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Street Foods: स्ट्रीट फूड स्वादिष्ट होने के साथ स्वास्थ्य सुरक्षित भी हो
Street Foods: हमारे देश में अनेक क्षेत्रीय स्ट्रीट फूड हैं। लेकिन लोगों के आवागमन के साथ-साथ वे अपने मूल क्षेत्र से बाहर भी फैल गए हैं
Street Foods: भोजन मानव ही क्यों समस्त प्राणी जगत के अस्तित्व को बचाए रखने की मूलभूत आवश्यकता है। मानव तो वैसे भी भोजन की विविधताओं का शौकीन है। हमारे देश में तो विशेषकर भोजन हमारी संस्कृति, हमारी परंपरा ,हमारे क्षेत्र की अपनी विविधता का शानदार मिश्रण है। जिस प्रकार हर क्षेत्र की अपनी विशेषता होती है, उसी प्रकार हर क्षेत्र के खाने की भी अपने विविधता और विशेषता है। पहाड़ी क्षेत्र के खाने का अपना लुत्फ है, तो मैदानी क्षेत्र का अपना स्वाद। उत्तर का भोजन दक्षिण के भोजन से एकदम अलग है । तो पूर्वोत्तर का खाना पश्चिमी राज्यों के खाने से बिल्कुल अलग। इसके साथ ही हमारे देश में स्ट्रीट फूड की भी अपने अनगिनत वैरायटी है। स्ट्रीट फूड किसी फेरीवाले या विक्रेता द्वारा सड़क पर या किसी अन्य सार्वजनिक स्थान, जैसे बाजार, मेला या पार्क में बेचा जाने वाले भोजन को कहा जाता है। इसे अक्सर मोबाइल फूड वेंडर्स, पोर्टेबल फूड बूथ, फूड कार्ट या फूड ट्रकों से
स्ट्रीट फूड का अस्तित्व कब से है यह जब जानकारी ली गई तब पता चला कि जब पहली बार शहरी बस्तियां बनी थी, तब से इसका अस्तित्व है। सड़क पर तैयार और पकाए गए भोजन का सबसे पुराना साक्ष्य सभ्यता की शुरुआत से मिलता है। यानी लगभग दस हजार साल पहले। 'थर्मोपोलिया' जो आज के फूड स्टॉल का पूर्वज माना जाता है, एक तरह की छोटी रसोई थी, जो सीधे सड़क के सामने होती थी। इसका इस्तेमाल सभी तरह के पके हुए खाने, खास तौर पर फ़ारो, बीन्स या सिसर्चिया के स्टू बेचने के लिए किया जाता था। प्राचीन यूनानियों ने मछली तलने और उसे सड़क पर बेचने की मिस्र की प्रथा का भी वर्णन किया, जो अलेक्जेंड्रिया के बंदरगाह में पारंपरिक थी। बाद में पूरे ग्रीस में अपनाई गई । ग्रीस से यह प्रथा रोमन दुनिया में फैल गई, समृद्ध हुई और कई रूपों में परिवर्तित हो गई। इस प्रकार स्ट्रीट फूड सदियों से हमारी सभ्यता के समानांतर विकसित हुआ है। मध्य युग के दौरान सभी बड़े शहर गंदे इलाकों की गंदी गलियों में सस्ते तैयार भोजन बेचने वाले स्टॉल, झोपड़ियों और ठेलों से भरे हुए थे।
किसी भी देश की क्षेत्र और परंपरा को जानना हो तो वहां के स्ट्रीट फूड को जरूर टेस्ट करना चाहिए। हालांकि स्ट्रीट फूड के बारे में यह सबसे बड़ी गलतफहमी है कि लोगों को सस्ते में खिलाने की प्राथमिक ज़रूरत के कारण स्ट्रीट फूड का विकास हुआ। अत: इसे हमेशा से कम मूल्य का माना जाता रहा है। स्ट्रीट फूड क्षेत्र और परंपरा की पहचान और अंतर कराता है तथा स्थानीय संस्कृति के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक, लोगों की खाने की आदतों को जीवित रखता है। हमने स्टेडियमों, मेलों और बाजारों के पास स्ट्रीट फूड बेचने वाले वाहनों की भरमार देखी है - विशेष रूप से पेय और सैंडविच बेचने के लिए। हमने देखा है कि स्कूल , कॉलेज के बाहर या हॉस्टलों और ऑफिसों के बाहर स्ट्रीट फूड वेंडर्स की लंबी कतारें लगी रहती हैं। जहाँ वे एक बड़ी आबादी के लिए पोषण और रोजगार का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। यात्रियों और पर्यटकों को भी स्ट्रीट फूड उनकी सुविधा और स्थानीय संस्कृति और खाद्य परंपराओं का अनुभव कराता हैं। हम सब ने भी पता नहीं कितनी बार इन स्ट्रीट फूड वेंडर्स से चाट, पकौड़ा, बताशे और पता नहीं कितने सारे स्ट्रीट फूड खाए होंगे और खाते भी हैं। ये अलग-अलग स्ट्रीट वेंडर्स अपने एक विशेष टेस्ट के लिए हमारे पसंदीदा भी हो जाते हैं।
हालांकि, स्ट्रीट फूड के साथ सबसे बड़ी परेशानी इसकी खराब हैंडलिंग, स्वच्छता की स्थिति और खाद्य सुरक्षा खतरों से जुड़े जोखिम और तलने के तेलों का पुनः उपयोग हैं। इसलिए स्ट्रीट फूड को एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम का कारण माना जाता है। इसके साथ ही अन्य कारकों में अस्वच्छ पानी , अस्वच्छ वातावरण, हाथ धोने की सुविधा की कमी, अपर्याप्त अपशिष्ट के निष्कासन की सुविधा, भोजन का कम पकना या खराब स्वच्छता प्रथाओं के कारण भी स्ट्रीट फूड अच्छा नहीं होता है। गंदे तरीके से धुले हुए बर्तन, स्ट्रीट फूड वेंडर्स का गंदे इलाकों में रहना या उनके घर की परिस्थितियों का उतना अच्छा नहीं होना या इतनी साफ -सफाई नहीं रखना भी स्ट्रीट फूड के अनहाइजीनिक होने के कारण होते हैं। जहां पर यह खाना बनता है, वहां उसका पर्यावरणीय प्रभाव भी उन स्ट्रीट फूड पर पड़ता है। एक बहुत ही महत्वपूर्ण लेकिन अक्सर अनदेखा किया जाने वाला तथ्य यह है कि स्ट्रीट फ़ूड विक्रेताओं में से दो तिहाई से भी अधिक वेंडर्स एफएसएसएआई के साथ पंजीकृत नहीं होते हैं। अनुमान बताता है कि दुनिया भर में 2.5 बिलियन लोग हर दिन स्ट्रीट फूड खाते हैं।
इसके साथ ही ऐसी स्थिति के लिए मुख्य रूप से हाथ न धोने की आदत और स्ट्रीट फूड विक्रेताओं द्वारा हाथ धोने के बारे में खराब जानकारी होना या कम जानकारी होना जैसे कई कारण जिम्मेदार होते हैं । लोगों को आर्थिक लाभ प्रदान किए जाने के बावजूद स्ट्रीट फूड विक्रेताओं और उपभोक्ताओं द्वारा खराब स्वच्छता प्रथाओं के कारण खाद्य जनित बीमारियां भी हो सकती हैं। वह अपने भोजन की वस्तुओं को प्राथमिकता नहीं देते हैं। भोजन परोसने के लिए चम्मच का प्रयोग नहीं किया जाता है अथवा एक ही चम्मच से सब चीज परोस दी जाती हैं। वह एप्रिन का प्रयोग नहीं करते , अपने सिर को नहीं ढकते हैं । स्ट्रीट फूड दुनिया भर की अधिकांश विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में खाद्य जनित बीमारियों के सबसे बड़े कारणों में से एक हैं। अगर उन सभी में खाद्य सुरक्षा नियमों का पालन किया जाए तो स्ट्रीट फूड सुरक्षा के जोखिम को टाला जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार खाद्य जनित संक्रमण के कारण हर साल पूरी दुनिया में 2.2 मिलियन मौतें होती हैं, जिनमें से 86 फ़ीसदी बच्चे होते हैं। खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार स्ट्रीट फूड से खाद्य विषाक्त फैलने का वास्तविक खतरा होता है, इससे फूड प्वाइजनिंग, डायरिया एवं लूज मोशन जैसी बीमारियां होती हैं। इन खतरों को रोकने के लिए संभावित खाद्य सुरक्षा खतरों को नियंत्रित किया जाना चाहिए। ज्यादातर स्ट्रीट फूड वेंडर्स गंदे कपड़े पहने पाए जाते हैं। वह किसी भी तरीके की सुरक्षात्मक उपकरण का प्रयोग भी नहीं करते हैं।
स्ट्रीट फूड से जुड़ी सुविधाएं और किफायती कीमतें इसे प्रमुख महानगरीय क्षेत्र में रहने वाले प्रवासी मजदूरों के लिए पसंदीदा विकल्प बनाती हैं। बड़ी कंपनियां खाद्य संबंधी सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करती है । सड़क विक्रेताओं को शायद ही कभी इस तरह का कोई औपचारिक प्रशिक्षण मिलता है। स्ट्रीट फूड वेंडर्स को उचित स्वच्छता बनाए रखने के बारे में शिक्षित करना, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना अनिवार्य है। स्ट्रीट फूड वेंडर्स को एक बेहतर सामान्य शिक्षा दी जा सकती है । उनको प्रशिक्षण और लाइसेंसिंग तभी दिया जाना चाहिए जब वे खाद्य सुरक्षा के नियमों का पालन करें और उसे समझ सके। हालांकि इन्हें नियंत्रित करना अक्सर मुश्किल होता है क्योंकि विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों और उत्पादों का वे प्रयोग करते हैं । वे नल के पानी का या हैंडपंप या कुएं आदि के पानी का प्रयोग करते हैं न कि फिल्टर के पानी का। वे पानी का उपयोग करने से पहले उसकी स्वच्छता का भी ध्यान नहीं देते हैं। वे इस बारे में या तो जानते ही नहीं है या अगर पता भी हैं तो भी इनके पास ना तो संसाधन है ना ही वे इसमें अपना समय और ऊर्जा लगाना चाहते हैं ।स्ट्रीट फूड का सबसे सकारात्मक पहलू यह है कि ये खाद्य पदार्थ गरीबों के लिए, उनकी जेब के अनुसार सुलभ हैं और स्ट्रीट फूड विक्रेताओं के लिए आर्थिक सशक्तीकरण का प्रतिनिधित्व करते हैं। ।आवश्यकता जागरूकता की है और खाद्य सुरक्षा के मामले में अनुभवी होने की है।
( लेखिका प्रख्यात स्तंभकार हैं।)