाहते थे। उन्हें अवसर भी मिला किन्तु उन्हें इसके लिए बेहद कठिन परीक्षा से भी गुजरना पड़ा।वीर सावरकार ने उनकी कुछ परीक्षा ली जिसमें वह पास हुए और फिर मदन लाल का पूरा जीवन ही बदल गया।

सावरकर की योजना से मदनलाल "इण्डिया हाउस" छोड़कर एक अंग्रेज परिवार में रहने लगे। उन्होनें अंग्रेजो से मित्रता बढ़ाई पर गुप्त रूप से वह शस्त्र संग्रह उनका अभ्यास तथा शस्त्रों को भारत भेजने के काम में सावरकार जी के साथ में लगे रहे। ब्रिटेन में भारत सचिव का सहायक कर्जन वायली था। वह विदेशों में चल रही भारतीय स्वतंत्रता की गतिविधियों को कुचलने में स्वयं को गौरवान्वित समझता था। मदनलाल को उसे समाप्त करने का काम सौंपा गया।

मदनलाल ने एक रिवाल्वर और पिस्तौल खरीद ली। वह अंग्रेज समर्थन संस्था "इण्डियन नेशनल एसोसिएशन" का सदस्य बन गए। एक जुलाई 1909 को इस संस्था के वार्षिकोत्सव में कर्जन वायली मुख्य अतिथि था। मदनलाल भी सूट और टाई पहनकर मंच के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गये उनकी जेब में पिस्तौल रिवाल्वर व दो चाकू थे। कार्यक्रम समाप्त होते ही मदनलाल ने मंच के पास जाकर कर्जन वायली के सीने और चेहरे पर गोलियां दाग दीं। वह नीचे गिर गया। मदनलाल को पकड़ लिया गया। 5 जुलाई को इस हत्या की निंदा की एक सभा हुई। पर सावरकर ने वहां निंदा प्रस्ताव पारित नहीं होने दिया। उन्हें देखकर लोग भय से भाग गये। अब मदनलाल पर मुकदमा प्रारम्भ हो गया।

मदनलाल ने कहा-"मैंने जो किया है वह बिल्कुल ठीक किया है। भगवान से मेरी यही प्रार्थना है कि मेरा जन्म फिर से भारत में ही हो। उन्होंने एक लिखित वक्तव्य भी दिया। शासन ने उसे वितरित नहीं किया। पर उसकी एक प्रति सावरकर के पास भी थी। उन्होंने उसे प्रसारित करवा दिया। इससे ब्रिटिश राज्य की पूरी दुनिया में भारी बदनामी हो गयी। 17 अगस्त, 1909 को पेण्टनविला जेल में मदनलाल धींगरा ने भारतमाता की जय बोलते हुए फांसी का फंदा चूम लिया। उस दिन वह बहुत प्रसन्न थे। इस घटना का इंग्लैंड के भारतीयों पर इतना प्रभाव पड़ा कि उस दिन सभी ने उपवास रखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी।

Prashant Dixit

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